जर्मनी के हैम्बर्ग में राहुल ने आईएसआईएस की प्रक्रिया पर अपना शोध जग जाहिर किया। राहुल को समझना होगा कि आतंकवाद एक मजहबी कट्टरता का परिणाम है। भारत में गरीबी और बेरोजगारी है, लेकिन आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली विचारधारा का वर्चस्व नहीं है। इसलिए यहां अपराध तो हो सकते हैं, लेकिन ये युवक आतंकवादी नहीं हो सकते। राहुल ने अपने ही देश के युवकों का अपमान किया है।
पहले राहुल गांधी अक्सर गोपनीय विदेश यात्राओं पर निकल जाते थे। कोई नहीं जानता था कि वह कहाँ गए हैं, उनका कोई बयान भी नहीं आता था। बताया जाता कि वह चिंतन-मनन के लिए अज्ञातवास पर गए हैं। लेकिन लम्बा समय बिताकर जब उनकी वापसी होती तो भी कोई फर्क दिखाई नहीं देता था। फिर भी विदेश में उनका कुछ न बोलना देश के लिए राहत की बात थी। कई बार यह भी कहा गया था कि वह अपनी नानी को देखने इटली गए हैं। यह सब गनीमत थी।
मुश्किल तब से है जब से राहुल ने विदेश में बोलना शुरू किया है। लगता है कि भारत विरोधी तत्व जानबूझ कर उन्हें आमंत्रित करते हैं और वे वहाँ जाकर भारत की छवि खराब करने वाली अनर्गल बातें बोल आते हैं। राहुल भारत की विपक्षी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। क्या विश्व मंच से वह यह नहीं कह सकते थे कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सदस्यता मिलनी चाहिए; क्या आतंकवाद का बेतुका कारण बताने की जगह उंसकी निंदा नहीं कर सकते थे; क्या यह नहीं कह सकते थे कि भारत विश्व शांति का हिमायती है; भारत में आतंकवादी नहीं होते; यहां विविधता में एकता है।
लेकिन राहुल इस स्तर तक पहुंच ही नहीं सकते। विश्व मंच पर वह नोटबन्दी, जीएसटी, आपराधिक घटनाओं के चित्रण तक सीमित रहे। भारत और विश्व पर बोलना था, वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर बोलते रहे। महिलाओं के लिए संघ में जगह नहीं है, इस झूठ को राहुल कितनी बार बोलेंगे।
शायद राहुल गांधी के लिए देश की सीमाएं कम पड़ गई थीं, अब यूरोप तक उन्होंने अपने विचार पहुंचा दिए हैं। उनकी जो छवि देश में थी उसका विस्तार हुआ। राहुल ने अपना सम्पूर्ण राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक ज्ञान यहां उड़ेल दिया। कहा कि बेरोजगारी और गरीबी से आतंकवाद फैल रहा है। राहुल के इस भाषण से विश्व हतप्रभ रह गया। लगा कि भारतीय चिंतन और विश्व शांति के लिए राहुल के पास बोलने के लिए कुछ भी नहीं है। किसी भी नेता के लिए यह वैचारिक दिवालियेपन की स्थिति होती है।
राहुल ने एक बार भी नहीं सोचा कि जिस संघ पर वह विदेशी धरती पर हमला बोल रहे है, वह केरल की आपदा में सेना के साथ मिलकर प्रबंधन व राहत का कार्य कर रहा है। दूसरों की जान बचाने में अनेक स्वयं सेवकों ने जीवन बलिदान कर दिया। विचित्र है कि इस संघ की तुलना राहुल मध्यपूर्व की संस्था मुस्लिम ब्रदर हुड़ से कर रहे थे।
जर्मनी के हैम्बर्ग में राहुल ने आईएसआईएस की प्रक्रिया पर अपना शोध जग जाहिर किया। राहुल को समझना होगा कि आतंकवाद एक मजहबी कट्टरता का परिणाम है। भारत में गरीबी और बेरोजगारी है, लेकिन आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली विचारधारा का वर्चस्व नहीं है। इसलिए यहां अपराध तो हो सकते हैं, लेकिन ये युवक आतंकवादी नहीं हो सकते। राहुल ने अपने ही देश के युवकों का अपमान किया है।
राहुल जब गरीबी-बेरोजगारी की बात करते हैं, तब वह भाजपा से ज्यादा अपनी ही पार्टी पर निशाना लगा रहे होते हैं। ये सभी समस्याएं चार वर्ष में पैदा नहीं हुई हैं। सबसे अधिक समय तक शासन करने वाली कांग्रेस इनके लिए मुख्य जिम्मेदार है। मौजूदा सरकार इन समस्याओं के निर्मूलन की दिशा में प्रभावी ढंग से कार्य कर रही है।
राहुल शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विदेश में दिए गए भाषण की बराबरी करना चाहते हैं। लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि मोदी ने कभी देश की छवि नहीं बिगाड़ी। यूपीए सरकार के अंतिम वर्षो में नीतिगत पंगुता और घोटालों की वजह से निवेश रुक गया था। मोदी यही कहते थे कि अब ये कमियां दूर कर दी गई हैं। मोदी यह बात देश हित में कहते थे, राहुल देश की छवि से खिलवाड़ कर रहे है। हालिया कई विदेशी दौरों में उनके विचारों को देखने के बाद लगता है कि उन्होंने विदेशों में देश की छवि खराब करने का कोई अघोषित ठेका ले रखा है।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)