नेशनल हेराल्ड मामले में राहुल गांधी और सोनिया गांधी को दिल्ली हाईकोर्ट से तगड़ा झटका लगा। कोर्ट ने इन दोनों की वह याचिका सिरे से खारिज कर दी जिसमें इन्होंने आयकर विभाग के कर मूल्यांकन संबंधी नोटिस को चुनौती दी थी। यह पुर्नमूल्यांकन वर्ष 2011 और 2012 के लिए था। असल में यह कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है। ऐसा लगता है कि इसी मुद्दे पर से ध्यान हटाने के लिए राहुल गांधी ने माल्या के मसले को अनावश्यक तूल दिया ताकि मीडिया का ध्यान उनकी किरकिरी पर ना जाए। जिस दिन यह फैसला आया, कांग्रेस भारत बंद का आयोजन करके बैठ गयी ताकि इसको कोई अधिक कवरेज और चर्चा न मिले। फिर माल्या का मामला बेमतलब ही उठा लिया।
बीता सप्ताह सिलसिलेवार सियासी घटनाक्रमों का साक्षी रहा। अव्वल तो भगोड़े कारोबारी विजय माल्या की लंदन स्थित कोर्ट में पेशी के दौरान उसका यह सनसनी फैलाने वाला बयान कि वह देश छोड़ने से पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली से मिला था, सुर्ख़ियों में रहा। हालांकि जेटली ने तुरंत ही माल्या के बयान का खंडन करके बेसिर पैर की अफवाहों, अटकलों को वहीं रोक दिया लेकिन केंद्र सरकार के खिलाफ पिछले चार वर्षों से मुददे के लिए तरस रही कांग्रेस अब खिसियाकर इसे ही मुद्दा बनाने पर आमाद हो गई है।
यह बात अलग है कि इसमें भी उसे सफलता नहीं मिल सकी और कांग्रेस के मंसूबे पूरे नहीं हो सके। इससे पहले एक और बड़ी खबर सामने आई लेकिन पता नहीं क्यों उस पर किसी का ध्यान या तो गया नहीं या जाने नहीं दिया गया। नेशनल हेराल्ड मामले में राहुल गांधी और सोनिया गांधी को दिल्ली हाईकोर्ट से तगड़ा झटका लगा। कोर्ट ने इन दोनों की वह याचिका सिरे से खारिज कर दी जिसमें इन्होंने आयकर विभाग के कर मूल्यांकन संबंधी नोटिस को चुनौती दी थी।
यह पुर्नमूल्यांकन वर्ष 2011 और 2012 के लिए था। असल में यह कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है। ऐसा लगता है कि इसी मुद्दे पर से ध्यान हटाने के लिए राहुल गांधी ने माल्या के मसले को अनावश्यक तूल दिया ताकि मीडिया का ध्यान उनकी किरकिरी पर ना जाए। जिस दिन यह फैसला आया, कांग्रेस भारत बंद का आयोजन करके बैठ गयी ताकि इसको कोई अधिक कवरेज और चर्चा न मिले। फिर माल्या का मामला बेमतलब ही उठा लिया।
लेकिन आखिर देश की जनता को भला राहुल गांधी इतनी आसानी से अंधेरे में कैसे रख सकते हैं। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने वक्तव्य जारी करके कांग्रेस पर करारा निशाना साधा। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने इस मामले में शुरू से तथ्य छुपाए हैं। उन्होंने यह कभी नहीं बताया कि वे यंग इंडिया नामक कंपनी के डायरेक्टर थे। इसी कंपनी ने पूरे 5 हजार करोड़ जैसी बड़ी राशि का गबन किया और देश को बड़ा आर्थिक नुकसान पहुंचाया। यह बात भी देश से छुपाई गई। बेहतर होता कि अरुण जेटली पर अंगुली उठाने से पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी स्वयं के गिरेबान में झांककर देख लेते और नेशनल हेराल्ड पर वस्तुस्थिति साफ़ करते।
