सैद्धांतिक एवं व्यवहारिक रूप से भारत एक हिन्दू राष्ट्र है और इसीलिए इसके सेक्युलर स्टेट बने रहने की संभावना सर्वाधिक है। यहाँ का हर भारतवासी जिसमे भारत के प्रति प्रेम है वो हिन्दू हैं, यही वजह है कि अल्पसंख्यक पन्थ वाले लोग भी फल-फुल रहे हैं। वरना दुनिया में तमाम अन्य पंथ वाले स्टेट अथवा नेशन में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग लगातर कम ही हुए हैं। भारत का भला इसके हिन्दू राष्ट्र के वैभव के बने रहने में है और इसका मुसलमान, हर इसाई और हर समुदाय यह कहने लगे कि वह बेशक किसी और पंथ का है, लेकिन सांस्कृतिक रूप से हिन्दू ही है तो देश का उत्थान और तीव्र गति से होगा।
दो बातों को लेकर संघ का सर्वाधिक विरोध होता है। पहला कि संघ भारत के ‘हिन्दू राष्ट्र’ होने की बात करता है जबकि दूसरा ये कि संघ के अनुसार भारत में रहने वाला और भारतीय संस्कृति को मानने वाला हर भारतीय हिन्दू है। इन दोनों मुद्दों पर संघ का दृष्टिकोण बड़ा ही स्पष्ट है। लेकिन संघ-विरोधी खेमे द्वारा इन मुद्दों पर विरोध के साथ-साथ यह आरोप भी लगाने की भरपूर कोशिश होती रही है कि संघ भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने का एजेंडा चलाने की फिराक में है!
यह सवाल ही बेबुनियाद एवं खारिज है। इस सवाल के खारिज होने का सबसे बड़ा आधार ही यही है कि भारत को ‘हिन्दू-राष्ट्र’ बनाने की कोशिश भला क्यों होगी, जबकि यह हजारों साल से तमाम आक्रान्ताओं के आक्रमण और गुलामी के बावजूद हिन्दू राष्ट्र है ? संघ-विरोधियों से यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि भारत अगर हिन्दू राष्ट्र नहीं है तो राष्ट्र के सन्दर्भ में इसका स्वरुप क्या है ?
बेहद शातिर ढंग से इसका जवाब देते हुए तथाकथित संघ-विरोधी बुद्धिजीवी खेमा बोल देता है कि भारत के संविधान के अनुसार भारत सेक्युलर स्टेट अर्थात सेक्युलर राज्य है। बस यही दो शब्दों के फेर में पूरी बहस भ्रम पूर्ण बन जाती है। संविधान निहित ‘सेक्युलरिज्म’ शब्द का हवाला देकर संघ का विरोध करने वालों को यह बात समझनी चाहिए कि संघ कभी भी भारत को ‘हिन्दू-स्टेट’ बनाने अथवा इसके हिन्दू-स्टेट होने की बात नहीं करता है। साथ ही पढ़े-लिखे शातिर बुद्धिजीवियों को यह भी समझने की जरुरत है कि स्टेट और नेशन दोनों अलग-अलग शब्द हैं। दोनों के अपने-अपने लक्षण हैं।
इस भ्रम में इस देश को रखने की कोशिश बंद करनी होगी कि भारत को ‘सेक्युलरिज्म’ जैसी कोई चीज संविधान से मिली है। हजारों साल के सांस्कृतिक विरासत वाले देश को अब १९७५ में एक तानाशाह सरकार द्वारा आपातकाल लगाकर संविधान में जबरन थोपे गये ‘सेक्युलरिज्म’ शब्द को अब अपनी ऐतिहासिक थाती मानना होगा क्या ? जिस सेक्युलरिज्म की जरूरत गांधी और अम्बेडकर को नहीं महसूस हुई, उसको एक तानाशाह प्रधानमंत्री द्वारा देश पर थोपे गये शब्दावली को उपहार की तरह लेना पड़ेगा क्या ? खैर यह तो एक बात हुई, दूसरी और महत्वपूर्ण बात यह है कि संविधान से राज्य यानी स्टेट संचालित होता है न कि राष्ट्र अर्थात नेशन।
भारत में आजादी से पहले भी अनेक राज्य रहे और उनके संविधान रहे। लेकिन राष्ट्रीयता के मुद्दे पर तमाम राज्यों में बटा यह विशाल भूखंड तब भी एक राष्ट्र था। इसी राष्ट्र के भूखंडों पर कई राज्य बने, उनमे युद्ध हुए लेकिन राष्ट्रीयता के मुद्दे पर यह राष्ट्र आधुनिक भारत के इतिहास में १९४७ से पहले कभी विभाजित नहीं हुआ था। राष्ट्र का निर्माण संविधान से नहीं होता है, बल्कि वहां की संस्कृति और वहां की भाषा आदि से होता है। हमे समझना होगा कि राष्ट्र का निर्माण किसी कानूनी संशोधन से भी नहीं होता बल्कि वहां के लोगों की अपने चेतना से होता है।
