मजदक दिलशाद बलूच, बलूच आन्दोलन से जुड़े हुए बलूच नेता हैं एवम् वर्तमान में कनाडा मे निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। बचपन में ही पाकिस्तान के अत्यचार के कारण इनका परिवार बलूचिस्तान छोड़ने को मजबूर हो गया था। आपकी माता नीला क़ादिरि बलुच “विश्व बलूच वुमन फ़ोरम्” की अध्यक्षा हैं एवम् आपके पिता मीर गुलाम मुस्तफ़ा रायसैनि कनाडा में फ़िल्म निर्माता हैं। मज़दक दिलशाद का यह साक्षात्कार भानु कुमार झा एवं आयुष आनंद द्वारा उनके दिल्ली स्थित वर्तमान आवास पर दिनांक 22 सितम्बर 2016 को लिया गया था।
प्रश्न : बलूचिस्तान किस प्रकार पाकिस्तान से अलग है ?
उत्तर : हमारे और पाकिस्तान में सिर्फ़ समानता हीं यही है कि दोनों ही देशो का बॉर्डर एक है, दोनों देशों में रहने वाले बहुमत जनसंख्या इस्लाम को मानती है। इसके अलावे पाकिस्तान एवं बलूचिस्तान में कोई समानता नही है। हमारी भाषा, संस्कृति, इतिहास, रस्म-रिवाज, जीने का तरीका सभी पाकिस्तान से अलग हैं। सही तौर पर देखा जाय तो पंजाब ही केवल पकिस्तान है। सिंध भी पाकिस्तान नही है। हम पाकिस्तान की विचारधारा के साथ किसी भी तरह फिट नहीं बैठते हैं, हम इस मामले में भारतीय और सिन्धी लोगों के ज्यादा नजदीक हैं। क्योंकि पाकिस्तान की विचारधारा सिर्फ और सिर्फ बनावटी इस्लाम के नाम पर है, असली और शुद्ध इस्लाम के नाम पर नहीं। नाम वो इस्लाम का इस्तेमाल करते हैं, पर विचारधारा मुस्लिम लीग और ब्रिटिश हुकुमत वाली उपयोग करते हैं। अंग्रेजों ने जिस तरह उन्हें पढाया, सिखाया कि इस तरह तुम्हे हिंदुस्तान को तोड़ना है, वो उसी तरह आज भी कर रहे हैं। अंग्रेज तो वो काम पूरी तरह नहीं कर पाए पर ये लोग वही कर रहे हैं।
प्रश्न : बलूच राष्ट्रवाद का क्या अर्थ है ?
उत्तर : यह राष्ट्रवाद कई सौ सालों पुराना इतिहास समेटे हुए है। हमारा इतिहास कभी भी किसी राष्ट्र पर शासन का नहीं रहा है। जिस प्रकार पाकिस्तान का राष्ट्रवाद इस्लाम पर आधारित है, बलूचिस्तान का राष्ट्रवाद धर्म पर आधारित नहीं है बल्कि धार्मिक कट्टरवादी विचार से मुक्त राष्ट्रवाद है एवं इन्ही कारणों से हमारे साहित्यों में युद्ध कालीन कविताएँ, राष्ट्रवाद से प्रेरित कवितायेँ अधिक हैं, धार्मिक कविताओं के तुलना में।हमारा समाज एक बहुलतावादी समाज है, हमारे साथ आज भी बलूच हिन्दू रहते हैं, जिन्हें इतने सौ सालों में धर्मान्तरित नहीं किया गया है बल्कि वो हमारे समाज का एक अभिन्न हिस्सा है। इन्हे एक विशेष दर्जा दिया जाता है हमारे जितने भी शहर हों जैसे कलात, मस्तुंग, डेरा-बुगती या कहान इन सब में आप हिन्दू बलूच को आबादी के बीच में शहर के बीच में पाएंगे ताकि उनकी सुरक्षा एवं सलामती मुस्लिम बलूचों के द्वारा बनी रहे।
प्रश्न : कश्मीर समस्या एवं बलूचिस्तान समस्या में क्या अंतर है ?
