सफाई सर्वेक्षण की सूची में देश भर में अव्वल आए मध्यप्रदेश के शहर इंदौर में स्वच्छता अभियान लगातार नए सोपानों पर अग्रसर है। यहां सबसे उल्लेखनीय बात सामने आई है कि शहर में गंदगी से होने वाली बीमारियों का ग्राफ पहले से गिरा है। स्थानीय निकाय का दावा है कि यहां सफाई के अभाव में होने वाले रोगों में 70 फीसदी तक गिरावट आई है। शहर से कचरा पेटियां हट गई हैं और घर-घर जाकर कचरा लिया जा रहा है। खुले में शौच पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इन सब प्रयासों का परिणाम ये हुआ है कि शहर में स्वास्थ्य का स्तर अच्छा हो गया है।
2 अक्टूबर, 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में एक नई क्रांति का सूत्रपात किया। यह क्रांति विचारों की या बल प्रदर्शन की नहीं बल्कि जनजागरूकता और नागरिकता बोध को लेकर उठाए गए कदम की थी। यह क्रांति आदतों की थी, व्यवहार की थी, आचरण की थी। इसका संबंध स्वास्थ्य से और सलीके से था। यह क्रांति सफाई की थी। स्वच्छ भारत अभियान का आरंभ इस दिन से हुआ और तीन साल में यह एक विराट आंदोलन बन चुका है। क्या महिला-क्या पुरुष, क्या बच्चे-क्या बूढ़े, क्या अमीर-क्या गरीब, क्या आम-क्या खास, सभी वर्ग और तबके इस एक मिशन को लेकर एकजुट, एकमत हैं; इसमें कोई दोराय नहीं है।
आज विश्व में भारत की इस मिशन के कारण स्वच्छता के प्रति बेहद गंभीर देश की छवि बनी है और हमें विश्व में एक सफाई पसंद जागरूक राष्ट्र के रूप में रेखांकित किया जाने लगा है। निश्चित ही 2014 से पहले ऐसा नहीं था। कहा जा सकता है कि भाजपा की सरकार ने पक्ष, विपक्ष सभी को समाहित कर केवल और केवल देश को आगे बढ़ाने के क्रम में यह बड़ा बीड़ा उठाया था, जिसमें आशातीत सफलता मिल रही है।
देश में शौचालय क्रांति
यदि हम कहें कि देश में शौचालय को लेकर जो क्रांति आई है, वह अभूतपूर्व है तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी। स्वच्छता मिशन में शौचालय सबसे अहम हिस्सा है। बरसों से देश की ग्रामीण जनता खुले में शौच के लिए जाती रही है। इससे गंदगी फैलती थी और महिलाएं सुरक्षित नहीं थीं। पीएम मोदी ने पहल करते हुए देश को खुले में शौच से मुक्त करने का बीड़ा उठाया। आज नतीजा हमारी आंखों के सामने है।
जिनके घरों में शौचालय नहीं थे, उनके लिए सरकार अनुदान देकर शौचालयों का निर्माण करवा रही है। इस क्रांति से महिलाओं व बच्चों को सबसे अधिक लाभ पहुंचा है। जागरूकता इस स्तर तक पहुंची कि बिना शौचालय के बहुओं ने ससुराल में जाने से इंकार किया, जिसके चलते ससुराल वालों को शौचालय का निर्माण करना पड़ा। इसी मार्मिक विषय पर अभिनेता अक्षय कुमार भी जुड़े और ‘टायलेट एक प्रेमकथा’ नामक फिल्म लेकर आए। इसके माध्यम से उन्होंने शौचालय के महत्व को बताया और जनता ने इसे बेहतर प्रतिसाद दिया। 2014 के पहले यह सब नहीं था, निश्चित ही भाजपा सरकार को देश में युगपत क्रांति लाने का श्रेय जाता है।
स्कूलों, संस्थाओं के संस्कार
स्वच्छता को लेकर जागरूकता का ये आलम है कि स्कूलों, संस्थाओं ने भी कमर कस ली है। अब वहां स्वच्छता को महज किताबी पाठ नहीं वरन एक संस्कार बनाकर आदतों में ढाला जा रहा है। समय-समय पर स्कूलों में सफाई की जा रही है, जिसमें छात्र, शिक्षक सभी उत्साह से भाग ले रहे हैं। संस्थाएं अपनी ओर से शिविर लगाकर लोगों को सफाई का महत्व बता रही हैं।
समाजों के चल समारोह में आया बड़ा बदलाव
