सवाल यह उठता है कि जब केजरीवाल खुद को इतना पाक साफ मानते हैं तो वे बार-बार मीडिया को सफाई क्यों दे रहे हैं और बौखला क्यों रहे हैं? उन्हें जो भी बातें बोलनी हैं, वह दर्ज तो जांच एजेंसी के सामने की जाएगी। मीडिया में दिए बयानों को गंभीरता से क्यों लिया जाना चाहिये। उनको तो प्रमाण सहित अपनी बेगुनाही साबित करनी चाहिये। आखिर वो भी तो सबसे प्रमाण मांगते हैं।
आम आदमी पार्टी के लिए इस समय सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। ऐसा भी कहा जा सकता है कि इस पार्टी के साथ कभी कुछ ठीक था भी नहीं, अभी तो बस गड़बडि़यां उजागर हो रही हैं। दिल्ली सरकार के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन के जेल में रहते हुए मसाज करवाने के वीडियो फुटेज का बवाल हो या शराब नीति मामले में उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी, ये पार्टी निरंतर विवादों में बनी हुई है।
मनीष सिसोदिया गिरफ्तारी बाद से लगातार हिरासत में हैं। सीबीआई और ईडी दोनों एजेंसियों ने उन्हें आरोपी बनाया है और कोर्ट से उन्हें राहत नहीं मिल पा रही है। सीबीआई मामले में उनकी हिरासत अवधि 27 अप्रैल तक है और ईडी मामले में हिरासत अवधि 29 अप्रैल है।
यह सब चल ही रहा था कि पिछले दिनों अब सीबीआई ने इस पार्टी के सर्वे सर्वा अरविंद केजरीवाल को तलब कर लिया। जैसे ही यह खबर सामने आई, केजरीवाल की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। केजरीवाल और उनकी पार्टी का तो यह पुरजोर दावा रहता है कि वे, उनकी पार्टी के नेता सबसे ईमानदार हैं। वे तो कभी कोई गलत काम कर ही नहीं सकते। उल्टा, वे कभी भी किसी भी दल, नेता से सवाल पूछकर उसकी सत्यता और चरित्र का प्रमाण मांग सकते हैं और उनकी कसौटी पर खरा उतरने के बाद ही किसी को यह प्रमाण-पत्र मिल सकता है। लेकिन आज स्थिति ये है कि खुद पर आरोप लगने पर वे केंद्र सरकार पर आरोप लगाने लगते हैं।
यदि थोड़ा अतीत में जाएं तो हम पाएंगे कि अगस्त 2011 में जब अरविंद केजरीवाल अन्ना हजारे के साथ जिस आंदोलन के चलते चर्चाओं में आए थे, उसकी मुख्य मांग भ्रष्टाचार पर लगाम कसना ही थी। फिर यहीं से केजरीवाल पार्टी बनाकर राजनीति में आ गए और दावा किया कि वे राजनीति की गन्दगी दूर करेंगे। आज आलम यह है कि जिस पार्टी की स्थापना भ्रष्टाचार से लड़ने की बुनियाद पर हुई थी, उसी के कर्णधारों को आज जांच एजेंसियां भ्रष्टाचार, घोटालों और गड़बडि़यों के चलते तलब कर रही हैं, कोर्ट में पेश कर रही हैं।
अब चूंकि केजरीवाल खुद तलब हो गए हैं तो जांच में सहयोग करने की बजाय मीडिया में आकर उलजलूल बयानबाजी कर रहे हैं। पिछले दिनों सुबह सीबीआई दफ्तर के लिए निकलने से पहले मीडिया से उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी पर आरोप लगाते हुए कहा कि, भारत दुनिया का नंबर-1 देश बन सकता था, लेकिन आप जैसे नेताओं और भाजपा जैसी पार्टियों ने नहीं बनने दिया। केजरीवाल ने एक वीडियो जारी करके यह भी कहा कि ये लोग बहुत ताकतवर हैं, किसी को भी जेल भेज सकते हैं।
अब सवाल यह उठता है कि जब केजरीवाल खुद को इतना पाक साफ मानते हैं तो वे बार-बार मीडिया को सफाई क्यों दे रहे हैं और बौखला क्यों रहे हैं? उन्हें जो भी बातें बोलना हैं, वह दर्ज तो जांच एजेंसी के सामने की जाएगी। मीडिया में दिए बयानों को गंभीरता से क्यों लिया जाना चाहिये। उनको तो प्रमाण सहित अपनी बेगुनाही साबित करनी चाहिये। आखिर वो भी तो सबसे प्रमाण मांगते हैं।
उनको देश की सेना पर विश्वास नहीं होता, इसलिए वो सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक के सबूत मांगते हैं। वे प्रधानमंत्री की शैक्षिक योग्यता के प्रमाण-पत्र मांगते हैं। उन्होंने ऐसा माहौल बनाया है कि वे जिसको प्रमाणित कर देंगे, बस वही दूध का धुला है। वो सबकी जांच करने वाले स्वयंभू लोकपाल हैं और जब उन पर कोई आरोप लग जाता है तो वे बिलिबला उठते हैं। उनसे पूछा जाना चाहिये कि आखिर दिल्ली सरकार के छद्म स्कूली मॉडल को प्रचारित करके वे शराब नीति घोटाले पर क्यों पर्दा डाल रहे थे। यदि मनीष सिसोदिया इतने ही ईमानदार थे तो वे आज पूछताछ के दायरे में, हिरासत में क्यों हैं ?
