मौजूदा समय में निवेशकों को किसी रिपोर्ट पर ऐतबार करने की जगह खुद से मामले के गुण-दोष का आकलन करना चाहिए। खासकर तब, जब अडाणी समूह को दिए गए कर्ज में लगभग 60 प्रतिशत की हिस्सेदारी विदेशी बैंकों की है और अभी तक रिपोर्ट की सत्यता साबित नहीं हुई है बल्कि वो सवालों के घेरे में बनी हुई है।
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने अडाणी के साम्राज्य को बहुत नुकसान पहुँचाया है । चंद ही दिनों में दुनिया के रईसों की सूची में से शीर्ष दूसरे स्थान से अडाणी समूह 21वें स्थान पर पहुँच गया। इस रिपोर्ट के असर को देखते हुए कहा जा सकता है कि ऐसी रिपोर्टें किसी भी कंपनी को बर्बाद कर सकती हैं, क्योंकि ऐसे मामलों में आरोपित कंपनी को खुद को निर्दोष साबित करना होता है, जोकि आसान नहीं होता है।
अधिकांश निवेशक नकारात्मक खबर से बदहवास हो जाते हैं। उन्हें बाजार की समझ नहीं होती है। वे भीड़ के साथ चलते हैं। इतना ही नहीं, रेटिंग एजेंसियां भी भीड़ के साथ चलती हैं। वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज ने 13 फरवरी 2023 को अडाणी समूह की 4 कंपनियों के आउटलुक को स्टेबल से निगेटिव कर दिया है। यहाँ सवाल का उठना लाजिमी है कि क्या पहले यह एजेंसी सो रही थी?
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से निवेशक इतने आतंकित हो गए कि अडाणी समूह के सबसे प्रमुख उपक्रम अडाणी इंटरप्राइजेज के शेयर अपने सार्वजनिक निर्गम के आधार मूल्य से नीचे चले गए और अडाणी को उन्हें वापिस लेना पड़ा। अब कुछ विश्लेषक यह कह रहे हैं कि अडाणी समूह के शेयरों का मूल्यांकन पहले से ही ज्यादा था। गिरावट के बाद उनकी वास्तविक कीमत सामने आई है, लेकिन यहाँ पर सवाल यह उठता है कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद ही अडाणी समूह के शेयर अपनी वास्तविक कीमत पर क्यों आये? पहले क्यों नहीं?
निवेशकों का भरोसा बनाए रखने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को स्पष्ट करना पड़ा पड़ा कि अडाणी समूह की वितीय स्थिति मजबूत है और किसी भी निवेशक को डरने की जरूरत नहीं है। वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि अडानी के बैंक ऋण के डिफ़ाल्ट होने की संभावना नहीं है, क्योंकि अडाणी समूह सभी प्रकार के ऋण की किस्त एवं ब्याज समय पर चुका रहा है। लिहाजा, भारतीय बैंकों का पैसा डूबने का कोई खतरा नहीं है।
चूँकि, भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) का 31 दिसंबर 2022 तक अडाणी समूह में 35,917।31 करोड़ रुपए का निवेश था और इसकी कुल संपत्ति 36 लाख करोड़ रुपए की है। इसलिए, एलआईसी के डूबने का अंदेशा भी बेबुनियाद है।
भारतीय बैंकों में भारतीय स्टेट बैंक ने अडाणी समूह को 27 हजार करोड़ रुपए का ऋण दिया है, जो स्टेट बैंक की पूँजी का महज 0.88 प्रतिशत है। पंजाब नेशनल बैंक ने अडाणी समूह को 7000 करोड़ रुपए का ऋण दिया है, जबकि जम्मू-कश्मीर बैंक ने 250 करोड़ रुपए का ऋण अडाणी समूह को दिया है। सभी बैंकों का कर्ज स्टैण्डर्ड है और कंपनी समय पर किस्त एवं ब्याज बैंकों को चुका रही है।
वैश्विक ब्रोकरेज फर्म सीएसएलए के अनुसार अडाणी समूह पर कुल 2 लाख रुपए का कर्ज है, जिसमें से भारतीय बैंकों की हिस्सेदारी 80 हजार करोड़ रुपए से कम है, जिसमें निजी बैंकों की हिस्सेदारी लगभग 10 प्रतिशत है। वैश्विक फर्म जेफरीज़ के अनुसार अडाणी समूह को दिया गया कर्ज नियामकों द्वारा तय दिशा-निर्देशों के अनुरूप है। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी साफ़ किया है कि भारतीय बैंकों ने दिशा-निर्देशों के तहत अडाणी समूह को कर्ज दिए हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि जब भारतीय और विदेशी बैंकों ने तय दिशा-निर्देशों के अंतर्गत अडाणी समूह को ऋण दिये हैं और अडाणी समूह बैंकों को समय पर किस्त और ब्याज का भुगतान कर रहा है तो अडाणी समूह को लेकर सवाल क्यों खड़े किये जा रहे हैं? क्यों कहा जा रहा है कि भारतीय बैंकों द्वारा अडाणी समूह को दिये गए ऋण डूब जाएंगे?