उत्तर : कश्मीर भारत का आन्तरिक मुद्दा है जबकि बलोचिस्तान एकल अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा है। कश्मीर सदा से भारत का अभिन्न अंग रहा है जबकि बलोचिस्तान को पाकिस्तान ने जबरदस्ती कब्ज़ा कर रखा है। कश्मीर एवं बलोचिस्तान के इतिहास में व्यापक अंतर है, कश्मीर भारतीय इतिहास का भाग रहा है, जबकि बलोचिस्तान कभी भी पाकिस्तान के इतिहास का हिस्सा नही रहा है।
प्रश्न : क्या कायदे आज़म एवं बलूचों के बीच हुए संधि उनके मरने के बाद सही तरीके से निभाया नही गया है ?
उत्तर : देखिये पहले तो वो कायदे आज़म पंजाबियों के हैं, हमारे या आपके नहीं हैं, वो जिन्ना थे। उन्होंने अपने एक पत्र में स्वीकार किया था कि बलूचिस्तान एक स्वतंत्र राष्ट्र है और वो इस पर सहमत हुए थे। जिन्ना आया था और उसने प्रस्ताव रखा कि बलूचिस्तान को पाकिस्तान में शामिल होना चाहिए, जिसपर हमारे उस समय के सुल्तान खान साहब ने कहा ये उनके हाथ में नहीं है। खान साहब ने जिन्ना से कहा, हमारी जिरगा (विधायिका) – हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स और हाउस ऑफ़ कॉमन्स है और वो ही फैसला करेगी कि उन्हें शामिल होना है या नहीं। उन्होंने फैसला लिया कि हम लोग पाकिस्तान के साथ केवल मुस्लमान होने की वजह से नहीं रहेंगे। इसके बाद जिन्ना ने इसे स्वीकार किया जो कि पत्र में मौजूद है। पर जब जिन्ना वापस गया तो पंजाबी जनरलों ने उन्हें समझाया आप ये कर क्या रहे हैं अगर बलूचिस्तान आज़ाद हो गया तो हमारे पास बचेगा क्या। फिर जिन्ना ने दवाब बनाना शुरू किया, तब उसकी वजह से हमारे आज़ाद बलूचिस्तान के प्रधानमंत्री मीर भारत आये और नेहरु से मदद मांगी कि पाकिस्तान हमारे ऊपर दवाव बना रहा है, वो हम पर कब्ज़ा कर लेगा, अगर आपने मदद नहीं की तो। पर नेहरु ने मना कर दिया, वो वापस आ गए और फिर मार्च में पाकिस्तान ने तोपों से हमला किया, फौज आई और खान को रानी के साथ गिरफ्तार कर रावलपिंडी ले जाया गया। वहां बन्दुक की नोक पर उनसे हस्ताक्षर करवाए गए और फिर कहा गया कि खान साहब को सपने में हज़रत मोहम्मद साहब आये थे उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में शामिल हो जाओ। ये बात बकायदे पाकिस्तान के इतिहास के पाठ्यक्रम में पढाया जाता है। तो जी ये ख्वाब के ऊपर मुल्क बनाने वाली बात है।
प्रश्न : बलूचिस्तान आन्दोलन के बारे में बताइए ? 1948 में कलात साम्राज्य और प्रिंस करीम की बगावत एवं फिर पहला बलूच विद्रोह हुआ इसके बारे में बताएं और फिर इसे कैसे दबाया गया ?
उत्तर : यह आन्दोलन पाकिस्तान के निर्माण के साथ से अभी तक अनवरत चली आ रही है । पाकिस्तान ने सदा से इस आन्दोलन को दबाने के लिए बर्बरता पूर्वक व्यवहार किया है। हमारा विद्रोह हमेशा उतार-चढ़ाव में रहा है, पर मुद्दे एक ही रहे हैं। हुआ ये है कि इन तारीख में हमारा दमन ज्यादा हुआ है इसलिए ये तारीख हमें याद हैं, चाहे वो 48 का पहला बलूच विद्रोह हो या फिर 58 का दूसरा विद्रोह हो या 72 का तीसरा या फिर 1999 या 2006 का, ये लगातार चल रहा है।
प्रश्न: बलूचिस्तान में मानव अधिकार की क्या स्थिति है ? पाकिस्तान के अत्याचार के कौन से तौर-तरीके हैं ?