आज केजरीवाल के साथ वही हो रहा है जो वो खुद सबके साथ किया करते थे। अब उनसे इस्तीफा मांगा जा रहा है। हाल ही में दिल्ली में भाजपा कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन कर केजरीवाल से इस्तीफा मांगा है। भाजपा नेता दुष्यंत कुमार गौतम ने कहा, “केजरीवाल एक भ्रष्ट व्यक्ति हैं और अब वह दिल्ली के लोगों को गुमराह नहीं कर सकते। केजरीवाल खुद को कट्टर ईमानदार बताते हैं, लेकिन वह कट्टर बेईमान हैं। उन्होंने यह सत्येंद्र जैन, मनीष सिसोदिया और अन्य विधायकों-मंत्रियों के लिए भी यह कहा था। इसलिए उन्होंने अपनी विश्वसनीयता खत्म कर ली है।“
अगर आम आदमी पार्टी के नेता ईमानदार होते तो अदालत उनके साथ न्याय करती, पर सिसोदिया और जैन को क्यों जमानत नहीं मिली? यह तो एक बानगी भर है। अभी आगे इस पार्टी को बहुत कुछ सुनना बाकी है। यमुना को साफ करने के खोखले दावे करने वाली आम आदमी पार्टी को तो तभी शर्मिंदगी महसूस करनी चाहिए थी, जब 2021 में नाले के गंदे व झाग वाले पानी में सैकड़ों धर्मालुओं ने छठ पूजा की। उनकी आस्था के साथ इस प्रकार का दुर्व्यवहार करने के बाद भी केजरीवाल की आंखें नहीं खुलीं। वे लगातार अपनी गलतियों से ध्यान हटाने के लिए दूसरों पर आरोप लगाना शुरू कर देते हैं। उनकी छवि एक गंभीर नेता की नहीं, बल्कि एक मसखरे की बन गई है।
दिल्ली विधानसभा में वे अर्नगल बातें बोलने के आदी हो चुके हैं। गुजरात चुनाव के समय भी उनका वहां जाकर ऑटो में बैठना और पुलिस से अभद्रता करना सबकी आंखों में खटका था। इतना ही नहीं, उन्होंने किसी ज्योतिष की तरह गुजरात में मिलने वाली सीटों की संख्या की भी भविष्यवाणी कर दी थी। परिणाम आने के बाद जब जनादेश का तमाचा उनके मुंह पर पड़ा तो वे गाल सहला भी नहीं सके।
अपने बड़बोलेपन पर केजरीवाल क्यों इतने गर्वित रहते हैं, इसका कारण वही जानते होंगे। देश के प्रधानमंत्री पर व्यक्तिगत आक्षेप करते समय वे राजनीति की मर्यादा भूल जाते हैं। कश्मीर पंडितों की पीड़ा पर उन्होंने जिस प्रकार से सदन में ठहाका लगाया था, इससे अधिक अपमानजनक व उपहास पूर्ण कुछ हो नहीं सकता।
जनता की तकलीफों का भुनाकर अपनी गंदी व भ्रष्ट राजनीति करने वाले अरविंद केजरीवाल ने यूं तो कभी अपने गिरेबान में झांकने की तकलीफ नहीं उठाई, लेकिन जब यही काम ईडी और सीबीआई करवा रही है तो उनके पैरों तले जमीन खिसक रही है। केजरीवाल कुछ भी कहते रहें, लेकिन अब तो जांच एजेंसियां निश्चित ही दूध का दूध और पानी का पानी करके रहेंगी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)