जिस पार्टी का गठन जाति-धर्म, क्षेत्र-भाषा जैसी संकीर्णताओं से उपर उठकर करने का दावा किया गया था, वही आम आदमी पार्टी सरकार तुष्टिकरण की नीति के तहत मस्जिदों के इमामों को भारी-भरकम वेतन बांट रही है। दिल्ली वक्फ बोर्ड के अंतर्गत आने वाले 188 मस्जिदों के इमामों को 8000 की जगह 18000 रुपये और मुअज्जिनों को 9000 की जगह 16000 मासिक वेतन देने का एलान केजरीवाल सरकार ने किया है।
ईमानदार राजनीति के जरिए व्यवस्था बदलने का ख्वाब दिखाने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल मुफ्तखोरी की राजनीति को नया आयाम देने में जुटे हैं। पिछले साढ़े चार साल से प्रधानमंत्री से लेकर उप राज्यपाल तक पर काम न करने देने का आरोप लगाने वाले केजरीवाल अब मुफ्तखोरी की राजनीति कर रहे हैं।
भारी-भरकम चुनावी वायदे के दम पर बंपर बहुमत से दिल्ली विधान सभा चुनाव जीतने वाले अरविंद केजरीवाल अपने चुनावी वायदों को पूरा करने में नाकाम रहे। विधानसभा उप चुनाव हो या दिल्ली नगर निगम चुनाव इन सभी में आम आदमी पार्टी को करारी शिकस्त मिली। यही हालत लोक सभा चुनाव में हुई। इससे केजरीवाल को लगने लगा अगला विधान सभा चुनाव जीतना कठिन है।
अपनी आसन्न पराजय को देखते हुए अरविंद केजरीवाल मुफ्तखोरी की राजनीति पर उतर आए हैं। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि मुफ्तखोरी के दूरगामी नतीजों से वे आंखे बंद किए हुए हैं। भले ही वे 20,000 लीटर पानी मुफ्त में दे रहे हैं लेकिन पानी की गुणवत्ता में जो गिरावट आई है उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा। 2018-19 में दिल्ली जल बोर्ड का घाटा 663.59 करोड़ का था। इसके कारण दिल्ली जल बोर्ड न तो अपने कर्मचारियों का वेतन दे पा रहा है और न ही साफ पानी। यदि मुफ्तखोरी की राजनीति जारी रहती है तो यह घाटा और बढ़ेगा जिससे आज नहीं तो कल दिल्ली जल बोर्ड को भी बंद करने या निजी क्षेत्र को सौंपने की कवायद शुरू हो जाएगी।
मुफ्तखोरी की राजनीति का दायरा बढ़ाते हुए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली मेट्रो और दिल्ली परिवहन निगम की बसों में महिलाओं को मुफ्त यात्रा का पांसा फेंका। लेकिन दिल्ली मेट्रो के भारी भरकम कर्ज को देखते हुए शहरी विकास मंत्रालय ने महिलाओं की मुफ्त यात्रा की योजना को मंजूरी नहीं दी। इसके बाद अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली परिवहन निगम की बसों में महिलाओं की मुफ्त यात्रा का चुनावी सौगात दिया। यहां सबसे अहम सवाल यह है कि अरविंद केजरीवाल को चुनाव सिर पर आने पर ही चुनावी वायदे क्यों याद आ रहे हैं।
दिल्ली परिवहन निगम के बेड़े में 2012 के बाद से कोई बस शामिल नहीं की गई। दिल्ली को 11000 बसों की जरूरत है लेकिन डीटीसी के बेड़े में महज 3781 बसे ही हैं। विधान सभा चुनाव को देखते हुए हाल ही में मुख्यमंत्री ने 300 इलेक्ट्रिक बसों का आर्डर दिया है। यहां सबसे अहम सवाल यह है कि दिल्ली की महिलाओं को मुफ्त यात्रा की जरूरत है या 11000 बसों की। चूंकि केजरीवाल के लिए सत्ता साधन न होकर साध्य बन चुकी है इसलिए उन्होंने मुफ्त यात्रा को प्राथमिकता दी।
जिस पार्टी का गठन जाति-धर्म, क्षेत्र-भाषा जैसी संकीर्णताओं से उपर उठकर किया किया गया था, वही आम आदमी पार्टी सरकार तुष्टीकरण की नीति के तहत मस्जिदों के इमामों को भारी-भरकम वेतन बांट रही है। दिल्ली वक्फ बोर्ड के अंतर्गत आने वाले 188 मस्जिदों के इमामों को 8000 की जगह 18000 रुपये और मुअज्जिनों को 9000 की जगह 16000 मासिक वेतन देने का एलान सरकार ने किया है।
इतना ही नहीं दिल्ली की 1500 निजी मस्जिदों को भी वेतन के दायरे में लाते हुए यहां के इमामों को 14000 और मुअज्जिनों को 12000 रुपये मासिक वेतन दे रहे हैं। इसी को देखते हुए अब आम आदमी पार्टी को सुपर कांग्रेसी कहा जाने लगा है। अरविंद केजरीवाल मुफ्तखोरी और तुष्टीकरण की राजनीति से भले ही दुबारा विधान सभा चुनाव जीतने का ख्वाब देख रहे हैं, लेकिन जनता उनकी असलियत जान चुकी है। यह बात उन्हें समझ आ जाए तो बेहतर है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)