प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सर्वदलीय बैठक तथा स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण मे बलूचिस्तान मे हो रहे मानवाधिकार के उल्लघंन की चर्चा की तो दुनिया भर से बलोच नागरिकों ने प्रधानमंत्री को धन्यवाद दिया। इस घटना के बाद आल इंडिया रेडियो ने भी सांस्कृतिक आदान-प्रदान की दृष्टि से बलोच भाषा में जम्मू-काश्मीर से प्रसारण शुरू करने की घोषणा की। इस कदम को भी बलोचियों ने काफी सराहा, लेकिन भारत मे मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस इस उधेड़बुन मे पड़ी है कि पाकिस्तान के खिलाफ प्रधानमंत्री के कड़े रुख का समर्थन किया जाना चाहिए या नहीं। जहां एक तरफ कांग्रेस के बड़े नेताओं सलमान खुर्शीद, कपिल सिबल और मनीष तिवारी ने प्रधानमंत्री के इस कड़े रुख की आलोचना की तो वहीँ दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सिह सुरजेवाला प्रधानमंत्री के इस रुख का समर्थन किया और कहा कि भारत को इस मुद्दे को द्विपक्षीय, बहुपक्षीय स्तर पर उठाना चाहिए। कांग्रेस के अन्दर परस्पर-विरोधी मत से ऐसा लगता है कि कांग्रेस इस मुद्दे पर दो भागों मे बंटी है। दरअसल कांग्रेस समझ नहीं पा रही कि वो मोदी की इस बलूचिस्तान नीति पर क्या रुख अपनाए।
कांग्रेस की यह भ्रम स्थिति कोई नहीं है, यह तो उन्हें विरासत मे मिली है। बलूचिस्तान की वर्तमान दुर्दशा भी कांग्रेस की ऐसी ही भ्रम स्थिति का परिणाम है। पाकिस्तानी सेना के अत्याचार की कहानी 27 मार्च 1948 से प्रारम्भ होती है। कालात (बलूचिस्तान का अधिकांश क्षेत्र उस समय कालात के नाम से ही जाना जाता था) बलूचिस्तान का प्रिंसली स्टेट अपने स्वतंत्रता की शैशवावस्था में पाकिस्तान के गुलामी की बलि चढ़ गया, जब भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु ने कालात के राजा का कालात को भारत मे सम्मिलित करने का अनुरोध अस्वीकार कर दिया, जिसका परिणाम पाकिस्तान का कालात पर आक्रमण और जबर्दस्ती कब्जा करने के रूप में सामने आया।
लंदन की थिंक टैंक ‘द फॉरेन पालिसी सेंटर’ अपने शोध कार्य ‘बलोच आफ पाकिस्तानः ऑन द मार्जिन ऑफ हिस्टरी’ में ‘आल इंडिया रेडियो’ के खबर का हवाला देते हुए मार्च 27, 1948 के वीपी मेनन के प्रेस कांफ्रेंस का जिक्र किया है, जिसमें मेनन ने कालात के बादशाह द्वरा भारत में सम्मिलित होने के अनुरोध की बात कही। जब पाकिस्तान ने बलपूर्वक कालात को अपने कब्जे में कर लिया और पाकिस्तानी सेना के दबाव में कालात के बादशाह ने भी इस तरह के किसी पेशकश से इंकार कर दिया और इधर पंडित नेहरु ने भी इंकार कर दिया कि कालात ने इस तरह का कोई प्रस्ताव दिया था। नेहरु के दबाव में मेनन ने भी कहा कि ‘आल इंडिया रेडियो’ गलती से इस तरह का समाचार एयर कर दिया और आपने वक्तव्य से पीछे हट गए। हो सकता है कि पंडित नेहरु के निर्णय समय पर न लेने के कारण वे इस तरह की किसी बात से इकार कर दिये हों और अपने देश के अन्दर आलोचना से भी बचना चाहते हों। ठीक इसी तरह के भ्रम में आज की भी कांग्रेस है। पड़ोसी अफगानिस्तान भी प्रधानमंत्री मोदी के इस कदम का समर्थन किया है, लेकिन मुख्य विपक्षी कांग्रेस अपने रुख को लेकर ढुलमुल नजर आई।
बलूचिस्तान की वर्तमान दुर्दशा कांग्रेस की ऐतिहासिक गलतियों का ही परिणाम है। पाकिस्तानी सेना के अत्याचार की कहानी 27 मार्च 1948 से प्रारम्भ होती है। कालात (बलूचिस्तान का अधिकांश क्षेत्र उस समय कालात के नाम से ही जाना जाता था) बलूचिस्तान का प्रिंसली स्टेट अपने स्वतंत्रता की शैशवावस्था में पाकिस्तान के गुलामी की बलि चढ़ गया। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु ने कालात के राजा का कालात को भारत मे सम्मिलित करने का अनुरोध अस्वीकार कर दिया। इसका परिणाम पाकिस्तान के कालात पर आक्रमण और जबर्दस्ती कब्जा करने के रूप में सामने आया। स्पष्ट है कि नेहरु की गलती ने कालात यानी बलूचिस्तान को पाकिस्तान के कब्जे में पहुंचा दिया।
