कांग्रेस का एक वरिष्ठ नेता, जो पूर्व में देश का गृहमंत्री रह चुका है, की कश्मीर के प्रति ऐसी सोच क्या चिंताजनक नहीं है ? क्या इस गैर-जिम्मेदाराना बयान के लिए कांग्रेस को चिदंबरम के प्रति अनुशासनात्मक कार्यवाही नहीं करनी चाहिए या कम से कम उन्हें इसके लिए माफ़ी मांगने का निर्देश नहीं देना चाहिए ? होना तो ये सबकुछ चाहिए था, पर हुआ कुछ नहीं है। ऐसे में यह क्यों न माना जाए कि कांग्रेस ऊपर-ऊपर भले ही चिदंबरम के बयान से कन्नी काट रही हो, मगर अंदरूनी तौर पर उनसे सहमत है।
भारत की आजादी के 70 साल हो गए हैं, लेकिन कश्मीर को लेकर विवाद थम नहीं रहा है। कश्मीर को लेकर राजनीतिक गलियारों में सदैव हलचल रहती है, लेकिन वर्ष 2014 में पीएम मोदी द्वारा केंद्र की सत्ता संभालने के बाद कश्मीर की जनता का विश्वास हासिल करने और उसे आतंकवाद से मुक्त करने की दिशा में कई स्तरों पर प्रयास किए जा रहे हैं। अब केंद्र सरकार कश्मीर में शांति और प्रगति के लिए इतनी जद्दोजहद कर रही है, परन्तु विपक्ष की आंखों पर अंधविरोध की वो पट्टी बंधी है, जिसे कोई उतार नहीं सकता।
विगत दिनों सरकार ने कश्मीर मसले पर सम्बंधित सभी पक्षों से बातचीत के लिए पूर्व आईबी प्रमुख दिनेश्वर शर्मा को अपना वार्ताकार नियुक्त किया। सरकार के इस कदम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कांग्रेस के दिग्गज नेता पी. चिदंबरम ने कश्मीर की आजादी का समर्थन करने वाला एक बयान दे डाला। चिदंबरम के इस बयान के बाद उन्हें हर तरफ से आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है।
कश्मीर को आतंकवाद जैसी मूल समस्या से निजात दिलाने और कश्मीरियों का विश्वास हासिल करने के लिए केंद्र सरकार काम कर रही है, ऐसे में उसकी सराहना करने की बजाय कश्मीर की आजादी की पैरवी करना राष्ट्र की अखंडता पर कुठाराघात करने जैसा ही है। कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम पहले भी कश्मीर को स्वायत्तता देने की हिमायत कर चुके हैं। चिदंबरम के बयान से कांग्रेस ने खुद को बड़े सुविधाजनक ढंग से अलग-थलग तो कर लिया है, पर सवाल उठता है कि क्या इतना काफी है ?
कांग्रेस का एक वरिष्ठ नेता, जो पूर्व में देश का गृहमंत्री रह चुका है, उसकी कश्मीर के प्रति ऐसी सोच क्या चिंताजनक नहीं है ? क्या इस बयान के लिए कांग्रेस को चिदम्बरम के प्रति अनुशासनात्मक कार्यवाही नहीं करनी चाहिए या उन्हें इसके लिए माफ़ी मांगने का निर्देश नहीं देना चाहिए ? होना तो ये सबकुछ चाहिए था, पर हुआ कुछ नहीं है। ऐसे में यह क्यों न माना जाए कि कांग्रेस ऊपर-ऊपर भले ही चिदंबरम के बयान से कन्नी काट रही हो, मगर अंदरूनी तौर पर उनसे सहमत है। चिदंबरम पर किसी प्रकार की कार्यवाही का न होना तो यही संकेत दे रहा है। अब जो भी हो, कांग्रेस को इस मसले पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।
चिदंबरम के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने बंगलुरु के एक कार्यक्रम कहा कि कांग्रेस कश्मीर पर पाकिस्तान की भाषा बोल रही है। वहीं सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी ने ट्वीट कर कहा, ‘पी. चिदंबरम का अलगाववादियों और ‘आजादी’ का समर्थन करना हैरान करने वाला है। हालांकि मैं आश्चर्यचकित नहीं हूं, क्योंकि उनके नेता ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ नारे का समर्थन करते हैं।’ उन्होंने यह भी कहा, ‘यह शर्मनाक है कि चिदंबरम ने उन सरदार पटेल के जन्म स्थल गुजरात में यह बोला, जिन्होंने भारत की एकता एवं खुशहाली के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।’ ईरानी के अलावा केंद्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली समेत कई राजनेताओं ने इसकी आलोचना की।
कांग्रेस चाहे इस बात को सिरे से नकार दे, लेकिन घाटी के लोगों को पीएम मोदी और भाजपा सरकार का काम साफ दिखाई दे रहा है। विशेषकर जम्मू की सरकार में बराबरी का अधिकार मिलने के बाद भाजपा घाटी को आतंकवाद से मुक्त करने और अन्य स्थानीय परेशानियों से वहाँ के लोगों निकालने के लिए सकारात्मक दिशा में काम करने में लगी हुई है। कांग्रेस द्वारा जो निंदा की जा रही है, वो सरकार के इन सार्थक कार्यों को सहन न कर पाने की भड़ास भर है।
(लेखिका पेशे से पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)