लगभग साढ़े तीन महीने पहले उत्तर प्रदेश के कैराना में हिन्दू समुदाय की पलायन की खबरें सामने आई थीं। यह पलायन चर्चा के केंद्र बिंदु में लंबे समय तक रहा किसी ने इस पलायन को सही बताया तो किसी ने इसे खारिज कर दिया, मीडिया के एक तथाकथित सेकुलर धड़े ने भी पलायन की खबरों को नकार दिया था। चूंकी, उत्तर प्रदेश में चुनाव है इसके मद्देनजर कांग्रेस, सपा आदि तथाकथित सेकुलर राजनीतिक पार्टियाँ ने भी अपने–अपने लोगों को कैराना भेजकर अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए सच्चाई को कहना वाजिब नहीं समझा था। हालांकि बीजेपी इस बात को शुरू से कहती आ रही है कि कैराना का पलायन एक कटु सत्य है, जिसे सबको स्वीकार करना पड़ेगा। लेकिन बाकी दलों को यह रास नहीं आया, सभी दलों को सिर्फ वोटबैंक की चिंता सता रही थी। ऐसे में उन्होंने इस सच्चाई को स्वीकार करने की जहमत नहीं उठाई। इस तरह राजनीति से लेकर मीडिया तक सेकुलर कबीले के सभी लोगों ने इस खबर को झूठा बताया था। दरअसल यह मामला बीजेपी सांसद हुकुम सिंह ने उठाया था तो जाहिर है वोटबैंक की राजनीति करने वाले राजनेता, सेकुलरिज्म का दंभ भरने वाले बुद्दिजीवियों को यह नागवार गुजरा था। उन्होंने इस सच पर पर्दा डालने के हर संभव प्रयास किये, लेकिन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी जाँच में कैराना का काला सच सामने रख दिया है।
सेकुलर कबीले के लोग हमेशा से प्रो-इस्लाम रहे हैं। उनकी धर्मनिरपेक्षता का वास्ता केवल और केवल हिन्दू विरोध तक सीमित हो कर रह गया है। इखलाक के मामले में छाती कूटने वाले सेकुलरों ने मालदा की हिंसा पर चूं तक नहीं किया। ध्यान दें तो उस समय भी कटघरे में मुस्लिम समाज की उग्रता थी और कैराना में भी, क्या यह सेकुलरिज्म का ढोंग नहीं है ? ऐसे अनेकों मसले सामने आते हैं, जब इनकी धर्मनिरपेक्षता का दोहरा चरित्र देखने को मिलता है। झूठ, फरेब, अफवाहों पर टिका इनका सेकुलरिज्म अपनी बुनियाद में कितना ढोंग और दोमुहांपन भरे हुए है, यह काला सच अब देश के सामने आ गया है।
आयोग की जांच रिपोर्ट में हिन्दू परिवारों के पलायन को सही पाया गया है। पलायन की मुख्य वजह भी समुदाय विशेष की गुंडागर्दी और भय को बताया गया है। जाहिर है कि इस सच को नकारने का खूब कुत्सित प्रयास किया गया जिसमें यूपी की तथाकथित सेकुलर समाजवादी सरकार ने भी यह दावा किया कि पलायन की वजह मुस्लिम नहीं हैं और न वहां भय का माहौल है। लेकिन अब पलायन का स्याह सच सामने आ चुका है। मानवाधिकार आयोग ने स्पष्ट किया है कि हिन्दूओं के पलायन की मुख्य वजह वहां पर व्याप्त मुस्लिम समुदाय गुंडाराज ही है।
गौरतलब है कि कैराना का मुद्दा जब प्रकाश में आया तभी से तथाकथित सेकुलर बुद्धिजीवियों ने यह राग अलापना शुरू कर दिया था कि यह प्रदेश में चुनाव के मद्देनजर बीजेपी वोटों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रही है। इस आड़ में तथाकथित सेकुलर ब्रिगेड ने इस कैराना मामले को अफवाह बताने में भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। लेकिन आज यथार्थ सबके सामने है। सवाल यह उठता है कि सेकुलरिज्म के झंडाबरदार इस सच को क्यों नही स्वीकार कर रहे थे ? सवाल की तह में जाएँ तो सेकुलर कबीले के लोग हमेशा से प्रो-इस्लाम रहे हैं। उनकी धर्मनिरपेक्षता का वास्ता केवल और केवल हिन्दू विरोध तक सीमित हो कर रह गया है। इखलाक के मामले में छाती कूटने वाले सेकुलरों ने मालदा की हिंसा पर चूं तक नहीं किया। ध्यान दें तो उस समय भी कटघरे में मुस्लिम समाज की उग्रता थी और कैराना में भी, क्या यह सेकुलरिज्म का ढोंग नहीं है ? ऐसे अनेकों मसले सामने आते हैं, जब इनकी धर्मनिरपेक्षता का दोहरा चरित्र देखने को मिलता है। झूठ फरेब, अफवाहों पर टिका सेकुलरिज्म अपनी बुनियाद में कितना ढोंग और दोमुहांपन भरे हुए है, यह सब सबके सामने आ गया है। ऐसा नहीं है कि उनकी इस तरह से भद्द पहली मर्तबा पिटी हो,याद करें तो इससे पहले जेएनयू में हुए देश विरोधी नारों के वीडियो से छेड़छाड़ की अफवाह भी इस नेताओं-बुद्धिजीवियों और मीडिया के सेकुलर गैंग ने उड़ाई थी, लेकिन लैब रिपोर्ट ने जब विडियो को सही माना तो इनकी बोलती बंद हो गई। अख़लाक़ के घर बीफ नहीं था, यह भ्रम भी इन छद्म सेकुलरवादीयों ने फैलाया था, लेकिन जब जांच हुई और बीफ पाया गया तो इनकी खूब भद्द पिटी। अब कैराना की इस रिपोर्ट ने भी इन सेकुलरों के गाल पर करार तमाचा जड़ा है। पलायन की घटना को सिरे से खारिज करने वाले सेकुलर लोग रिपोर्ट के आने के बाद पूरी बेशर्मी के साथ सन्नाटा मारे बैठे हैं।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)