अब फिर से जदयू और भाजपा के शासन में बिहार में विकास का कारवां आगे बढ़ेगा, इसकी उम्मीद की जा सकती है। विकास की इस दिशा में बहुत सारे काम होने अभी बाकी हैं। सड़क, बिजली, निर्माण, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि पर विशेष घ्यान देने की जरुरत है। बेशक, महागठबंधन के शासन काल में बिहार में विकास की चाल धीमी पड़ गई थी। इस कारण हालत बदलने में थोड़ा वक्त लगेगा, लेकिन उम्मीद है कि नई सरकार फिर एकबार बिहार को विकास के पथ पर रफ़्तार देने में यथाशीघ्र कामयाब होगी। और अब तो साथ देने के लिए केंद्र में भी भाजपा की सरकार है।
नीतीश कुमार के इस्तीफे को सिर्फ मौजूदा घटनाक्रम से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है। महागठबंधन के बैनर के तले नीतीश कुमार जरूर मुख्यमंत्री बन गये थे, लेकिन वे अपनी छवि के मुताबिक काम नहीं कर पा रहे थे। उनके अतंस में अकुलाहट थी। देखा जाये तो परोक्ष रूप से लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री के रूप में कार्य कर रहे थे।
भ्रष्टाचार के मामले में नीतीश कुमार की जीरो टोलरेंस की नीति शुरू से रही है। फिर भी भ्रष्टाचार की घटनाओं में राज्य में इजाफा होने लगा था। बिहार में विकास की रफ्तार लगभग थम सी गई थी और हिंसा की वारदातें भी होने लगी थी। ऐसे में नीतीश कुमार की विकासपुरुष एवं सुशासन बाबू की छवि खतरे में पड़ गई थी, जबकि इससे पहले के जदयू और भाजपा के शासन काल में बिहार की कानून-व्यवस्था चाक-चौबंद थी।
प्रदेश में कानून का राज था और भ्रष्टाचार भी काफी हद तक नियंत्रण में था। उस कालखंड में बिहार में बुनियादी सुविधाओं में भी बेहतरी आई थी। सड़क एवं बिजली के क्षेत्र में विकास की झलक को साफ तौर पर देखा जा सकता है। आज बिहार के हर गाँव में बिजली, पानी और सड़क है। कभी दरभंगा और सासाराम पहुँचने में पूरा दिन लग जाता था, पर आज यह दूरी कुछ घंटों में तय की जाती है।
राजद के मुखिया लालू प्रसाद यादव का ईमानदारी से दूर-दूर तक का नाता नहीं रहा है। वे शुरू से ही अपने कुनबे के विकास में लगे रहे हैं, उनके परिवार के करोड़पति बनने की कहानी जग-जाहिर है। बिहार में चल रहे सियासी घमासान के मूल में भी भ्रष्टाचार का ही मामला था। लालू के बेटे और बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर रेलवे में होटल के बदले जमीन घोटाले में एफआईआर किया गया था। नीतीश कुमार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अपनी पुरानी नीति के तहत तेजस्वी यादव से जवाब देने की बात कह रहे थे, लेकिन लालू यादव टाल-मटौल करने में लगे थे।
नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव के इस्तीफे के लिए कुछ समय की मोहलत भी दी, लेकिन लालू यादव टस से मस नहीं हुए। जब मामला हद से आगे निकल गया तो नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया, जिसे लालू प्रसाद यादव नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मिलीभगत बता रहे हैं और साथ में नीतीश कुमार को आईपीसी धारा 302 का आरोपी भी बता रहे हैं।
जदयू और भाजपा में मिलीभगत की बात बेमानी है। जदयू और भाजपा दोनों पहले भी बिहार के विकास के लिये काम कर चुके हैं। दोनों दलों का मकसद सिर्फ और सिर्फ बिहार का विकास करना रहा है। इसबार भी इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये दोनों दलों ने हाथ मिलाया है। नीतीश कुमार को हत्या का आरोपी बताना लालू प्रसाद यादव की बचकानी हरकत है, क्योंकि यह मामला वर्ष 1991 के मध्यावधि चुनाव का है। चुनाव के समय में विरोधियों द्वारा ऐसे हथकंडे अक्सर अपनाये जाते हैं।
जदयू और भाजपा के पिछले कार्यकाल में शिक्षा, कृषि, स्वास्थ्य, निर्माण, उधोग, सेवाक्षेत्र आदि में बेहतरी के लिये प्रयास किये गये थे। प्राथमिक एवं माध्यमिक शालाओं में बच्चों की उपस्थिति बढ़ी थी। एम्स, आईआईटी, निफ्ट, चाणक्य विधि विश्वविधालय आदि के पटना में खुलने से युवाओं में उत्साह बढ़ा था। शिक्षा में बेहतरी के लिये अनेक मॉडल महाविद्यालय भी बिहार में खोले गये थे। शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिये हजारों की संख्या में प्रशिक्षित एवं संविदा पर शिक्षकों की बहाली की गई थी। स्वास्थ्य सेवा भी बेहतर की गयी थी।
अच्छी सड़क की वजह से ऑटोमोबाईल की बिक्री में तेजी आई थी। पटना के निकट बिहटा के पास स्टील कारख़ाना शुरू किया गया था। ब्रिटानिया, पारले आदि की इकाइयों ने बिहटा में काम करना शुरू कर दिया था। चीनी और चावल मिलों के पुनर्वास की दिशा में भी कोशिश की गई थी। उत्तर बिहार में छोटे स्तर पर धान की भूसी या गन्ने के अवशेष से बिजली उत्पादन का कार्य निजी तौर पर शुरू किया गया था। मॉलस, अपार्टमेंटस, बड़ी-बड़ी इमारतों आदि के निर्माण कार्य में तेजी आई थी। लोहे के छड़ और सीमेंट की माँग में 20 से 25 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई थी। रोजगार के लिये प्रदेश के लोगों के पलायन में भी उल्लेखनीय कमी आई थी।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि बिहार के लोगों को विकास का स्वाद लग चुका है, जिसे भुलाना आसान नहीं है। अब फिर से जदयू और भाजपा के शासन में बिहार में विकास का कारवां आगे बढ़ेगा, इसकी उम्मीद की जा सकती है। विकास की इस दिशा में बहुत सारे काम होने अभी बाकी हैं। सड़क, बिजली, निर्माण, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि पर विशेष घ्यान देने की जरुरत है। बेशक, महागठबंधन के शासन काल में बिहार में विकास की चाल धीमी पड़ गई थी। इस कारण हालत बदलने में थोड़ा वक्त लगेगा, लेकिन उम्मीद है कि नई सरकार ऐसा करने में यथाशीघ्र कामयाब होगी।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र, मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में मुख्य प्रबंधक हैं। स्तंभकार हैं। ये विचार उनके निजी हैं।)