असहिष्णुता की बहस को गुजरे अधिक समय नहीं हुआ। यदि आप असहिष्णुता की पूरी बहस में सक्रिय गिरोह की भूमिका को याद करें तो यह बिहार चुनाव से ठीक पहले सक्रिय हुआ था और बिहार चुनाव के ठीक बाद असहिष्णुता की पूरी बहस शांत हुई थी। चुनाव के दौरान अखलाक की हत्या को कमान बनाकर वामपंथी गिरोह ने बिहार चुनाव में तीर चलाया था। खैर, नीतीश की जीत के बाद असहिष्णुता की पूरी बहस शांत हुई। उसी दौरान इस गिरोह के प्रतिनिधि के नाते अशोक वाजपेयी और ओम थानवी राष्ट्रपति से मिलकर लौटे थे। यह आज तक रहस्य है कि इन दोनों को गिरोह का नेतृत्व दिया किसने था? बहरहाल, आप सोच रहे होंगे कि अब इन बातों के जिक्र का अर्थ क्या है? जब बिहार चुनाव बीते समय की बात हो गई है।
भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ उत्तर प्रदेश चुनाव को ध्यान में रखते हुए पुरस्कार वापसी गिरोह ने वामपंथी पत्रकारों को लामबंद करना प्रारंभ कर दिया है। इसी सिलसिले में साहित्य अकादेमी पुरस्कार लौटाने वाले अशोक वाजपेयी और मंगलेश डबराल के साथ बड़ी संख्या में ‘असहिष्णुता’ के प्रचार में शामिल रहे वामपंथी पत्रकार-साहित्यकार 19 जुलाई को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिल थे। बातचीत के दौरान एक साहित्यकार ने उन्हें असहिष्णुता की देश में चली बहस और बिहार में उनकी सरकार बनने की याद दिलाई। इस किस्से के जरिये इस बात का एहसास बिहार के मुख्यमंत्री को कराना था कि हम ही कथित सेकुलर ताकतें थीं, जिनने ‘अफवाह’ के दम पर आपको बिहार में जीत दिलाई।
साहित्यकार नरेश शांडिल्य इस संबंध में कहते हैं- ‘‘बिहार चुनाव बीते समय की बात जरूर हो गई, लेकिन अब हर दिन सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि यह कम्यूनिस्ट वामपंथी गिरोह हिटलर के अफवाह मंत्री जोसफ गोएबल्स से प्रभावित है। जो किसी भी अफवाह को अपने फिल्म, कला, साहित्य, पत्रकारिता, विश्वविद्यालय, एनजीओ से जुड़े हजारों साथियों के मुंह से कहलवा के सच साबित करने का प्रयास करता है। अधिक अवसरों पर वे अपने सुनियोजित षडयंत्र में सफल भी हो जाते हैं।’’ श्री शांडिल्य जिस षडयंत्र की तरफ इशारा कर रहे हैं, यह कम्यूनिस्ट और चर्च के संयुक्त तंत्र का ही कमाल है कि उन्होंने जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा, नस्ल के नाम पर हिन्दू समाज को तोड़ने का एक भी ऐसा अवसर नहीं छोड़ा है।
लंबे समय से वनवासी क्षेत्रों में काम कर रहे पद्म श्री अशोक भगत के अनुसार ‘‘आज समाज इस बात पर बहस कर रहा है कि वनवासी सनातन धर्म को मानने वाले हैं या नहीं? इस बहस को चलाने वाले कम्यूनिस्ट कभी यह सवाल नहीं पूछते कि यदि वनवासी होना एक धर्म है। यदि वनवासियों के पास अपनी एक महान संस्कृति है, फिर पैसों के दम पर वनवासियों का धर्मान्तरण न्यायोचित कैसे हो सकता है?’’
उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में चुनाव होने वाले है। इस दौरान पुरस्कार वापसी वाली असहिष्णुता गिरोह की सक्रियता भी बढ़ गई है। इन सारी बातों का जिक्र यहां इसलिए ताकि सनद रहे कि असहिष्णुता का जुमला वास्तव में तथाकथित धर्मनिरपेक्ष गिरोह का षडयंत्र था। आज इस बात को दर्ज करने की जरूरत इसलिए है क्योंकि, आने वाले समय में इस गिरोह के अफवाह की भारतीय समाज सही प्रकार से हवा निकाल सके।
भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ उत्तर प्रदेश चुनाव को ध्यान में रखते हुए पुरस्कार वापसी गिरोह ने वामपंथी पत्रकारों को लामबंद करना प्रारंभ कर दिया है। इसी सिलसिले में साहित्य अकादेमी पुरस्कार लौटाने वाले अशोक वाजपेयी और मंगलेश डबराल के साथ बड़ी संख्या में ‘असहिष्णुता’ के प्रचार में शामिल रहे वामपंथी पत्रकार-साहित्यकार 19 जुलाई को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिल थे। बातचीत के दौरान एक साहित्यकार ने उन्हें असहिष्णुता की देश में चली बहस और बिहार में उनकी सरकार बनने की याद दिलाई। इस किस्से के जरिये इस बात का एहसास बिहार के मुख्यमंत्री को कराना था कि हम ही कथित सेकुलर ताकतें थीं, जिनने ‘अफवाह’ के दम पर आपको बिहार में जीत दिलाई। वाजपेयी और डबराल के अलावा वहां ओम थानवी, प्रियदर्शन, विष्णु नागर, पुरुषोत्तम अग्रवाल, सुरेश शर्मा, अपूर्वानंद, रक्षन्दा जलील, सीमा मुस्तफा भी मौजूद थे।
इस मेल-मुलाकात में सबने आने वाले चुनाव में संघ मुक्त और भारतीय जनता पार्टी मुक्त भारत का संकल्प दोहराया। बहरहाल नीतीश कुमार से मिलने वाले पत्रकार, साहित्यकार, इतिहासकार भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति इतनी नफरत अपने अंदर भरकर कैसी ‘निष्पक्ष’ पत्रकारिता करते होंगे, कैसा ‘तटस्थ’ साहित्य लिखते होंगे या फिर कैसा ‘सच्चा’ इतिहास रचते होंगे, क्या सब जान लेने के बाद, यह बताना मुश्किल है।
(लेखक पेशे से पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)