बिहार में लौटता जंगल राज : आंकड़ों के आइने में

आयुष आनंद 

बिहार में अपराध और अपराधियों की दिन दुनी रात चौगुनी बढ़ोतरी का सिलसिला फिर से शुरू हो चुका है। लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद के जंगल राज के जिस  खात्मे का श्रेय भाजपा एवं नीतीश सरकार को 2005 के बाद मिला था, अब वही जंगल राज, जब से नीतीश जी लालू के गोद में जा बैठे हैं फिर से अपना जहरीला फन उठाने लगा है। हर दिन प्रदेश के विभिन्न भाग से राजनैतिक एवं संगठित आपराधिक हत्याओं एवं संज्ञेय अपराधों की दिल दहलाने वाली घटनाएँ सामने आ रहीं हैं, लेकिन बिहार सरकार और बिहार में बहार का वादा करने वाली पार्टी इन घटनाओं के प्रति बिलकुल उदासीन बनी हुई है एवं राजद के उपमुख्यमंत्री एवं लालू जी के पुत्र तो इसे महज विपक्ष का दुष्प्रचार मानते हैं। इसी बेलगाम अपराध के चलते बिहार पहले ही विकास की दौड़ में अन्य राज्यों की तुलना में काफी पीछे छुट चुका था, जिस स्थिति में राजग सरकार के आने के बाद कुछ सुधार हुआ था परन्तु बिहार फिर से अब अपराध के उसी अन्ध्युग की तरफ जाता दिखाई दे रहा है जो व्यापारियों, पेशेवरों एवं उद्यमियों के लिए एक दु:स्वप्न जैसा था।

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(बिहार में अपराध के तुलनात्मक आंकड़े 2008 से अप्रैल 2016 तक)

अभी इसी बीते सप्ताह नवगछिया पुलिस जिले के बिहपुर थाना क्षेत्र के बभनगामा गांव में शनिवार 2 जुलाई को रात्री में अपराधियों ने 50 वर्षीय व्यवसायी कामदेव मोदी की हत्या कर शव को गांव के ही किसान वीरेंद्र चौधरी के मकान में लटका दिया। व्यवसायी की लाश सुबह लोगों ने मकान में लटकते देख इसकी सूचना पुलिस को दी। जिस तरीके से घटना को अंजाम दिया गया इसका मकसद बिलकुल साफ़ था। क्षेत्र के अनाज व्यापारियों एवं किसानों में अपराधियों का फिर से भय कायम हो सके ताकि इनकी बंद हो चुकी अवैध उगाही का धंधा फिर से शुरू हो सके।

अगर हम 2008 से 2016 के आपराधिक आंकड़ों का अध्ययन करें और 2013 में भाजपा के सरकार से अलगाव को मध्यबिंदु मानें तो दोनों सरकारों के अपराध पर लगाम लगाने का आंकड़ा चौंकाने वाला है । प्रदेश में भाजपा के सरकार से अलग होने के बाद संज्ञेय अपराधों कि संख्या में औसतन प्रति वर्ष 47,149 घटनाओं का इजाफा हुआ है जो कि संज्ञेय अपराधों में कुल 33.21% की वृद्धि है । लूट-पाट की घटनाओं में सरकारी आंकड़ों के हिसाब से प्रतिवर्ष लगभग 200 घटनाओं का इजाफा हुआ है जो कि 13.4% की बढ़ोतरी है । सेंधमारी की घटनाओं में भाजपा समर्थित सरकार की तुलना में इस सरकार में 32.7% की बढ़ोतरी हुई है । चोरी के मामलों में इसी प्रकार 51.7% की भारी  वृद्धि हुई है जो कि छुटभैयों एवं अपराधियों के मनोबल में आये इजाफे का द्योतक है ।

