कृष्ण का जीवन हर क्षण हमको यही प्रेरणा देता है कि जीवन को अनासक्त भाव से जियो। कृष्ण अपने जीवन में कहीं भी जीवन के प्रति आसक्ति नहीं दिखाते, पर मृत्यु को पराजित करने का भाव सदैव उनके अंदर रहता है। मृत्यु को जीतने के लिए वे हर कदम उठाते हैं और इसके लिए वे उस समय प्रचलित किसी भी धारणा को, मिथ को नहीं मानते और उन धारणाओं का विध्वंस करते हैं।
जीवन के साथ ही मृत्यु घेरने लगती है और अनवरत हमले करने शुरू करती है। कुछ इस हमले से उबर जाते हैं और कुछ पहले ही झपट्टे में ध्वस्त। यह तय बात है कि जिस किसी ने भी जन्म लिया है, उसकी मृत्यु निश्चित है। मगर कुछ लोग काल को टाल देते हैं और ऐसे ही लोग कालजयी या कालातीत कहलाते हैं। कृष्ण ऐसे ही महान लोगों में से थे, जिन्होंने काल को जीत लिया था। वर्ना काल तो उनके पैदा होते ही उनके पीछे लग गया था।
एक तो जहां उनका जन्म जहां हुआ था, वह काल कोठरी थी और उनके मामा ने उनके नहीं पैदा होने और अगर पैदा हो जाएं तो मार देने की पुख्ता व्यवस्था कर रखी थी। पर देखो कृष्ण पैदा भी हुए और बार-बार आने वाली मृत्यु को उन्होंने भगाया भी। कृष्ण इस सदी के महान नायक इसीलिए तो हैं। कृष्ण ने पग-पग पर मृत्यु को अपने से दूर भगाया। वे कारागार में पैदा हुए और फिर यमुना की बाढ़ को पार करते हुए उनके पिता उन्हें गोकुल ले गए। और वहां भी मृत्यु भेष बदल-बदल कर उनके पीछे लग गई। मृत्यु के वार होते और कृष्ण पर हर वार खाली जाते। कृष्ण अपने कौशल से बच जाते। यही है कृष्ण की जीवंतता और अपने इसी खिलंदड़ीपन के कारण ही कृष्ण को ईश्वर का दर्जा मिला।
कृष्ण का जीवन हर क्षण हमको यही प्रेरणा देता है कि जीवन को अनासक्त भाव से जियो। कृष्ण अपने जीवन में कहीं भी जीवन के प्रति आसक्ति नहीं दिखाते, पर मृत्यु को पराजित करने का भाव सदैव उनके अंदर रहता है। मृत्यु को जीतने के लिए वे हर कदम उठाते हैं और इसके लिए वे उस समय प्रचलित किसी भी धारणा को, मिथ को नहीं मानते और उन धारणाओं का विध्वंस करते हैं। बचपन में भी और उम्र बढऩे पर भी। कृष्ण ने इंद्र को सर्वोच्च मानने से मना कर दिया और इंद्र के कोप से बचने के लिए गोवर्धन का सहारा लिया।
अकेले नहीं पूरे कुनबे को साथ लेकर। उन्होंने अर्जुन को अपने ही भाइयों से लडऩे और लड़ाई में हर तरह की नैतिकता और अनैतिकता के प्रयोग को उचित ठहराया। उन्होंने अर्जुन को समझाते हुए कहा कि हे अर्जुन! उठो, कायर मत बनो युद्घ करो क्योंकि युद्घ में अगर मारे गए तो स्वर्ग का सुख भोगोगे और विजयी रहे तो इस पृथ्वी का। यह पुरुषार्थ का मूल मंत्र है। हारना-जीतना तो लगा ही रहता है, पर जिसने युद्घ के पहले ही हार मान ली, वह तो समझो बिना लड़े ही मारा गया। यह था कृष्ण का आचरण जो अब तक के ज्ञात इतिहास में अनिर्वचनीय है और अनुकरणीय भी।
उन्होंने जीवन को एक खेल की तरह जिया और एक कुशल खिलाड़ी की तरह वे मृत्यु को पराजित करते रहे। वे भी काल-कवलित हुए मगर अपनी शर्तों के साथ। आखिर जो पैदा हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित है और कृष्ण प्रकृति के इस चक्र को बदलना नहीं चाहते थे। कृष्ण का जीवन हर क्षण हमको यही प्रेरणा देता है कि जीवन को अनासक्त भाव से जियो। कृष्ण अपने जीवन में कहीं भी जीवन के प्रति आसक्ति नहीं दिखाते, पर मृत्यु को पराजित करने का भाव सदैव उनके अंदर रहता है। मृत्यु को जीतने के लिए वे हर कदम उठाते हैं और इसके लिए वे उस समय प्रचलित किसी भी धारणा को, मिथ को नहीं मानते और उन धारणाओं का विध्वंस करते हैं। बचपन में भी और उम्र बढऩे पर भी।
