प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वंचित तबकों पर विशेष ध्यान देते हुए “हर हाथ को काम” देने की योजना पर काम कर रहे हैं। इतना ही नहीं वे जरूरत पड़ने पर आधी रात को दरवाजा खटखटाने की इजाजत भी दे चुके हैं। ऐसे में जालीदार टोपी न पहनने के लिए मोदी की आलोचना करने वाले नेताओं को चाहिए कि वे रोजा-इफ्तार में शिरकत करने के बाद साल भर के लिए मुसलमानों को भूलने की आदत से बाज आएं। मुस्लिम समुदाय को भी इन मौसमी रहनुमाओं के सामने अपने पिछड़ेपन के सवाल को उठाना चाहिए।
2014 के लोक सभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद कांग्रेस पार्टी दो साल से इफ्तार पार्टी नहीं दे रही है। उत्तर प्रदेश में तो हद हो गई जब प्रदेश कांग्रेस ने दावत का निमंत्रण पत्र भेजने, होटल क्लार्क का मैदान बुक करने और मेन्यू तय होने के बावजूद आलाकमान के निर्देश पर अचानक इफ्तार पार्टी रद्द कर दी। यह वही कांग्रेस है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री निवास पर इफ्तार पार्टी न दिए जाने पर जमकर अलोचना की थी। भले ही कांग्रेस पार्टी मुस्लिमपरस्ती से बचने का नाटक कर रही हो, लेकिन देश में ऐसे नेताओं की कमी नहीं है जो इस मौके का फायदा अपनी राजनीति चमकाने के लिए करते हैं।
यदि मुसलमानों के ये रहनुमा पवित्र रमजान महीना बीतने के बाद भी मुसलमानों की समस्याओं को दूर करने का जमीनी उपाय करते तो आज यह समुदाय अपने पिछड़ेपन पर आंसू न बहा रहा होता। स्पष्ट है, आज शिक्षण-प्रशिक्षण से लेकर सरकारी नौकरियों तक में मुसलिम समुदाय पिछड़ा हुआ है, तो इसके लिए वोट बैंक की राजनीति और मुसलमानों के ये “मौसमी” रहनुमा ही जिम्मेदार हैं।
इस कड़वी हकीकत के बावजूद मुसलिम समुदाय में एक बड़ा तबका अब भी उसी नेता को अपना रहनुमा मानता है, जो रमजान महीने के दौरान गोल टोपी व चार खाने के गमछे के साथ रोजा तुड़वाते हुए फोटो खिंचवाता है। देश के तथाकथित सेकुलर दल और नेता भी मुसलमानों की इस कमजोर नस को कसकर पकड़े हुए हैं। जाति-धर्म की राजनीति से उपर उठकर व्यवस्था परिवर्तन का नारा लगाने वाली आम आदमी पार्टी से देश को बहुत उम्मीदे थीं, लेकिन वह भी वोट बैंक की इस राजनीति से आगे नहीं बढ़ पाई ।
वोट बैंक की राजनीति में इन दलों द्वारा यह प्रतिमान स्थापित कर दिया गया है कि यदि कोई नेता इफ्तार पार्टी में शामिल नहीं होता तो वह मुस्लिम विरोधी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना इसी आधार पर की जाती है। लेकिन मोदी को केवल इसी पैमाने पर आंकना गलत होगा क्योंकि वे मुसलमानों के उपरोक्त रहनुमाओं से अलग हैं। नरेंद्र मोदी देश का सर्वांगीण विकास कर रहे हैं, जिससे सभी समुदाय समान रूप से लाभान्वित हो रहे हैं। इसे गुजरात में मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति से समझा जा सकता है।
गुजरात में मुसलमानों की आबादी आठ फीसदी है, लेकिन सरकारी सेवाओं में मुसलमानों की भागीदारी साढ़े आठ फीसदी है। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात में मुस्लिम साक्षरता 73.5 फीसदी है, जबकि राष्ट्रीय औसत 59 फीसदी है। ग्रामीण गुजरात में मुसलमानों की प्रति व्यक्ति आमदनी 668 रूपये है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर ग्रामीण मुसलमानों की मासिक आमदनी 553 रूपये है। गुजरात के शहरी इलाकों में प्रति व्यक्ति औसत आमदनी 875 रूपये है, जबकि राष्ट्रीय औसत 804 है। उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और पंजाब में यह औसत क्रमश: 662, 748 और 811 रूपये है।
