कांग्रेसी भ्रष्टाचार की पैदाइश अरविंद केजरीवाल ने खुलेआम अपने बच्चों की कसम खाकर कहा था कि वे कभी भी कांग्रेस से गठबंधन नहीं करेंगे। इसके बावजूद अरविंद केजरीवाल कई महीनों से कांग्रेस से गठबंधन की भीख मांगते फिर रहे थे। यहां तक कि केजरीवाल एक रात शीला दीक्षित के घर के बाहर भी बैठे रहे लेकिन कांग्रेस ने केजरीवाल को एक दाना तक नहीं डाला।
कांग्रेसी भ्रष्टाचार की जमीन पर ईमानदार राजनेता की मूर्ति बनकर उभरे अरविंद केजरीवाल का राजनीतिक अवसान इतनी जल्दी होगा यह किसी ने नहीं सोचा था। कांग्रेस से गठबंधन करने में नाकाम रहे केजरीवाल अब कह रहे हैं कि यदि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की टीम एक बार फिर लोक सभा चुनाव जीतती है तो इसके लिए राहुल गांधी जिम्मेदार होंगे। इसका मतलब यह है कि अरविंद केजरीवाल ने यह मान लिया है कि आम चुनाव में मोदी-शाह की टीम विजय पताका फहराने वाली है।
कांग्रेसी भ्रष्टाचार की पैदाइश अरविंद केजरीवाल ने भरी सभा में अपनी औलाद की कसम खाकर कहा था कि वे कभी भी कांग्रेस से गठबंधन नहीं करेंगे। इसके बावजूद अरविंद केजरीवाल कई महीनों से कांग्रेस से गठबंधन की भीख मांगते फिर रहे थे। यहां तक कि केजरीवाल एक रात शीला दीक्षित के घर के बाहर भी बैठे रहे लेकिन कांग्रेस ने केजरीवाल को एक दाना तक नहीं डाला।
इतना ही नहीं केजरीवाल ने शरद पवार से लेकर सीताराम येचुरी जैसे नेताओं के जरिए कांग्रेस पर दबाव बनाया कि वह पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में लोक सभा सीटों के लिए गठबंधन कर ले। लेकिन कांग्रेस आम आदर्मी पार्टी के तेजी से नीचे गिरते ग्राफ को देखते हुए झुकने से साफ इंकार कर दिया।
मोदी भय से पीड़ित कांग्रेस हाईकमान ने तो गठबंधन का मन बना लिया था लेकिन लोकसभा चुनाव के ठीक छह महीने बाद होने वाले दिल्ली विधान सभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस की राज्य इकाई गठबंधन के लिए तैयार नहीं हुई। गौरतलब है कि 2015 के दिल्ली विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के वोट बैंक को हड़पकर आप को शानदार विजय मिली थी। यह पहली बार हुआ है जब कांग्रेस हाईकमान ने अपने क्षेत्रीय नेताओं के सामने समर्पण किया है।
दरअसल कांग्रेस के सिकुड़ते दायरे ने हाईकमान को स्थानीय नेतृत्व की बात मानने पर मजबूर कर दिया। गौरतलब है कि हाईकमान संस्कृति के कारण ही कभी देश के हर गांव-कस्बा-तहसील से नुमाइंगी दर्ज कराने वाली कांग्रेस पार्टी पिछले तीन दशकों से लगातार अपना जनाधार खोती जा रही है।
कांग्रेस के इतिहास को देखें तो स्थानीय नेताओं की उपेक्षा करके जिन राज्यों में कांग्रेस ने क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने की रणनीति अपनाई वहां वह तीसरे व चौथे पायदान पर पहुंच गई। बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। इसीलिए इस बार कांग्रेस हाईकमान ने स्थानीय नेतृत्त की राय को तरजीह देने में ही भलाई समझा।
आम आदमी पार्टी की घटती लोकप्रियता ने भी कांग्रेस को एकला चलो नीति अपनाने पर बाध्य कर दिया। गौरतलब है कि एक समय आम आदमी पार्टी की पूरे देश में लहर चल रही थी और वैकल्पिक राजनीति की सशक्त धारा को इसने मुख्यधारा में लाने का काम किया। दुर्भाग्यवश यह पार्टी अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक महत्वाकांक्षा की भेंट चढ़ गई।
अपने गठन के समय पार्टी ने घोषणा की थी कि उसके लिए सभी नागरिक आम आदमी हैं लेकिन बाद में उसी पार्टी ने एससी-एसटी मोर्चा, ओबोसी व अल्पसंख्यक मोर्चा का गठन कर अपनी वैचारिक प्रतिबद्धताओं को तिलांजिल दे दी। जब पार्टी को संस्थापकों ने इसका विरोध किया तब केजरीवाल ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि आम आदमी पार्टी केजरीवाल की निजी पार्टी बनकर जनता से दूर जाने लगी। पार्टी की घटती लोकप्रियता इसका प्रमाण है। यही कारण है कि अरविंद केजरीवाल अकेले चुनाव में उतरने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)