बिहार में दरभंगा के हायाघाट में पतोर ओपी क्षेत्र के चनखेरिया चौक स्थित मां लाइन होटल पर रविवार 3 जुलाई की रात करीब साढ़े दस बजे मोटरसाइकिल सवार दो अपराधियों ने हमला कर 32 वर्षीय एक होटल कर्मी की गोली मार हत्या कर दी। करीब 10:30 बजे लहेरियासराय की ओर से दो मोटरसाइकिल सवार अपराधी पहले रेकी करते हुए सुरहचट्टी की ओर गए और कुछ ही देर बाद लौट कर दोनों अपराधियों ने लाइन होटल के ठीक बगल में अपनी बाइक को पार्क कर दिया। दूसरा अपराधी अपना चेहरा ढक कर लाइन होटल में दाखिल हुआ जिसे लेकर होटल कर्मी दिलीप मंडल ने जोर से आवाज लगते हुए पूछा की उधर कहां जा रहे हो क्या बात है, इसी बात को लेकर अपराधी द्वारा दिलीप पर तीन राउंड फायरिंग कर दिया गया। वजह रंगदारी वसूली के लिए रोड लाइन होटल मालिकों में खौफ पैदा करना है।

बिहार में राजनीतिक हत्याओं का भी दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। अभी विगत 12 फ़रवरी को प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष विसेश्वर ओझा एवं एक अन्य वरिष्ठ नेता केदार सिंह कि भोजपुर एवं छपरा में गोली मार के हत्या कर दी गयी थी। उसके पहले एलजेपी के नेता कि पटना में ए के 47 से हत्या कर दी गयी। उनकी गलती ये थी कि उनके पुत्र ने लालुपुत्र एवं स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप के खिलाफ चुनाव लड़ने कि हिम्मत कि थी। अभी फिर विगत 1 जुलाई को बांका जिले के अमरपुर थाने की भदरिया पंचायत के एनडीए की सहयोगी पार्टी आरएलएसपी नेता एवं पूर्व मुखिया राजीव भगत की बांका में गोली मारकर अपराधियों ने हत्या कर दी। राजीव रालोसपा के प्रदेश महासचिव थे। इन घटनाओं के बाद ये अब स्पष्ट हो चुका है कि बिहार में फिर से हत्या कि राजनीती का दौर शुरु हो चुका है। अभी इसी साल होली मिलन के अवसर पर जदयू विधायक गोपाल मंडल ने खुले आम इसकी धमकी भी दी थी और विपक्षी नेताओं के जीभ काट लेने की बात भी कही थी।

बिहार में ही सोमवार 27 जून को देर रात अपराधियों ने बेगूसराय जिले के नगर थाना क्षेत्र में एक ही परिवार के तीन लोगों की हत्या कर दी। मृतकों में पति-पत्नी और उनका तीन साल का बेटा शामिल है। पुलिस के अनुसार, महम्मुदपुर मुहल्ला निवासी अमित कुमार पत्नी प्रियंका कुमारी और तीन साल के बेटे आर्यन के साथ घर की छत पर सो रहे थे। मंगलवार सुबह जब देर तक परिवार छत से नीचे नहीं उतरा, तो अमित का भाई सुमित उन्हें जगाने के लिए छत पर पहुंचा, तब तीनों के शव मिले।

दरभंगा में ही विगत 14 जून को मब्बी थाना क्षेत्र के चक्का गांव निवासी ज्ञानचंद पासवान के 36 वर्षीय पुत्र हीरा पासवान की गोली मारकर हत्या कर दी गयी, जो कि एक दलित है। बताया गया कि किसी ने उनके मोबाइल पर फोन कर उसे बुलाया और घर से करीब तीन किमी दूर माधोपुर-मखनाही बगीचा में गोली मार दिया,  जिससे उसकी घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गयी । वजह गाँव में दबंगइ एवं पुलिस व्यवस्था को मुँह चिढ़ाना था।

ये तो कुछ चंद उदाहरण मात्र हैं जिनसे आज कल बिहार के अखबार पटे पड़े मिलते हैं। निश्चित रूप से ये बिहार को फिर से किस दिशा में ले जायेगा, ये अनुमान लगाना कोई मुश्किल काम नहीं है। अगर हम बिहार में अपराध के आंकड़ों का तुलनात्मक अध्यन करें तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं। बिहार पुलिस के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में संज्ञेय अपराध, लुट-पाट, सेंधमारी, चोरी, दंगा, बाल अपहरण, बलात्कार एवं सड़क पर लूट-पाट कि घटनाओं में काफी बढ़ोतरी हुई है। आंकड़े बताते हैं कि जब से प्रदेश में भाजपा नीतीश सरकार से अलग हुई है अपराधियों के मनोबल में एवं अपराध में काफी वृद्धि हुई है और राजद के साथ नीतीश के सरकार बना लेने के बाद तो बिलकुल पुराना जंगल राज वापस लौट आया है।

