विकास के नारे के साथ दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने वाले अरविन्द केजरीवाल की आप सरकार को दो साल का समय पूरा हो चुका है। दिल्ली के मतदाताओं को स्वच्छ राजनीति, लुभावने वादों और विकास का सब्जबाग दिखाकर केजरीवाल सत्ता तक तो पहुंच गए, लेकिन उनके कार्यकाल में विकास के नाम पर एक पत्ता भी नहीं हिला है। दो साल का समय बीता तो सिर्फ दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग और केंद्र सरकार पर अनर्गल आरोपों की झड़ी लगाने और बिना बात इनके खिलाफ बगावत का बिगुल बजाने में। स्वच्छ राजनीति के दावे का जो हश्र हुआ, वो बताने की ज़रूरत नहीं। सबने देखा कि कैसे दो सालों के अंदर ही केजरीवाल सरकार के ज्यादातर मंत्री किसी न किसी प्रकार के आरोप में जेल की हवा खा आये। एक मंत्री महोदय का तो बाकायदा एमएमएस काण्ड तक सामने आ गया। सरकार में पदों की असंवैधानिक बंदरबांट का मामला भी इसी दौरान सामने आया। इन सब मामलों ने ‘आप’ पार्टी की स्वच्छ राजनीति के दावे की कलई खोल के रख दी है।
दिल्ली विधानसभा चुनावों के समय केजरीवाल की आम आदमी पार्टी द्वारा अपने 70 बिंदुओं वाले चुनावी घोषणा पत्र में कई ऐसे वादे किये गए थे, जिनके पूरे होने का सपना आज भी दिल्ली वासी संजोए हुए हैं, लेकिन केजरीवाल सरकार उन वादों को पूरा करने के लिए कुछ करती नहीं दिख रही। उदाहरण के तौर पर देखें तो दिल्ली की अवैध कॉलोनियों को नियमित करने का वादा तो केजरीवाल ने बड़े जोर-शोर से किया था, मगर सरकार बनने के बाद से इस दिशा में कुछ काम करना तो दूर, वे इस विषय की चर्चा तक नहीं करते। एक वाक्य में कहें तो दिल्ली विधानसभा चुनावों के समय ‘आप’ पार्टी जिन वादों के दम पर सत्ता में आई थी, आज उसकी सरकार उन वादों को जैसे भूल ही चुकी है।
स्वच्छ राजनीति के अलावा शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो, कानून व्यवस्था हो या फिर महिलाओं की सुरक्षा आदि के इंतजाम, किसी भी क्षेत्र में केजरीवाल सरकार के आने के बाद बदहाली के अलावा कोई कुछ नज़र नहीं आता। किसी क्षेत्र में कोई काम नहीं हुआ है। तिसपर अपने काम नहीं करने के लिए इस सरकार के पास एक रटा-रटाया बहाना भी तैयार रहता है कि केंद्र सरकार द्वारा काम नहीं करने दिया जा रहा। हालांकि इस तरह की अनर्गल दलीलों के साथ केजरीवाल ने जब भी अदालत आदि की शरण ली, हर बार उन्हें फटकार ही खानी पड़ी।
दिल्ली विधानसभा चुनावों के समय केजरीवाल की आम आदमी पार्टी द्वारा अपने 70 बिंदुओं वाले चुनावी घोषणा पत्र में कई ऐसे वादे किये गए थे, जिनके पूरे होने का सपना आज भी दिल्ली वासी संजोए हुए हैं, लेकिन केजरीवाल सरकार उन वादों को पूरा करने के लिए कुछ करती नहीं दिख रही। उदाहरण के तौर पर देखें तो दिल्ली की अवैध कॉलोनियों को नियमित करने का वादा तो केजरीवाल ने बड़े जोर-शोर से किया था, मगर सरकार बनने के बाद से इस दिशा में कुछ काम करना तो दूर, वे इस विषय की चर्चा तक नहीं करते। कुल मिलाकर कहें तो दिल्ली विधानसभा चुनावों के समय ‘आप’ पार्टी जिन वादों के दम पर सत्ता में आई थी, आज उसकी सरकार उन वादों को जैसे भूल ही चुकी है।
गौरतलब है कि शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए न तो आप के चुनावी वादे के अनुसार 500 नए स्कूल ही खुल सके हैं और ना ही पुराने स्कूलों में नए कमरे ही बन पाए हैं। बच्चे अब भी खस्ताहाल दीवारों के बीच पढ़ने को मजबूर हैं, क्योंकि सरकार कुछ कर नहीं रही है। अब तो शिक्षा व्यवस्था पर हाईकोर्ट भी दिल्ली सरकार को फटकार लगा चुका है, इसके बावजूद भी केजरीवाल गहरी नींद में सोए हुए हैं। दिल्ली की सड़कों की हालत भी बेहद खराब हो रही है। केजरीवाल अपने वादे तो पूरे नहीं ही कर पा रहे, साथ ही पिछली सरकार के समय में शुरू हुए फ्लाई ओवर और सड़कों के निर्माण कार्य को भी लक्ष्य तक पहुंचाने में नाकामयाब ही साबित हुए हैं। यहां पर एक बात जानना दिलचस्प है कि फ्लाईओवर का निर्माण करने और कई कॉरिडोर बनाने के लिए केजरीवाल सरकार के मंत्री देश-विदेश के कई संस्थानों से सलाह ले चुके हैं, मगर इसके बावजूद नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा है।
गरीबों के हित का नारा देकर सत्ता पर काबिज होने वाली केजरीवाल सरकार 2 साल के कार्यकाल में अब तक ना तो एक सरकारी अस्पताल बना पाई है और ना ही एक नया दवाखाना ही बना सकी है, जिससे गरीबों को कुछ राहत मिल सके। 1 हजार मोहल्ला क्लीनिक का वादा करने वाले केजरीवाल की सरकार दो सालों में मात्र सवा सौ मोहल्ला क्लीनिक ही खोल पाई है। पिछली सरकार के कार्यकाल में जिन अस्पतालों की नींव रखी गई थी, केजरीवाल सरकार द्वारा उन योजनाओं की समीक्षा कराकर उनमें फेरबदल करने के नाम पर उन्हें भी ठप्प रखा गया है।
स्पष्ट है कि 2 सालों के अपने कार्यकाल में केजरीवाल अपने वादों का थोड़ा-सा हिस्सा भी पूरा नहीं कर सके हैं। दरअसल वादे पूरे करने के लिए काम करना पड़ता है, जबकि केजरीवाल और उनके मंत्री कभी विदेश भ्रमण में निकले रहते हैं, तो कभी अन्य राज्यों के चुनावों में मशगुल नज़र आते हैं। खुद केजरीवाल पंजाब चुनाव से पहले तक दिल्ली की सुध-बुध खोए पंजाब में डेरा जमाए बैठे थे। यहाँ जानना दिलचस्प होगा कि पंजाब की जनता के सामने भी वे लगभग वही वादे दोहराते पाए गए, जो दो साल पहले दिल्ली की जनता से किये थे। कहने की आवश्यकता नहीं कि केजरीवाल और आम आदमी पार्टी का उद्देश्य केवल सत्ता-प्राप्ति तक सीमित है, जनता की समस्याओं और कठिनाइयों से इनका कोई सरोकार नहीं है। किन्तु, शायद केजरीवाल भूल रहे हैं कि लोकतंत्र में निर्णायक शक्ति जनता के हाथों में होती है, सत्ता के पांच साल बाद जब चुनाव का समय आएगा तो इस कुशासन के लिए जनता का करारा जवाब उन्हें ज़रूर मिलेगा।
(लेखिका पेशे से पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)