उत्तर : बलूचिस्तान में मानव अधिकार की स्थिति बहुत ही दयनीय है। पाकिस्तान अपने शोषण के विभिन्न तरीकों द्वारा बलूचिस्तान का नामोनिशान मिटाने पर तुला है, वह इसके लिए कई प्रकार के शोषण के तरीके अपना रहा है। पाकिस्तान बलूचिस्तान की पूरी कौम का वजूद मिटने के लिए बलूची इतिहास, संस्कृति, जुबान एवं बुनयादी तत्वों को जड़ से ही समाप्त करने में लगा हुआ है। पाठ्यक्रमों में से बलूचिस्तान के इतिहास की बातों को हटाया जा चुका है। उसके जगह पंजाबी, मुग़ल एवं ऐसे गैर मतलबी तथ्यों को जगह दिया जा रहा है। पाकिस्तान जबरन उर्दू थोपने की कोशिश कर रहा है, हमारी भाषा बलूची-ब्रावी को अब कोई जानने वाला नहीं बचा है। इसके किताब रखने वालों को परेशान किया जाता है, जेल में डाल दिया जाता है तो हुआ ये कि अब हमारी कौम को अपने ही बारे में नहीं पता है, उन्हें अपनी जुबान नहीं आती है। ऐसे में हमें अपने शिक्षा से काटना हमारे अधिकार का सबसे बड़ा हनन है। हम तो तबाह हो गए। हमारे नाम पर पंजाबी पाकिस्तानी हँसते हैं, हमारी कौम का कोई आधार ही नहीं बताया जाता है पाकिस्तान में।
बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा संसाधनों से युक्त जगह है। बलूचिस्तान पाकिस्तान को कई वर्षों से उसकी जरुरत का तेल, गैस एवं अन्य वस्तुयें मुहैया कराता आया है, किन्तु इसके बावजूद हमारी स्थिति स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार में दयनीय है। हमें अपने संसाधनों का हिसाब चाहिए, ऐसी मांग करने पर हमें बन्दुक की गोली मिलती है। विकास के नाम पर बलूचिस्तान में सिर्फ़ फौजी छावनियों का निर्माण हुआ है। कैम्पों के निर्माण के लिए जमीन अधिगृहित करने के लिए गांव-गाँव जला दिए जाते है, प्रतिरोध करने पर बहु बेटियों के साथ व्यापक स्तर पर रेप किया जाता है, वयस्कों के अंग, गुर्दे निकाल कर उसकी लाशों को फेंक दिया जाता है। इन जुर्मों को चलाने के लिए पाकिस्तान आर्मी रेप सेल्स चलाती है। 15 अगस्त को मोदी जी के भाषण के बाद व्यापक स्तर पर महिलाओं का बलात्कार हुआ है। बलोचिस्तान को पाकिस्तान ने अपना हथियारों का प्रयोग क्षेत्र बना रखा है। यहाँ पर परमाणु बमों का परीक्षण किया गया। कई व्यापक रासयिनिक हथियारों का प्रयोग भी यहाँ किया गया। बर्बरता का स्तर तो इतना है कि पाकिस्तानी आर्मी मवेशियों तक को जिन्दा जला देते है। सीधे अर्थो में हमारे समाज के युवा एवं बुद्धिजीवी को निशाना बनाते हुए पाकिस्तान ने हमारे सभी मानव अधिकारों को हमारे लिए दुस्वप्न बना दिया है।
प्रश्न: बलूचिस्तान में पहली बार 1972 में चुनाव हुए और बलूच लोगों की अपनी सरकार बनी, परन्तु क्या कारण रहा कि इसे मात्र 1 साल बाद पाकिस्तान द्वारा निष्कासित कर दिया गया? इसके बाद पैदा हुए हालत को हम तीसरे बलूच आन्दोलन के रूप में जानते हैं, उस समय के हालत के बारे में बताएं और पाकिस्तान ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए क्या-क्या किया ?
