उसवक़्त मेरे पास मोबाइल तो नहीं, मगर एक डायरी हुआ करती थी, जिसमें कुछ महत्त्वपूर्ण सामाजिक-राजनीतिक लोगों के लैंडलाइन नं थे। तब शायद मोबाइल होना बड़ी बात थी। यही कोई 4:30-5:00 बजे का वक्त रहा होगा। मैंने बड़े संकोच और द्वन्द्व के साथ एक टेलीफोन बूथ पर जाकर एक लैंडलाइन नं डायल किया, दूसरी तरफ से जो आवाज आई, उसकी आत्मीयता और अपनेपन ने मेरी सारी झिझक, सारा संकोच क्षण भर में दूर कर दिया। उन्होंने बड़ी तसल्ली से मुझे पता बताया और मिलने की व्यग्रता दर्शायी।
मैं निर्दिष्ट स्थान पर लगभग 45 मिनट बाद पहुँच गया। कॉल बेल बजाते ही दरवाजा खुला। दरवाजा खोलने वाले व्यक्ति ने भींचकर मुझे अपने गले से लगा लिया। उनसे मेरी यह दूसरी मुलाकात थी, पर वे जिस आत्मीयता से मिले, ऐसा लगा जैसे वे मुझे वर्षों से जानते हों। पता था आज का 11 अशोका रोड और व्यक्ति थे भाजपा के तत्कालीन महासचिव श्री के. एन गोविंदाचार्य जी। उनके स्नेह और वात्सल्य का सिलसिला वहीं नहीं थमा, कुछ मिनटों की बातचीत के बाद उन्होंने मुझसे कहा- “चलो प्रणय, मैं तुम्हें अध्यक्ष जी से मिलाकर लाता हूँ!” नंगे पैर (क्योंकि उनके पैर में चोट लगी थी) एक सफेद रंग की मारुति वैन ख़ुद ही ड्राइव करते हुए वे मुझे तत्कालीन अध्यक्ष कुशाभाऊ ठाकरे जी के यहाँ ले गए। वहाँ हम लगभग तीन घण्टे बैठे और उन्हीं के यहाँ जलपान आदि किए।
सोचिए, किसी की पहली दिल्ली-यात्रा और ऐसी आव-भगत! ऐसा लग रहा था, जैसे उस अनजान शहर और अज़नबी लोगों के बीच एक नहीं बल्कि पूरा विचार-परिवार ही पलक-पाँवड़े बिछाए बैठा हो। गोविन्दाचार्य जी के साथ मारुति वैन की उस यात्रा में इतिहास-दर्शन-शिक्षा-साहित्य से लेकर जीवन और जगत् से जुड़े तमाम मुद्दों पर गहन चर्चा हुई और वह एक दिन मेरी ज़िन्दगी का सबसे ख़ास दिन बन गया!
भाजपा ही वह पार्टी है, जिसमें किसी व्यक्ति विशेष की जय-जयकार करने के लिए बाध्य नहीं होना पड़ता। भाजपा में अनुशासन और विचारधारा के साथ प्रतिबद्ध रहते हुए आगे बढ़ने की पूरी संभावना निहित है। वहाँ सम्पन्नों से लेकर गरीब-गुरबों तक किसीको भी सिंहासन मिलने की संभावना होती है। देश की अधिकांश राजनीतिक पार्टियों के उत्तराधिकार को लेकर आपके मन में क्या कोई संशय-संदेह है? वहीँ दूसरी तरफ, क्या आप बता सकते हैं कि भाजपा का अगला अध्यक्ष कौन होगा? नहीं न! क्या इससे यह सिद्ध नहीं होता कि भाजपा आज भी कार्यकर्त्ताओं की पार्टी है? यहाँ तख़्त और ताज कुल-खानदान-गोत्र के आधार पर नहीं, संघर्ष, अनुभव और योग्यता के आधार पर सौंपे जाते हैं। सत्ता जहर होती है, पर सौभाग्य से यह इस पार्टी की धमनियों और शिराओं में अभी तक नहीं पहुँचा है। यह आज भी विभिन्न अर्थों में ‘पार्टी विद अ डिफ़रेंस’ को जीती है।
जो लोग संघ-विचार परिवार से जुड़े हैं, उन्हें पता है कि उस दौर में संघ रूपी मौक्तिक कोष में ऐसे एक-से-बढ़कर एक चमकदार नगीने थे। उनमें से कुछ की समय के साथ चमक थोड़ी धीमी पड़ी, तो कुछ हमेशा वैसे ही जगमगाते रहे। वह दौर शायद मेरा भी निर्माण-काल था। विभिन्न कार्यक्रमों के दौरान पूज्य रज्जू भैया, सुदर्शन जी, भागवत जी, स्व. अधीश जी, स्व. ज्योति जी, स्व कृष्णचन्द्र गाँधी जी, इन्द्रेश जी, भिड़े जी, दिनेश जी, ओमप्रकाश जी जैसे सामाजिक क्षेत्र के दिग्दर्शकों से लेकर आडवाणी जी, जोशी जी, कुशाभाऊ ठाकरे जी, कैलाशपति मिश्र जी, कल्याण सिंह जी, राजनाथ सिंह जी जैसे राजनीतिज्ञों से भी यदा-कदा भेंट हो जाया करती थी। इन्हीं चिंतकों-व्यक्तित्वों का परिणाम है कि आज तक राष्ट्र और हिंदुत्व के प्रति मेरी निष्ठा अक्षुण्ण रही है। मुझे संघ-पथ पर अग्रसर कराने वाले कई अग्रजों तक ने राह बदल ली, पर मेरी निष्ठा सनातन मूल्यों के प्रति दिन-प्रतिदिन बलवती होती गई। संगठन-भाव भी पहले की तुलना में आज और पुष्ट ही हुआ है।