उन्होंने यंग इंडिया कंपनी के ज़रिये एक अहम वित्तीय मसला समाचारों से छुपाए रखा जिसके चलते व्यापक पैमाने पर कालेधन को सफेद करने की कारगुजारी की संभावनाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता। कम से कम तथ्य और दृष्टांत तो यही इशारा करते हैं, अन्यथा क्या जरूरत थी कि 2011 में कांग्रेस ने अपने शासन के दौरान उक्त कंपनी को कथित तौर पर 90 करोड़ रुपए का कर्ज दिया और इसकी सारी देनदारियां स्वयं ले लीं। इसमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी दोनों ने हिस्सेदारी ली थी।
नेशनल हेराल्ड मामले में उनके साथ मोतीलाल वोरा, सैम पित्रोदा, आस्कर फर्नांडीस और सुमन दुबे जैसे कांग्रेसी नेतागण भी आरोपी हैं। कहने का आशय यह है कि इस गोरखधंधे में पार्टी के ऊपर से लेकर नीचे तक के नेता सवालों के घेरे में हैं। प्रतीत होता है कि इतने बड़े मामले में ताजा सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट से झटका लगने के बाद मानो कांग्रेस अध्यक्ष बौखला ही गए और इस बौखलाहट से उपजी खीझ को मिटाने और इस मामले से जनता का ध्यान हटाने के लिए अनावश्यक रूप से माल्या के बयान को तूल दे रहे।
एक मिनट को यदि मान लिया जाए कि माल्या जैसे भगोड़े कारोबारी से वित्त मंत्री जेटली मिले थे, तो इसमें यह कैसे स्पष्ट होता है कि उन्होंने ही माल्या को देश से जाने दिया। यदि राहुल गांधी किसी मेल मुलाकात को ही निष्कर्ष मान लेते हैं तो उनके इस तर्क के अनुसार तो जेटली ने राहुल गांधी से भी कई बार भेंट की है तो क्यों ना इसका यह अर्थ निकाला जाए कि वित्त मंत्री ने नेशनल हेराल्ड के करोड़ों के गबन के आरोपी से मुलाकात की?
यदि कांग्रेसी तर्क की भाषा समझते तो यह बात ही ना उठाते, लेकिन ऐसा मालूम होता है कि कांग्रेसी केवल और केवल कुतर्क ही करना जानते हैं। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कार्यक्रम आदि में सोनिया गांधी से मिलते रहे हैं, तो क्या इसका ये अर्थ हो गया कि कई घोटालों की जिम्मेदार सोनिया गांधी से प्रधानमंत्री स्वयं मिले हुए हैं? यह तो बहुत ही बचकाना और हास्यास्पद तर्क है।
और यहां यह उल्लेख करना जरूरी होगा कि विजय माल्या कांग्रेस के ही शासन काल में फला-फूला। माल्या पहली बार वर्ष 2002 में कर्नाटक से बतौर निर्दलीय चुनाव लड़कर राज्यसभा में पहुंचा था। जनता दल सेक्युलर और कांग्रेस के समर्थन के बाद ही यह संभव हो पाया था। वर्ष 2010 में जब उसे संसदीय समिति में शामिल किया गया था तब भी नियमों की अनदेखी की गई थी। तब यूपीए की ही सरकार थी।
यह भी आश्चर्य की बात है कि माल्या का व्यक्तित्व और कार्यक्षेत्र उक्त समिति की सदस्यता के लिए वांछित दायरे में आता ही नहीं था। उन्हें इसमें लाने के लिए नियमों को दरकिनार किया गया। सवाल यह उठता है कि जब यह सब हो रहा था, तब राहुल गांधी कहां थे।
राहुल गांधी इस तरह की चालबाजियों के जरिये यदि मोदी सरकार की छवि को नुकसान पहुँचाना चाहते हैं, तो ये एक विपक्ष के नाते तो उनकी स्थिति को कमजोर कर ही रहा है, कांग्रेस की रही-सही छवि भी इससे बर्बाद हो रही है। राहुल गांधी को यह बात समझ लेनी चाहिए। बहरहाल, नेशनल हेराल्ड मामले में निश्चित ही कानून अपना काम करेगा और इसके दोषियों को उचित दंड जरूर मिलेगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)