यह हास्यास्पद तथ्य है कि भारत के ‘हिन्दू राष्ट्र होने से इसके सेक्युलर-स्टेट'(जो संविधान में भी असंवैधानिक ढंग से लाया गया है) को कोई खतरा है। अपने नैसर्गिक स्वभाव में भारत हिन्दू संस्कृति वाला एक राष्ट्र है इसी वजह से इसके स्वभाव में समभाव की प्रेरणा है। सनातन हिन्दू संस्कृति होने की वजह से ही यह बिना किसी क़ानून और संवैधानिक प्रावधान के भी राज्य के सन्दर्भ में सेक्युलरिज्म की बुनियादी शर्तों को आदि काल से मानता आया है। बेहद हास्यास्पद स्थिति तो तब हो जाती है जब कोई व्यक्ति खुद को ही ‘सेक्युलर’ बताने लगता है! मानव जन्म से उसकी मृत्यु तक के क्रिया-प्रक्रिया में वो कौन से कारक हैं जिससे पता चले कि वो सेक्युलर है ? व्यक्ति धार्मिक हो सकता है, आस्तिक हो सकता है, नास्तिक हो सकता है, मजहबी हो सकता है, लेकिन निजी जीवन में सेक्युलर कैसे हो सकता है, यह सवाल भी ‘सेक्युलरिज्म’ के विमर्शकारों से पूछा जाना चाहिए।
संघ-विरोधियों से यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि भारत अगर हिन्दू राष्ट्र नहीं है तो राष्ट्र के सन्दर्भ में इसका स्वरुप क्या है ? बेहद शातिर ढंग से इसका जवाब देते हुए तथाकथित संघ-विरोधी बुद्धिजीवी खेमा बोल देता है कि भारत के संविधान के अनुसार भारत सेक्युलर स्टेट अर्थात सेक्युलर राज्य है। बस यही दो शब्दों के फेर में पूरी बहस भ्रम पूर्ण बन जाती है। संविधान निहित ‘सेक्युलरिज्म’ शब्द का हवाला देकर संघ का विरोध करने वालों को यह बात समझनी चाहिए कि संघ कभी भी भारत को ‘हिन्दू-स्टेट’ बनाने अथवा इसके हिन्दू-स्टेट होने की बात नहीं करता है।
अब जरा संघ पर लगने वाले दूसरे आरोप पर बात करते हैं। संघ का यह मानना है कि भारत में रहने वाला हर हर भारतीय ‘हिन्दू’ है। १७ जुलाई को गाँधी स्मृति दर्शन में आयोजित प्रभाष स्मृति कार्यक्रम में बोलते हुए सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद, पत्रकार, वक़ील गोवा-निवासी क्लाड एल्वारिस ने प्रभाष प्रसंग कार्यक्रम में कहा मै ‘हिन्दू-ईसाई हूँ। भारत में रहने वाला हर व्यक्ति हिन्दू है। यही संघ भी कहता है। भारत में रहने वाला हर व्यक्ति जो सांस्कृतिक रूप से भारतीय हो, हिन्दू है। हमारा पूजा-पंथ कुछ भी हो सकता है, लेकिन हम सांस्कृतिक तौर पर तो हिन्दू ही हैं।
चूँकि हमारे यहाँ सनातन-हिन्दू धर्म किसी पंथ की तरह नहीं होकर सीधे कर्म से जुड़ा है। यहाँ धर्म और कर्म दोनों परस्पर एक-दूसरे के पूरक हैं। सनातन सांस्कृति आपको नास्तिक रहकर भी सनातन व्यवस्था से जुड़ने का अवसर देती है जो दुनिया के किसी पन्थ में शायद संभव नहीं है। आप अल्लाह अथवा कुरआन को खारिज करने मुसलमान नहीं रह सकते, आप बाइबिल को न मानते हुए इसाई नहीं रह सकते लेकिन आप सभी देवी-देवताओं एवं मान्यताओं को नकार कर भी सनातनी हिन्दू बने रहते हैं। यही इस महान हिन्दू धर्म की उदारता है।
धर्म और कर्म का सीधा संबंध इस लिहाज है कि पिता के रूप में आपका धर्म कुछ और है, पुत्र-धर्म कुछ और, मातृ-धर्म कुछ और और राजधर्म कुछ और होता है। आपके कर्मों के अनुरूप आपका धर्म है। इसलिए सनातन संस्कृति की तुलना किसी पन्थ अथवा मजहब से कतई नहीं की जा सकती। यह बात सेक्युलर खेमे के बौद्धिक लफ्फाजों को समझनी होगी कि भारत में हर व्यक्ति इसलिए हिन्दू है क्योंकि उसकी संस्कृति हिन्दू है। उसका रहन-सहन हिन्दू है।
रही बात आस्था और पूजा-पन्थ की तो इस मामले में यह संस्कृति बाकियों की तरह बिलकुल भी कट्टर नहीं है। सैद्धांतिक एवं व्यवहारिक रूप से भारत एक हिन्दू राष्ट्र है और इसीलिए इसके सेक्युलर स्टेट बने रहने की संभावना सर्वाधिक है। यहाँ का हर भारतवासी जिसमे भारत के प्रति प्रेम है वो हिन्दू हैं, यही वजह है कि अल्पसंख्यक पन्थ वाले लोग भी फल-फुल रहे हैं। वरना दुनिया में तमाम अन्य पंथ वाले स्टेट अथवा नेशन में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग लगातर कम ही हुए हैं। भारत का भला इसके हिन्दू राष्ट्र के वैभव के बने रहने में है और इसका मुसलमान, हर इसाई और हर समुदाय यह कहने लगे कि वह बेशक किसी और पंथ का है, लेकिन सांस्कृतिक रूप से हिन्दू ही है तो देश का उत्थान और तीव्र गति से होगा।
(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च फेलो हैं एवं नेशनलिस्ट ऑनलाइन के संपादक हैं।)