कमलनाथ का अभी तक का कार्यकाल अत्यंत लचर और नाकाम रहा है। प्रशासनिक स्तर पर कुछ भी ठीक नहीं है। कमलनाथ को मानो तबादला करने की धुन सवार हो गई है। आए दिन अधिकारियों, कर्मचारियों के तबादले हो रहे हैं। इतना ही नहीं, जनकल्याणकारी योजनाओं का भी बुरा हाल है।
मध्य प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुए दो माह से अधिक समय बीत चुका है। तीन बार सत्ता में रही भाजपा को बेदखल करके जब कांग्रेस सत्ता पर काबिज हुई तो इसका अर्थ यह निकाला गया था कि जरूर मतदाताओं ने बहुत उम्मीदों के साथ कांग्रेस को चुना है। समानांतर रूप से कांग्रेस ने अपना चुनावी कैंपेन भी ‘वक्त है बदलाव का’ जैसे जुमले के साथ चलाया था। लेकिन यह क्या, दो महीने में ही मतदाताओं की उम्मीदों के साथ कुठाराघात हो गया। मतदाता वर्ग, किसान वर्ग तो मानो स्तब्ध है कि यह किस बदलाव की बात की जा रही थी। कांग्रेस ने बातें तो बड़ी-बड़ी की थीं, लेकिन वही ढाक के तीन पात।
अव्वल तो नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री कमलनाथ ने किसानों के लिए कर्जमाफी की घोषणा की थी। उस समय तो कांग्रेस ने इस बात का यूं ढोल पीटा मानो बहुत बड़ा काम कर दिया हो लेकिन जल्द ही इसके पीछे का फर्जीवाड़ा उजागर हो गया। कर्जमाफी के नाम पर किसानों के साथ भद्दा मजा़क किया गया।
किसानों ने जब कर्जमाफी की सूची में अपना नाम टटोला तो दंग रह गए। किसी के 20 रुपए कम हुए तो किसी के 200 और 400 रुपए, जबकि इन किसानों के सिर पर 20 से लेकर 50 हजार रुपए तक की राशि का कर्ज था। यह विसंगति तो अपनी जगह चल ही रही थी कि इस बीच चुनावी आचार संहिता लागू हो गई। जो किसान कर्जमाफी की आस लगाए बैठे थे, उन्हें फिर निराशा हाथ लगी।
अब किसानों के मोबाइल पर कमलनाथ के इस आशय के मैसेज आ रहे हैं कि कर्जमाफी अब स्वीकृत नहीं की जाएगी, यह चुनाव के बाद देखी जाएगी। ऐसे में किसानों में अब काफी गुस्सा है। कुछ किसानों ने तो यहां तक कहा है कि वे सरकार से नाराज़ हैं और इस बार मतदान नहीं करेंगे। प्रदेश सरकार ने उनके साथ छलावा किया है। यहां इस बात का उल्लेख करना जरूरी होगा कि जिस सरकार ने 10 दिन में कर्जमाफी की घोषणा की थी, उसका गुणगान करते हुए सरकारी खर्च पर बड़े-बड़े पोस्टर और होर्डिंग बनवाए और प्रदेश भर में चस्पा कर दिए, क्या वही सरकार अब अपनी नाकामी को भी इसी प्रकार सार्वजनिक करने का साहस दिखाएगी?
बात केवल किसानों की नहीं है। प्रदेश में सुरक्षा एवं कानून व्यवस्था लगातार गिरती जा रही है। महज दो महीनों में प्रदेश में अपराध का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। इस बीच कई भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या व मारपीट के मामले सामने आए। इन घटनाओं के पीछे भले ही कारण कुछ और बताए गए हों लेकिन यह गले उतरना कठिन है कि सरकार बदलते ही दल विशेष के कार्यकर्ता निशाने पर कैसे आ गए।
आज हाल ये है कि अपराधी खुलेआम बेखौफ होकर घूम रहे हैं और कमलनाथ सरकार अपनी थोथी बातों को लेकर खुद ही पीठ थपथपाने से आगे ही नहीं बढ़ पा रही है। मध्यप्रदेश में लूट, डकैती की घटनाएं लगातार हो रही हैं। अपहरण कर बच्चों की हत्या कर दी जा रही है। समग्रतः क़ानून व्यवस्था की स्थिति राज्य में बदहाल हो रही है।
यह भी कितनी आश्चर्य की बात है कि निर्वाचित मुख्यमंत्री होने के बावजूद कमलनाथ धरातल से कटे हुए हैं और जनता के बीच दिखाई नहीं दे रहे हैं और उधर, सत्ता से हटने के बावजूद शिवराज सिंह चौहान लगातार गांवों, कस्बों, शहरों, नगरों में जनता के बीच जा रहे हैं, उनसे मिल रहे हैं, जनसंपर्क कर रहे हैं, उनके सुख-दुख में शामिल हो रहे हैं और जीवंत संपर्क बनाए हुए हैं।
राजनीति की थोड़ी बहुत प्राथमिक समझ रखने वाला व्यक्ति भी इस बात को समझ सकता है कि अगले चुनाव सीधे पांच साल बाद ही होंगे, ऐसे में शिवराज सिंह चौहान यदि अभी जनता के बीच अपनी उपस्थिति बनाए हुए हैं तो इसका चुनावी स्टंट से कहीं से कहीं तक कोई नाता नहीं हो सकता। असल में, यह उनका स्वभाव ही है। वे सदा से अपनी सक्रिय उपस्थिति दर्शाते आए हैं।
कमलनाथ का अभी तक का कार्यकाल अत्यंत लचर और नाकाम रहा है। प्रशासनिक स्तर पर भी यहां कुछ भी ठीक नहीं है। कमलनाथ को मानो तबादला करने की धुन सवार हो गई है। हर दूसरे दिन दर्जनों अधिकारियों, कर्मचारियों के तबादले हो रहे हैं। इतना ही नहीं, जनकल्याणकारी योजनाओं का भी बुरा हाल है।
भाजपा सरकार ने समाज के निर्धन तबके के लिए जो जनकल्याणकारी योजनाएं शुरू की थीं, उन्हें कांग्रेस ने आते ही बंद कर दिया। यह प्रतिशोध की राजनीति का सबसे घृणित उदाहरण है। गरीबों की मृत्यु पर अंतिम संस्कार के लिए जो मदद की राशि मिलती थी, उस संबल योजना को बंद कर दिया गया। बिजली के बिल माफ करने के बड़े दावे किए गए थे लेकिन बिजली के भारी-भरकम बिल थमाए जा रहे हैं।
कमलनाथ सरकार के लिए यह सबसे बड़ी शर्मनाक स्थिति है कि जिन किसानों को उपकृत करने की खोखली घोषणाओं के चलते इन्हें सत्ता मिली, आज उसी किसान का दर्द देख पाने में ये अक्षम हैं। किसानों और मतदाताओं को दुखी करके निश्चित ही कांग्रेस सरकार सफलता पूर्वक शासन नहीं कर सकती। आज मप्र में ना किसान खुश हैं, ना मतदाता, ना जनता सुरक्षित है ना ही राजनीतिक लोग। निश्चित ही कमलनाथ सरकार की हकीकत महज दो महीने में ही उजागर होने लगी है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)