आज कभी-कभी कैसे-कैसे संदर्भों में मन को यह बात कचोट जाती है कि क्या ईश्वर ने वे साँचे ही बनाने बंद कर दिए, जिसमें ऐसे चरित्र ढ़ला करते थे। जैसे-जैसे दिन बदले, दौर बदले सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र के प्रतिमान भी बदलते चले गए। सादगी-सरलता के स्थान पर बाहरी चमक-दमक पर अधिक ज़ोर दिया जाने लगा, भव्यता का आडंबर सबको भाने लगा, आत्मीयता का स्थान औपचारिकता ने ले लिया। शेष राजनीतिक पार्टियों के लिए तो शायद यह बदलाव स्वाभाविक भी रहा हो, पर भिन्न संस्कृति की बात करने वाली, प्रतिबद्धता पर मर मिटने वाली विचारधारा आधारित पार्टी के लिए बदलाव की यह बयार कुछ नई-सी है। स्वाभाविक है कि यह बदलाव न केवल राजनीतिक दलों में घर कर गया है, अपितु हमारे घर-परिवार का भी कोई कोना इससे अछूत नहीं रह सका है। पर सुखद यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा भारतीय जनता पार्टी अब भी इन बदलावों से अछूते हैं।
अब बात आज की भाजपा की करें, तो इसमें कोई दो राय नहीं कि आज भी यह विचारधारा आधारित कार्यकर्त्ताओं की पार्टी है! ऐसी कौन-सी पार्टी होगी जिसके राष्ट्रीय अध्यक्ष से आप राष्ट्र एवं राष्ट्रीय हितों से जुड़े मुद्दों पर बेरोक-टोक बातचीत कर सकते हैं? मेरे जैसा गैर राजनीतिक व्यक्ति यदि उनसे मिल सकता है, तो राजनीतिक कार्यकर्त्ता क्यों नहीं? आज भी आप 11 अशोका रोड पर स्थित भाजपा मुख्यालय जाकर पूर्व सूचना देकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष से मिल सकते हैं। किसी केंद्रीय मंत्री से सीधा संवाद कर सकते हैं।
मैंने पहले भी लिखा है कि अभी हाल ही में एक केंद्रीय मंत्री से समय माँगने पर मुझे उनके दफ़्तर से ठीक 6।00 बजे सुबह कॉल आया कि मंत्री जी ने सायं 6।00 बजे का समय मिलने के लिए मुकर्रर किया है। उस दिन भेंट न होने पर अगले दिन 12 बजे मंत्री महोदय ने स्वयं कॉल कर मुझे मिलने के लिए बुलाया और करीब 45 मिनट तक सामाजिक सरोकारों पर मुझसे बात की! एक साधारण नागरिक के प्रति भी उनका यह व्यवहार, क्या ये बदलाव के संकेत नहीं हैं? भाजपा मुख्यालय में अलग-अलग दिनों में कोई-न-कोई केंद्रीय मंत्री सामान्य नागरिकों एवं कार्यकर्त्ताओं की समस्याओं का समाधान करने हेतु ज़रूर बैठता है और सहज भाव से जरूरतमंदों की बातें सुनता है! क्या इसे सकारात्मक संकेत न माना जाय?
आपको कोई भ्रम हो उससे पूर्व ही मैं आपको बता दूँ कि मैं भाजपा का कोई पदाधिकारी या पंजीकृत कार्यकर्त्ता भी नहीं हूँ! राजनीति मेरे लिए अस्पृश्य कभी नहीं रही, पर वह मेरे जीवन का अविभाज्य अंग भी नहीं रही। मैंने हमेशा राजनीति को व्यापक मानवीय संस्कृति का एक अविभाज्य अंग माना, पर राजनीति मेरे लिए कभी भी समाज को दिशा देने वाली सर्वोच्च सत्ता नहीं रही। मैं मानता हूँ कि धर्म, नीति और संस्कृति ही समाज को दिशा देने वाली अंतिम और सर्वोच्च सत्ता है और इसी में भारत का कल्याण है।
मैं तो उसी सांस्कृतिक राह का यात्री हूँ, वैसे भी पगडंडियों की राह मुझे अधिक लुभाती है, राजमार्गों के फ़िसलन भरे रास्ते पर चलने का साहस और संकल्प मुझमें नहीं है। बावजूद इसके ये अवश्य कहूँगा कि भाजपा ही वह पार्टी है, जिसमें किसी व्यक्ति विशेष की जय-जयकार करने के लिए बाध्य नहीं होना पड़ता। भाजपा में अनुशासन और विचारधारा के साथ प्रतिबद्ध रहते हुए आगे बढ़ने की पूरी संभावना होती है। वहाँ सम्पन्नों से लेकर गरीब-गुरबों तक किसीको भी सिंहासन मिलने की संभावना होती है।
देश की अधिकांश राजनीतिक पार्टियों के उत्तराधिकार को लेकर आपके मन में क्या कोई संशय-संदेह है? क्या आप बता सकते हैं कि भाजपा का अगला अध्यक्ष कौन होगा? नहीं न! क्या इससे यह सिद्ध नहीं होता कि भाजपा आज भी कार्यकर्त्ताओं की पार्टी है? यहाँ तख़्त और ताज कुल-खानदान-गोत्र के आधार पर नहीं, संघर्ष, अनुभव और योग्यता के आधार पर सौंपे जाते हैं। सत्ता जहर होती है, पर सौभाग्य से यह इस पार्टी की धमनियों और शिराओं में अभी तक नहीं पहुँचा है। यह आज भी ‘पार्टी विद डिफ़रेंस’ को विभिन्न अर्थों में जीती है।
लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। यह लेख उनके निजी अनुभवों पर आधारित है।