प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी इसी प्रकार के कार्यक्रमों के जरिए सबका विकास कर रहे हैं। प्रधानमंत्री की पहली प्राथमिकता देश में उचित कारोबारी माहौल बनाना है। इसके लिए वे आधारभूत ढांचा सुधार और विदेशी निवेश बढ़ाने के साथ-साथ लोगों को बदलते जमाने के अनुरूप हुनरमंद बना रहे हैं ताकि देश की विशाल जनसंख्या विपदा के बजाए संपदा बने। इससे न सिर्फ हर हाथ को काम मिलेगा बल्कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा मानव संसाधन केंद्र बनकर उभरेगा।
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना का लक्ष्य 2022 तक 50 करोड़ लोगों को प्रशिक्षण देना है। इसके लिए हर जिले में प्रधानमंत्री कौशल विकास केंद्र की स्थापना की गई है जिनके जरिए तीन हजार युवाओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। अब “स्कूल से स्किल (कौशल)” यानि कि 12वीं कक्षा पास करने के साथ-साथ कौशल की योग्यता का भी प्रमाण-पत्र दिया जा रहा है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों, भारतीय प्रबंधन संस्थानों, केंद्रीय विश्वविद्यालयों व अन्य 4,000 उच्च शिक्षण संस्थानों द्वारा एक से छह माह का तकनीकी व वोकेशनल कोर्स चलाया जा रहा है।
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय ने “स्फूर्ति” नामक योजना के जरिए पारंपरिक कौशल प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना की है। सब्जी विक्रेता, पान-नाई-परचून के दुकानदारों जैसे छोटे कारोबारियों के लिए मुद्रा बैंक की स्थापना की गई है जिससे उन्हें दस हजार से दस लाख रूपये तक का ऋण आसानी से मिल रहा है।
अल्पसंख्यकों में हुनर को बढ़ावा देने के लिए ‘नेशनल अकादमी ऑफ स्किल डेवलपमेंट’ द्वारा कई प्रकार के कौशल विकास कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं। अल्पसंख्यक मंत्रालय “उस्ताद” नामक योजना के जरिए पारंपरिक कौशल का विकास कर रहा है। मदरसे में पढ़ने वाले किशोरों को “सीखो और कमाओ” योजना के तहत वित्तीय सहायता और कौशल सीखने के साथ-साथ उनके लिए संगठित और असंगठित क्षेत्र में शत-प्रतिशत रोजगार सुनिश्चित किया गया है।
“साइबर ग्राम” योजना के तहत सरकारी स्कूलों एवं मदरसों के छात्रों को कंप्यूटर एवं डिजिटल ज्ञान की सुविधा प्रदान की जा रही है। प्रधानमंत्री का नया 15 सूत्री कार्यक्रम अल्पसंख्यकों के विकास में अहम भूमिका निभा रहा है।
स्पष्ट है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वंचित तबकों पर विशेष ध्यान देते हुए “हर हाथ को काम” देने की योजना पर काम कर रहे हैं। इतना ही नहीं वे जरूरत पड़ने पर आधी रात को दरवाजा खटखटाने की इजाजत भी दे चुके हैं। ऐसे में जालीदार टोपी न पहनने के लिए मोदी की आलोचना करने वाले नेताओं को चाहिए कि वे रोजा-इफ्तार में शिरकत करने के बाद साल भर के लिए मुसलमानों को भूलने की आदत से बाज आएं। मुस्लिम समुदाय भी इन मौसमी रहनुमाओं के सामने अपने पिछड़ेपन के सवाल को रखे ताकि उनकी तालीम, आजीविका जैसी बुनियादी समस्याओं का टिकाऊ समाधान हो सके।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)