उत्तर : उन्हें डर था कि कहीं असेम्बली ही आज़ादी की घोषणा न कर दे फिर फौज के पास क्या चारा रहता। तो आहिस्ता आहिस्ता फौज ने एक गेम चलाया जिसके तहत कुछ ही अरसे में उनकी सरकार उलटा दी। सरकार उलटते ही इन्होंने (आवामी पार्टी) अपनी बात उठाई और ये पहाड़ों पे गए तो वहां पर फौजी ऑपरेशन शुरू कर दिया गया। सरकार के दौरान भी पकड़-धकड़ होती रही और उस समय बहुत सा केस बना। हैदराबाद वाला केस बना, झूठा ढोंग रचाया गया कि इराक के दूतावास से असलहा पकड़े गए कि ये इनको दिया जा रहा है, कि ये गद्दार हैं। ये सारे ढोंग रचाए गए ताकि गवर्नमेंट उल्टा दें क्योंकि ये उन्हें पसंद नहीं थे। वे ये चाहते थे कि बलूच लोग जान जाएँ कि उनकी कभी गवर्नमेंट नहीं आ सकती है, अगर आएगी तो उसे पलट दिया जायेगा। हमेशा सरकार आएगी तो मुस्लिम लीग की या फिर कोई मिक्स-उप की हुई गठबंधन सरकार, जिसमें मुल्ला लोगों का मुस्लिम लीग, पीपल्स पार्टी का या फिर कोई का मिक्स उप हो उसकी कठपुतली सरकार बना देंगें जिसपे फौज का पूरा कण्ट्रोल हो। जो लोग एक दुसरे के मुहँ पर थूकते हैं, वो फौज के इक इशारे के ऊपर आकर सरकार बना देते हैं, पाकिस्तान ऐसी ही जम्हूरियत है। तो NAP की गवर्मेंट उल्टायी गयी, विरोध हुआ और वो जो लड़ाई चली उसमें तकरीबन 15,000 लोग के आस-पास शहीद हुए। तो इस तरह हमारे उस आन्दोलन को दबा दिया गया।
प्रश्न : तो क्या अभी इस समय आप ग्रेटर बलूचिस्तान की डिमांड नहीं कर रहे हैं जो कि इरान और अफ़ग़ानिस्तान के भी कुछ हिस्सों में पड़ता है और आप केवल बलोचिस्तान प्रोविन्स की मांग कर रहे हैं ?
उत्तर : हाँ, ग्रेटर बलूचिस्तान की कुछ थोड़ी सी टेरिटरी ईरान और अफगानिस्तान में पड़ती है पर वर्तमान में हम जिस के लिए लड़ रहे हैं वो वह क्षेत्र है जो पाकिस्तान के भीतर पड़ता है। पाकिस्तान के भीतर बलूचिस्तान प्रोविन्स वाला क्षेत्र साथ ही साथ हमारे कुछ एरिया जिन्हें समय के साथ थोड़ा सा सिंध में मिला दिया गया है, हमारे कुछ छोटे-छोटे पॉकेट्स पंजाब में भी मिला दिया गया है तो वो हमें वापस चाहिए। हमने अभी तक अफगानिस्तान और इरान की बात नहीं की है, हमारी लड़ाई केवल पाकिस्तान वाले एरिया तक ही है। डॉन समाचार बोलता है ये एरिया पाकिस्तान का 44 % है, कहीं 47 % बताते हैं जबकि हमारे हिसाब से ये 55 % है और हमें ये पूरा वापस चाहिए।
प्रश्न : सर, तो ये जो तीसरा बलूच आन्दोलन था जिसमें १५००० लोग मारे गए क्या इसे बलूच मूवमेंट का पाकिस्तानी सेना द्वारा किया गया सबसे बड़ा दमन माना जाये ?
उत्तर : नहीं, नहीं! आज का जो दमन और अत्याचार चल रहा है, वर्तमान समय में ये सबसे बड़ा है और सबसे आक्रामक है। ये 1999 से शुरू हुआ है और आज तक लगातार चल रहा है। 2006 में बुग्ती साहब की हत्या कर दी गयी उसके बाद से ये और भी तेज हुआ है| पाकिस्तानी सेना द्वारा किये जा रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन ने नीचता की हर हद को पार कर दिया है वर्तमान समय में।