 अगर हम 2008 से 2016 के आपराधिक आंकड़ों का अध्ययन करें और 2013 में भाजपा के सरकार से अलगाव को मध्यबिंदु मानें तो दोनों सरकारों के अपराध पर लगाम लगाने का आंकड़ा चौंकाने वाला है। प्रदेश में भाजपा के सरकार से अलग होने के बाद संज्ञेय अपराधों कि संख्या में औसतन प्रति वर्ष 47,149 घटनाओं का इजाफा हुआ है जो कि संज्ञेय अपराधों में कुल 33.21% की वृद्धि है। लूट-पाट की घटनाओं में सरकारी आंकड़ों के हिसाब से प्रतिवर्ष लगभग 200 घटनाओं का इजाफा हुआ है जो कि 13.4% की बढ़ोतरी है। सेंधमारी की घटनाओं में भाजपा समर्थित सरकार की तुलना में इस सरकार में 32.7% की बढ़ोतरी हुई है । चोरी के मामलों में इसी प्रकार 51.7%  की भारी वृद्धि हुई है जो कि छुटभैयों एवं अपराधियों के मनोबल में आये इजाफे का द्योतक है।

भाजपा पर जिस साम्प्रदायिकता का आरोप लगते हुए नीतीश ने भाजपा से सम्बन्ध तोड़ा था, उस नीतीश कुमार का प्रदर्शन दंगा नियंत्रण में भी भाजपा से अलग होने के बाद बेहद ख़राब हुआ है। जब तक भाजपा के साथ वे सत्ता में थे तो औसतन प्रति वर्ष दंगे के 9242 मामले सामने आये जबकि भाजपा के अलग होने के बाद ये संख्या औसतन 13107  मामले तक जा पहुंची है, यानी कि लगभग 42%  की चौंकाने वाली वृद्धि। अपने आप को सांप्रदायिक सौहार्द्य का पहरुआ बताने वाले समाजवादियों एवं राजद के लिए ये आंकड़ा आँख खोल देने  वाला है।

 इसी तरह बलात्कार के मामले में भी 22.3% की व्यापक वृद्धि देखने को मिलती है, जो कि नीतीश कुमार के सुशासन देने के वादे को मुँह चिढ़ा रही है एवं महिलाओं को सुरक्षा देने के वादे की भी पोल खोल रही है। इसी तरह बाल अपहरण और सड़क पर होने वाले लूट पाट की घटनाओं में भी इजाफा ही हुआ है।

नीतीश कुमार केवल शराबबंदी के अभियान से देश को एवं प्रदेश की जनता को गुमराह नहीं कर सकते। जिस अपराध मुक्त बिहार के लिए उन्हें प्रदेश की सरकार के लिए बिहार की जनता ने भाजपा के साथ 2005 में चुना था उसे वे यूँ तो अनदेखा नहीं कर सकते। उन्हें बढ़ते हुए अपराध पर लगाम लगाना ही होगा फिर चाहे वो क्यों ना अपराधियों को प्रश्रय देने वाले नेताओं एवं पार्टियों के नेता हों अन्यथा जनता के पास हमेशा विकल्प खुला होता है। इस बार सत्ता भले ही जातिगत समीकरण के कारण नीतीश के हाथ लगी हो पर उन्हें वोट देने वालों को आशा थी नीतीश एक स्वास्थ्य प्रशासन देंगे अगर वो इसमे असफल हुए तो बिहार कि जनता फिर से इस नए जंगल राज से मुक्ति के लिए उठेगी और अपना नया नेता चुनने के लिए स्वतंत्र होगी। उन्हें देश का नेता बनने के सपने देखने से पहले कम से कम प्रदेश में सुशासन को स्थापित तो करना ही चाहिए।

(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुख़र्जी शोध अधिष्ठान में शोधार्थी हैं )