कृष्ण ने इंद्र को सर्वोच्च मानने से मना कर दिया और इंद्र के कोप से बचने के लिए गोवर्धन का सहारा लिया। अकेले नहीं पूरे कुनबे को साथ लेकर। उन्होंने अर्जुन को अपने ही भाइयों से लडऩे और लड़ाई में हर तरह की नैतिकता और अनैतिकता के प्रयोग को उचित ठहराया। उन्होंने अर्जुन को समझाते हुए कहा कि हे अर्जुन! उठो, कायर मत बनो युद्घ करो क्योंकि युद्घ में अगर मारे गए तो स्वर्ग का सुख भोगोगे और विजयी रहे तो इस पृथ्वी का। यह पुरुषार्थ का मूल मंत्र है। हारना-जीतना तो लगा ही रहता है, पर जिसने युद्घ के पहले ही हार मान ली, वह तो समझो बिना लड़े ही मारा गया। यह था कृष्ण का आचरण जो अब तक के ज्ञात इतिहास में अनिर्वचनीय है और अनुकरणीय भी।
कृष्ण को कालातीत इसलिए भी कहा गया है क्योंकि उन्होंने काल के सापेक्ष नई नैतिकताएं गढ़ीं और मनुष्य को मनुष्य की तरह आचरण करने को प्रेरित किया। सोचिए अगर कृष्ण धारणाओं को नहीं तोड़ते तो न तो पांडव महाभारत युद्ध जीत पाते न कौरवों की हृदयहीनता पर लगाम लग पाती। कृष्ण ने बताया कि शठ के साथ शठता का ही आचरण करना चाहिए। दुर्योधन के साथ कोई भी मानवीय आचरण ठीक नहीं है।
दुर्योधन ने पांडवों को लाचार बनाने में कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ी थी। उन्हें भयंकर कष्ट और उनका राजपाट हड़पने के लिए हर तरह के छल-छद्म किए। उनकी महारानी द्रोपदी को भरी सभा में अपमानित और लांछित किया। उन्हें धूर्ततापूर्वक जुए में हराया, मगर दुर्योधन उनसे तब तक सीधे युद्घ करने से बचता रहा जब तक कि पांडव के विरुद्घ उसने जनमानस नहीं बना लिया और अन्य राजाओं को उनके प्रतिकूल भी। जाहिर है दुर्योधन कोई नादान युवराज नहीं था। उसने भी समय का इंतजार किया और समय के अपने अनुकूल होते ही पांडवों को घेर लिया। ऐसे संकट के समय यदि कृष्ण नहीं होते तो दुर्योधन को पराजित करना संभव नहीं होता। और दुर्योधन का मान-मर्दन करने के लिए वीरता से अधिक दरकार कौशल की थी। साथ ही उन नैतिक मूल्यों के हनन की भी जो उस समय की प्रचलित धारणाओं के सहारे बने थे।
दुर्योधन के साथ उस समय के श्रेष्ठ धनुर्धर और वीर योद्धा तो थे ही, वे आदरणीय जन भी थे जिनके विरुद्ध लड़ने में पांडवों को लज्जा आ रही थी। मगर कृष्ण ने अर्जुन को उद्यत किया और पग-पग पर उस समय के प्रचलित मूल्यों को तोड़ा। भले वह पितामह भीष्म को तीरों से बींध देने का मामला हो अथवा गुरू द्रोणाचार्य को मारने हेतु झूठ बोलने का। कृष्ण ने युधिष्ठिर तक से झूठ बुलवा दिया कि अश्वत्थामा मारा गया। इसके बाद महान धनुर्धर कर्ण को मारने हेतु कृष्ण ने अर्जुन को उस समय ललकारा जब कर्ण निहत्था था और वह अपने रथ के पहिए को कीचड़ से ऊपर निकाल रहा था।
सच है कि अगर कर्ण को उस समय नहीं मारा जाता तो कर्ण को मारना असंभव था। इसके बाद गदा युद्घ में दुर्योधन को पराजित करना भी कृष्ण की दूरदर्शिता का एक नमूना ही था। कृष्ण जानते थे कि महाबली भीम दुर्योधन को गदा युद्घ में पराजित नहीं कर सकते क्योंकि अपनी माँ गांधारी के वरदान के चलते उसका पूरा शरीर वज्र के समान कठोर हो चुका है, मगर उसकी जंघाएं अन्य मनुष्यों की तरह कमजोर हैं। गदा युद्घ में जंघा पर वार नहीं किया जाता, मगर कृष्ण ने भीम को उकसाया कि वह दुर्योधन की जंघा पर वार करे। दुर्योधन के पतन के साथ ही महाभारत का युद्घ ठंडा पड़ गया पर कृष्ण ने दूर की सोची। वे नीति चतुर थे इसलिए कदम-कदम पर पांडवों को सलाह दी और उन्हें संकटों से बचाया।
कृष्ण का सारा जीवन इसी तरह के द्वंद से जूझता है, पर कृष्ण कहते हैं कि जो मनुष्य के लिए कल्याणकारी है, वही सोच और वही चिंतन यथावत रहना चाहिए वर्ना किसी एक लकीर का फकीर बनना सही नहीं है। कृष्ण ने वही मानदंड स्थापित किए जो मानव जीवन के लिए कल्याणकारी थे। इसीलिए कृष्ण ने हर आपदा को परास्त किया और मृत्यु तक को पीछे धकेल दिया। उनके कालजयी होने और कालातीत बताए जाने की वजह यही थी। कृष्ण महान थे और महान रहेंगे। कोई भी इतिहास गाथा बगैर कृष्ण के पूरी नहीं हो सकती। कृष्ण कारागार में जनमें पर कारागार की जड़ताओं को उन्होंने धारण नहीं किया। कृष्ण की यही विशेषता उन्हें अन्य सभी से अलग करती है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)