इसमें दो राय नहीं है कि बैंकों के एकीकरण के बाद परिचालन लागत व दूसरे खर्चों में कमी, लाभ में बढ़ोतरी, जोखिम प्रबंधन में आसानी, प्रदर्शन में बेहतरी, पूँजी निर्माण में तेजी आदि संभव हो सकेंगे। इससे प्रशिक्षित मानव संसाधन में बढ़ोतरी, प्रशिक्षण के खर्च में कमी, पूँजी व संसाधनों की उपलब्धता में वृद्धि, धोखाधड़ी के मामलों में कमी आदि आने की संभावना है।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय की दिशा में एक कदम आगे बढ़ते हुए 30 अगस्त को मोदी सरकार ने 10 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय की घोषणा कर दी। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतरामण के अनुसार अगले 5 सालों में पाँच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिये देश में बड़े बैंकों का होना जरूरी है।
घोषणा के अनुसार 10 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का आपस में विलय किया जायेगा। पंजाब नेशनल बैंक के साथ ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का विलय होना प्रस्तावित है। विलय के बाद इनका कारोबार 17.94 लाख करोड़ रुपये का हो जायेगा और यह देश का दूसरा सबसे बड़ा बैंक होगा। केनरा बैंक के साथ सिंडीकेट बैंक का विलय होना प्रस्तावित है।
विलय के बाद इनका कारोबार 15.20 लाख करोड़ रूपये का हो जायेगा और यह देश का चौथा सबसे बड़ा बैंक होगा। यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के साथ आंध्रा बैंक और कॉर्पोरेशन बैंक का विलय होना प्रस्तावित है। विलय के बाद इनका कारोबार 14.59 लाख करोड़ रूपये का हो जायेगा और यह देश का पाँचवाँ सबसे बड़ा बैंक होगा। इंडियन बैंक के साथ इलाहाबाद बैंक का विलय होना प्रस्तावित है। विलय के बाद इनका कारोबार 8.08 लाख करोड़ रूपये का हो जायेगा और यह देश का सातवाँ बड़ा बैंक होगा। इस विलय बाद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या 27 से कम होकर 12 रह जायेगी।
गौरतलब है कि एकीकरण के बाद स्टेट बैंक का कारोबार 52.05 लाख करोड़ रूपये का हो गया है और यह आज देश का सबसे बड़ा बैंक है और वैश्विक स्तर पर यह 50 बड़े बैंकों की श्रेणी में आ गया है। वहीं, एकीकरण के बाद बैंक ऑफ बड़ौदा का कारोबार 16.13 लाख करोड़ रूपये का हो गया है।
विलय से पड़ने वाले तात्कालिक प्रभाव
प्रस्तावित विलय के तत्काल बाद ग्राहकों को चेकबुक बदलना पड़ेगा। हालाँकि, मौजूदा चेकबुक कुछ समय के लिए मान्य रहेंगे। ग्राहकों को एक नया खाता संख्या और ग्राहक पहचान नंबर दिया जा सकता है, इसके लिये ग्राहकों को मोबाइल नंबर और ईमेल एड्रेस को अद्यतन रखना होगा, ग्राहकों को नये इलेक्ट्रॉनिक क्लियरिंग सर्विस (ईसीएस) निर्देश देने होंगे, ऑटो डेबिट या सिस्टेमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) के लिये एसआईपी पंजीकरण आवेदन भरना पड़ सकता है, ईएमआई के लिए नया चेकबुक देना होगा आदि।
शाखाओं और कार्यालयों के बेहतर समायोजन के लिये कुछ शाखाओं को बंद या दूसरे शाखा के साथ विलय किया जा सकता है, जिसके कारण आईएफएससी और एमआईसीआर कोड में बदलाव करना होगा। हालाँकि, सावधि जमा या कर्ज ब्याज दरों में मियाद पूरी होने तक किसी तरह के बदलाव की कोई जरूरत नहीं होगी।
एकीकरण की दिशा में किये गये पूर्व के प्रयास
गौरतलब है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के एकीकरण पर वर्ष, 2003 के बाद कई बार विचार किया गया, लेकिन कोई ठोस रणनीति नहीं बनाई जा सकी। मानव संसाधन, सूचना एवं प्रौधोगिकी, वेतन व भत्ते, प्रणाली, आदि में एकरूपता का नहीं होना इसका एक बहुत बड़ा कारण था।
यूनियन को एकीकरण के लिये राजी करना, मानव संसाधन का समायोजन, विसंगति की स्थिति में क्षतिपूर्ति की व्यवस्था आदि भी मामले में महत्वपूर्ण अड़चने थीं। एकीकरण के संबंध में आरएस गुजराल की अध्यक्षता में बनी समिति ने सरकार को अपनी रिपोर्ट जनवरी, 2012 में दी थी, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को आपस में मिलाकर 7 बड़े बैंक बनाने का सुझाव दिया गया था।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के एकीकरण का रोडमैप बैंक बोर्ड ब्यूरो ने तैयार किया था और इसके लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को छह समूहों में बांटा गया था। बैंकों के समूहों का निर्णय मानव संसाधन, ई-गवर्नेस, आंतरिक लेखा-परीक्षा, धोखाधड़ी, सीबीएस (कोर बैंकिंग साल्यूशन) एवं वसूली को आधार बनाकर लिया गया था। हालाँकि, सरकारी बैंकों के एकीकरण की दिशा में तेजी मोदी सरकार के आने के बाद आई।