ह्यूमन राइट वाच का वल्र्ड रिपोर्ट 2015 बलूचिस्तान मे मानवाधिकार की स्थिति को काफी दयनीय बताया है। रिपोर्ट ने जिक्र किया है कि 2013 मे सिविलियन सरकार के आने के बावजूद सारा निर्णय पाकिस्तानी सेना लेती है। सिविल सोसाइटी और मीडिया जैसी संस्थाओं के गतिविधियों पर पाबंदी लगा दी गयी है, जो लोग पाकिस्तानी सेना के के अत्याचार का विरोध करते हैं, वे आश्चर्यचकित ढंग से गायब हो जाते हैं। रिपोर्ट में इस तरह की घटनाओं के लिए पाकिस्तानी सेना को जिम्मेवार ठहराया गया है।
पाकिस्तानी शासन का यह अत्याचार केवल बलोचियों तक ही सीमित नहीं है। यह अत्याचार वहां रह रहे हिन्दू, ईसाई, हजारा और पश्तूनों के खिलाफ भी हैं। अरब के आक्रमण के पहले बलूचिस्तान में हिन्दू शासक का शासन था। डेली टाइम्स के स्तंभकार मुहम्मद अकबर नोतेजई अपने स्तम्भ ‘बलोचिस्तान हिन्दुज डायलमा’ मे लिखते हैं कि यार मुहम्मद खान के शासन में हिन्दुओं को उचित आदर और आर्थिक एव धार्मिक स्वतत्रता मिली हुई थी। इसलिए हिन्दू बंटवारे के समय बलूचिस्तान को छोड़ कर भारत नही गए। मुहम्मद अकबर नोतेजई अपने लेख में हिन्दुओं के वर्तमान स्थिति पर आश्चर्य व्यक्त किया है। वे बताते हैं कि आज हिन्दू अपना धार्मिक क्रियाकलाप तक नहीं कर सकते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार परवेज मुसर्रफ के तानाशाही में 35 हिन्दुओं जिसमें महिलाएं बच्चे भी शामिल थे, की हत्या नवाब अकबर खान बुगती के खिलाफ जारी सैन्य ऑपरेशन में की गई। इसका एक कारण बताते हैं कि बुगती अपने किले डेरा बुगती मे अपनी सुरक्षा के लिए हिन्दुओं को रखते थे।
पाकिस्तानी सेना का बढ़ता अत्याचार और बलूचिस्तान के समृद्ध खनिज-सम्पदा के भण्डारण के शोषण के लिए तथा उसके सामरिक स्थिति का फायदा उठाने के लिए पाकिस्तान की मदद से चीन की बलूचिस्तान में दखलदाजी बढ़ रही है। जो बलोचियों को बाध्य कर दिया है कि मदद के लिए भारत की तरफ देखें। पहले बलोच पर पाकिस्तानी सेना द्वारा अफगानिस्तानी एजेंट होने के आरोप लगते थे। अब उन पर भारतीय एजेंट का आरोप लगाया जाता है। जुलाई 2014 के कारवां पत्रिका के रिपोर्ट में एक महिला पाकिस्तानी रिपोर्टर महविश अहमद बताती हैं कि बलूचिस्तान के माई गाँव में सेना ने हिन्दू एजेंट के छिपे होने के नाम पर पूरे गाँव मे तबाही मचा दी। बम से घरों की छतों को तहस-नहस कर दिया।
बहरहाल, मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल के प्रारम्भ मे ‘पड़ोसी प्रथम’ नीति के तहत मित्रवत तरीके से पाकिस्तान के साथ समस्याओं के समाधान निकालने का कोशिश की और विश्व को यह सन्देश भी दिया कि भारत पाकिस्तान के साथ मुद्दों को सौहार्द्रपूर्ण तरीके से समाधान करना चाहता है, लेकिन आखिर पाकिस्तान अपनी पुरानी आदतों से बाज नहीं आया। इसी कारण उसके प्रति सख्त रवैया अपनाने का काम प्रधानमंत्री मोदी ने किया। बलूचिस्तान से लेकर हर मोर्चे पर अब भारत पाकिस्तान को कड़ा जवाब देने के लिए कमर कास चुका है। इसी कड़ी में अभी हाल में हुए आसियान सम्मलेन, जी-20 के मंचों पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने का प्रधानमंत्री मोदी ने सराहनीय प्रयास किया है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं।)