अमित शाह के कश्मीर दौरे के दौरान यह साफ़ हो गया था कि कश्मीर में सही वक़्त पर चुनाव भी होंगे लेकिन उससे पूर्व आतंकियों की नकेल भी कसी जाएगी। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान सेना को आतंकियों से निबटने में खुली छूट दी गई थी, जिसका नतीजा यह हुआ कि स्थानीय आतंकियों की एक पूरी की पूरी जमात का सफाया हो गया, जो सोशल मीडिया पर एके-47 लहराकर नई पीढ़ी को बरगलाने का काम कर रहे थे।
क्या घाटी की पहेली सुलझ जाएगी? पिछले 70 वर्षों से चल रहे इस विवाद को ख़त्म करने का जिम्मा अब नए गृह मंत्री अमित शाह के हाथों में है। तय है, तमाम उम्मीदों पर खरा उतरना उनके लिए एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी है और चुनौती भी। आने वाले कुछ समय में कश्मीर को लेकर भारत सरकार की क्या प्राथमिकताएं होंगी, इसकी एक बानगी संसद में देखने को मिल गई है।केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कश्मीर चर्चा पर अपने पहले भाषण में कहा कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और रहेगा, इसपर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
अमित शाह को जब गृह मंत्रालय का जिम्मा दिया गया तो यह कयास थे कि कश्मीर को लेकर सरकार और अधिक दृढ़ता और रणनीति के साथ बढ़ेगी। दबाव अब उन चरमपंथियों के ऊपर रहेगा जो कश्मीर में अलगाववाद को हवा देते हैं। इसपर मोदी सरकार का रुख और सख्त ही होगा। ठीक ऐसा ही होता दिख रहा है।
शाह ने स्पष्ट किया कि कश्मीर में अमन और शांति के लिए कश्मीरियत, इंसानियत और जम्हूरियत को लेकर भारत की प्रतिबद्धता है, लेकिन इसको केंद्र की कमजोरी के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। पिछले दिनों अपनी पहली कश्मीर यात्रा के दौरान भी अमित शाह ने यह रेखांकित किया कि केंद्र सरकार आतंकवाद को लेकर और भी सख्त रवैया अख्तियार करने वाली है, खासकर कश्मीर में विदेशी आतंकियों की गतिविधियों को लेकर।
ऐसा पहली बार हुआ कि किसी केन्द्रीय मंत्री के कश्मीर दौरे पर किसी बंद का आयोजन भी नहीं किया गया साथ ही गृह मंत्री ने अलग से किसी अलगाववादी नेता से मुलाकात भी नहीं की। हाँ, इस दौरे के समय कश्मीर के गुज्जर और बकरवाल समुदाय के नेताओं से जरूर मुलाकात की गई जो जम्मू कश्मीर के बहुत बड़े जनजातीय समूह की नुमाइंदगी करते हैं।
जिस समय अमित शाह कश्मीर दौरे पर थे, उस समय कई बड़े नेताओं के घरों पर इनकम टैक्स के छापे भी पड़ रहे थे। केंद्र के राडार पर कश्मीर के वैसे नेता भी शामिल हैं जो चेहरे पर नकाब लगाकर रात के अँधेरे में आतंकवादियों को अपने दस्तरख्वान पर बुलाते हैं।
अमित शाह के इस दौरे के दौरान यह साफ़ हो गया था कि कश्मीर में सही वक़्त पर चुनाव भी होंगे लेकिन उससे पूर्व आतंकियों की नकेल भी कसी जाएगी। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान सेना को आतंकियों से निबटने में खुली छूट दी गई थी, जिसका नतीजा यह हुआ कि स्थानीय आतंकियों की एक पूरी की पूरी जमात का सफाया हो गया, जो सोशल मीडिया पर एके-47 लहराकर नई पीढ़ी को बरगलाने का काम कर रहे थे।
गृह मंत्री ने सीमा पर रहने वाले लोगों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में तीन फीसद आरक्षण देने की घोषणा करके अलगावादियों के असली चेहरे को बेनकाब कर दिया, जो घोषणा होते ही विरोध पर उतारू हो गए। यह एक बड़ा कदम है, जिसका असर आगे दिखाई देगा।
दरअसल अभी यह तो सिर्फ़ शुरुआत भर है, देश भर में अनुच्छेद 370 को ख़त्म करने और 35-ए में संशोधन करने के पक्ष में हवा बहुत तेजी से चल रही है। इसका समर्थन भी काफी लोग कर रहे हैं लेकिन वैसे लोग भी बहुत हैं जिनकी दुकानदारी विरोध की राजनीति पर चल रही है। मगर मोटे तौर पर घाटी में जिस तरह से बदलाव आ रहा है, उससे लगता है कि ये गुत्थी सुलझने की दिशा में है। अब देखना होगा कि मोदी सरकार इसपर किस तरह और कितना आगे बढ़ पाती है तथा इस ऐतिहासिक समस्या को कबतक अंजाम तक पहुंचा पाती है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)