बता दें कि न्यूयॉर्क शहर में अवस्थित हिंडनबर्ग अनुसंधान करने वाली एक छोटी सी कंपनी है, जो शेयर, क्रेडिट, डेरिवेटिव बाजार का विश्लेषण करती है।
नाथन एंडरसन ने वर्ष 2017 में इसकी स्थापना की थी। यह मोटे तौर पर अनुसंधान के जरिये कॉर्पोरेट धोखाधड़ी को उजागर करने का दावा करती है। इसी क्रम में इसने 25 जनवरी 2023 को एक रिपोर्ट जारी करके कहा कि अडाणी समूह बीते कई सालों से शेयरों में और कंपनियों की बैलेंसशीट में हेराफेरी करके निवेशकों और कर्ज प्रदाताओं के साथ धोखाधड़ी कर रही है।
यह रिपोर्ट अडाणी इंटरप्राइजेज़ के 20000 करोड़ रुपए के एफपीओ लाने से ठीक पहले जारी किया गया, लिहाजा हिंडनबर्ग की मंशा पर भी सवाल उठ रहे हैं।
मार्च 2020 तक देश में कुल 4.09 करोड़ डीमैट खाते थे, जिनकी संख्या अगस्त 2022 में बढ़कर 10 करोड़ को पार कर गई है। एनएसडीएल और सीडीएसएल के आंकड़ों के अनुसार देश में अभी लगभग 10.05 करोड़ डीमैट खाते हैं, जो यह बताते हैं कि आज बड़ी संख्या में निवेशक शेयर बाजार में निवेश कर रहे हैं।
अडाणी मामले में बड़ी संख्या में निवेशकों को नुकसान होने की वजह से यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में चला गया। अदालत ने शेयर बाजार के लिए नियामकीय तंत्र को और भी मजबूत बनाने पर जोर दिया, ताकि निवेशकों को नुकसान नहीं उठाना पड़े। यह सही भी है, क्योंकि सटोरियों की वजह से छोटे निवेशकों को शेयर बाजार में आये दिन नुकसान उठाना पड़ता है। इसी क्रम में अदालत ने केंद्र सरकार को एक विशेषज्ञ समिति गठित करने के लिए कहा, जिसे सरकार ने मान लिया है। अब समिति की जांच के बाद वस्तुस्थिति साफ़ होने की उम्मीद है।
शेयर बाजार का नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम बोर्ड (सेबी) है, जो सूचीबद्ध कंपनियों की गतिविधियों पर नजर रखने का काम करता है। अगर कोई सूचीबद्ध कंपनी सेबी के साथ किये गए क़रारनामा से इतर काम करती है तो सेबी उसे बीएसई या एनएसई से हटा सकती है। इसका काम कृत्रिम तरीके से शेयरों की कीमतों को बढ़ाने या नीचे गिराने वाले दलालों पर भी लगाम लगाना है।
शेयर का अर्थ होता है हिस्सा। शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियों के शेयरों को शेयर ब्रोकर की मदद से खरीदा व बेचा जाता है यानी कंपनियों के हिस्सों की खरीद-बिक्री की जाती है। भारत में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) नाम के दो प्रमुख शेयर बाजार हैं। शेयर बाजार में बांड, म्युचुअल फंड और डेरिवेटिव भी खरीदे एवं बेचे जाते हैं। कोई भी सूचीबद्ध कंपनी पूँजी उगाहने के लिये शेयर जारी करती है। जितना निवेशक शेयर खरीदते हैं, उतना उसका कंपनी पर मालिकाना हक हो जाता है।
निवेशक अपने हिस्से के शेयर को ब्रोकर की मदद से शेयर बाजार में कभी भी बेच सकते हैं। ब्रोकर इस काम के एवज में निवेशकों से कुछ शुल्क लेते हैं।
किसी कंपनी के कामकाज का मूल्यांकन ऑर्डर मिलने या नहीं मिलने, नतीजे बेहतर रहने, मुनाफा बढ़ने या घटने, आयत या निर्यात होने या नहीं होने, कारखाने या फैक्ट्री में कामकाज ठप्प पड़ने, उत्पादन घटने या बढ़ने, तैयार माल का विपणन नहीं होने, कंपनी के बारे मीडिया में अच्छी या बुरी खबर के प्रचार-प्रसार आदि के आधार पर किया जाता है और इसी के आधार पर शेयरों की कीमतों में रोज उतार-चढाव आता है।
आमतौर पर अर्थतंत्र की समझ नहीं होने या कंपनी की वित्तीय स्थिति से अंजान रहने या फिर ज्यादा लालच की वजह से निवेशकों को नुकसान उठाना पड़ता है। मौजूदा समय में निवेशकों को किसी रिपोर्ट पर ऐतबार करने की जगह खुद से मामले के गुण-दोष का आकलन करना चाहिए। खासकर तब, जब अडाणी समूह को दिए गए कर्ज में लगभग 60 प्रतिशत की हिस्सेदारी विदेशी बैंकों की है और अभी तक रिपोर्ट की सत्यता साबित नहीं हुई है बल्कि वो सवालों के घेरे में बनी हुई है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)