क्यों जरूरी है एकीकरण
मौजूदा परिप्रेक्ष्य में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का एकीकरण ही एकमात्र विकल्प है, क्योंकि बढ़ते एनपीए, बासेल तृतीय के विविध मानकों को पूरा करने का दबाव, बैंकों की आधारभूत संरचना को मजबूत करने आदि के लिये बैंकों को भारी-भरकम पूँजी की जरूरत है। साथ ही, ग्राहकों को बेहतर सेवा और सुरक्षित बैंकिंग सुविधायें मुहैया कराना भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिये एक बड़ी चुनौती है।
बैंकों की समस्याओं को दूर करने के प्रयास
सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों जैसे, पंजाब नेशनल बैंक को 16000 करोड़ रूपये, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया को 11700 करोड़ रूपये, बैंक ऑफ बड़ोदरा को 7000 करोड़ रूपये, केनरा बैंक को 6500 करोड़ रूपये, इंडियन बैंक को 2500 करोड़ रूपये, इंडियन ओवरसीज बैंक को 3800 करोड़ रूपये, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया को 3300 करोड़ रूपये, यूको बैंक को 2100 करोड़ रूपये, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया को 1600 करोड़ रूपये और पंजाब एंड सिंध बैंक को 750 करोड़ रूपये उनके पुनर्पूंजीकरण के लिये देने का फैसला किया है।
बैंकों का पूर्व में किया गया विलय
बैंकिंग क्षेत्र में एकीकरण पहले से होते रहे हैं। भारतीय स्टेट बैंक के साथ उसके 5 सहायक बैंकों और 1 महिला बैंक का विलय वर्ष 2018 में और विजया बैंक, देना बैंक का बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय 1 अप्रैल, 2019 को हुआ था, जबकि स्टेट बैंक ऑफ सौराष्ट्र और स्टेट बैंक ऑफ इंदौर का विलय क्रमशः 2008 एवं 2010 में भारतीय स्टेट बैंक के साथ किया गया था।
एकीकरण के फायदे
इसमें दो राय नहीं है कि बैंकों के एकीकरण के बाद परिचालन लागत व दूसरे खर्चों में कमी, लाभ में बढ़ोतरी, जोखिम प्रबंधन में आसानी, प्रदर्शन में बेहतरी, पूँजी निर्माण में तेजी आदि संभव हो सकेंगे। इससे प्रशिक्षित मानव संसाधन में बढ़ोतरी, प्रशिक्षण के खर्च में कमी, पूँजी व संसाधनों की उपलब्धता में वृद्धि, धोखाधड़ी के मामलों में कमी आदि आने की संभावना हैं। भारत जैसे बड़े एवं विविधितापूर्ण देश में बैंकिंग की सुविधा गली-मोहल्लों तक पहुंचाने के लिये ग्रामीण क्षेत्र से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधा उपलब्ध कराना सरकार के लिये आज भी एक बड़ी चुनौती है। एकीकरण के बाद ग्रामीण क्षेत्र में इनकी उपस्थिति में और भी इजाफा होगा। भारत के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्वरूप का ताना-बाना बड़े बैंक के अनुकूल है, क्योंकि बड़े बैंक ही इतने बड़े देश में समान रूप से बेहतर ग्राहक सुविधायें मुहैया करा सकते हैं। वैश्विक उपिस्थिति होने से बैंकों के ग्राहकों को देश व विदेश दोनों जगहों पर समान रूप से सेवा मिल सकेगी।
निष्कर्ष
कहा जा सकता है कि परिचालन एवं दूसरे खर्चों में कटौती को सुनिश्चित करने से बड़े बैंकों की लाभप्रदता में इजाफा होगा। पूँजी की उपलब्धता रहने से वे सस्ती दर पर ग्राहकों को कर्ज भी दे सकेंगे। पर्याप्त मानव संसाधन की मदद से एनपीए और जोखिम प्रबंधन के मोर्चे पर बड़े बैंक बेहतर काम कर सकेंगे, जिससे उनकी साख और लाभप्रदता दोनों में इजाफा होगा।
मौजूदा समय में छोटे बैंक पूँजी की कमी के कारण न तो अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग मानकों को पूरा कर पा रहे हैं और न ही सस्ती दर पर ग्राहकों को कर्ज उपलब्ध करा पा रहे हैं। एनपीए और जोखिम प्रबंधन में भी वे फिसड्डी साबित हो रहे हैं। बेहतर तकनीक के अभाव में उनकी ग्राहक सेवा अच्छी नहीं है। ऐसे में एकीकरण के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक हर मोर्चे पर बेहतर प्रदर्शन करेंगे, ऐसी उम्मीद की जा सकती है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)