एक बड़ा बदलाव विभिन्न समाजों द्वारा किए जाने वाले सार्वजनिक समारोहों को लेकर देखने में आया है। 2014 के पहले यह होता था कि बारातें निकलतीं थी और बारात का स्वागत करने वाले अपने खाने-पीने की चीजों के खाली पैकेट वगैरह वहीं सड़क पर फेंककर आगे निकल जाया करते थे। इससे वहां गंदगी का ढेर बढ़ता जाता था। अब इसमें बदलाव आया है। अब बारात निकलती है तो आयोजक पहले से ही सफाईकर्मियों की तैनाती सुनिश्चित करके चलते हैं। वे तुरंत सड़क को साफ करते, कचरा उठाते चलते हैं। यही काम चल समारोहों में भी किया जा रहा है। ऐसे में आयोजन में भी खलल नहीं पड़ती है और सफाई भी बनी रहती है। निश्चित ही आदतों में यह बदलाव देश में आए बदलाव का सूचक है।
सफाई में अव्वल आए इस शहर में घटा बीमारियों का ग्राफ
सफाई सर्वेक्षण की सूची में देश भर में अव्वल आए मध्यप्रदेश के शहर इंदौर में स्वच्छता अभियान लगातार नए सोपानों पर अग्रसर है। यहां सबसे उल्लेखनीय बात सामने आई है कि शहर में गंदगी से होने वाली बीमारियों का ग्राफ पहले से गिरा है। स्थानीय निकाय का दावा है कि यहां सफाई के अभाव में होने वाले रोगों में 70 फीसदी तक गिरावट आई है। शहर से कचरा पेटियां हट गई हैं और घर-घर जाकर कचरा लिया जा रहा है। खुले में शौच पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इन सब प्रयासों का परिणाम ये हुआ है कि शहर में स्वास्थ्य का स्तर अच्छा हो गया है।
हर परिवार को होगी 50 हजार की वार्षिक बचत
यूनिसेफ का कहना है कि स्वच्छ भारत अभियान देश के लिए आर्थिक रूप से भी लाभकारी है। इससे प्रत्येक परिवार को वार्षिक रूप से 50 हजार रुपए की बचत होगी। यह बात यूनिसेफ ने 12 जिलों में 10 हजार ग्रामीण परिवारों के बीच किए गए एक अध्ययन के आधार पर कही है। इस अध्यययन में पता लगाया गया कि सफाई अभियान पर सरकार की ओर से खर्च किए जा रहे 1 रुपए से कितना लाभ होगा। निष्कर्ष निकला कि हर 1 रुपए की तुलना में 4.30 रुपया बचाने में मदद मिलेगी।
अभिनेताओं और खिलाड़ियों ने भी दिखाई दिलचस्पी
स्वच्छता अभियान महज आम लोगों तक ही सीमित नहीं रहा है, इसे लेकर सेलिब्रिटी वर्ग ने भी रुचि दिखाई है। स्वयं पीएम नरेंद्र मोदी ने जब हाथों में झाडू उठाकर सफाई करके दिखाई तो अन्य ख्यात लोगों को भी इससे प्रेरणा मिली। खिलाडि़यों में सचिन तेंदुलकर, सिने कलाकारों में शिल्पा शेट्टी, रितिक रोशन आदि ने अपने क्षेत्र में स्वयं सफाई अभियान में भाग लिया। अभिनेता रणबीर शौरी ने पिछले दिनों मुंबई के एक बीच पर एक दल के साथ मिलकर सफाई की और समुद्र तट से बड़ी संख्या में कचरा निकाला।
राजनीति नहीं, राष्ट्रनीति का अभियान
स्वच्छ भारत अभियान का राजनीति से कोई संबंध नहीं है। यह राजनीति से मुक्त है और इसे राष्ट्रनीति का अभियान कहना अधिक श्रेयस्कर होगा। इसमें देश के प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी सुनिश्चित की गई है कि वह अपने आसपास सफाई बनाए रखे और अपने घर का कचरा सड़कों पर ना फेंके। चूंकि, यह देशभक्ति से प्रेरित अभियान है, ऐसे में इसमें बढ़ चढ़कर लोग सहभागिता करते नज़र आ रहे हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार ने की अनूठी पहल
स्वच्छ भारत अभियान के क्रम में उत्तरप्रदेश सरकार का अत्यंत सराहनीय कदम देखने को मिला है। उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य में पूर्णतया स्वच्छता को सुनिश्चित करने के लिए शासकीय कार्यालयों से शुरुआत की। उन्होंने इस वर्ष मार्च में पद संभालते ही सभी सरकारी कार्यालयों में पान, गुटखा, तंबाकू उत्पाद के सेवन पर प्रतिबंध लगा दिया। पान खाकर पीक थूकने पर पाबंदी लगाई और दीवारों को खराब करने वालों को दंड देना सुनिश्चित किया। कहना न होगा कि इस पहल का सकारात्मक प्रतिसाद मिला और आज उप्र में व्यापक पैमाने पर सफाई एक आदत बन चुकी है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)