लालू के बेटे तेजस्वी यादव से जब पत्रकारों ने आरोपों पर उनका पक्ष जानने की कोशिश की तो उनके समर्थकों और सुरक्षाकर्मियों द्वारा पत्रकारों से बदसलूकी की गयी, ऐसी भी तस्वीरें सोशल मीडिया में तैर रही है। हालांकि तेजस्वी ने इन आरोपों को भ्रामक बताया है, मगर साथ ही यह भी कह गए कि मीडिया में भाजपा के गुंडे आ गए हैं। ये भाषा उन्होंने किस आधार पर बोली है, उन्हें बताना चाहिए। साथ ही, जो आरोप उनपर लगे हैं, उनका भी तथ्यात्मक जवाब देना चाहिए; बजाय कि ‘…तब मेरी मूछें भी नहीं थीं’ जैसी बचकाना दलील देने के।
लालू प्रसाद यादव की मुश्किलें इन दिनों बढ़ी हुई हैं। यूँ तो लालू पहले से ही चारा घोटाला मामले में सजायाफ्ता हैं और जमानत पर घूम रहे हैं। लेकिन, अब उनसे लेकर उनके परिवार के सदस्यों तक के खिलाफ एक के बाद एक आरोप जिस तरह से सामने आए हैं तथा सरकारी एजेंसियों द्वारा उनपर कार्रवाई हुई है, उससे साफ़ ज़ाहिर है कि लालू की मुश्किलें और बढ़ने वाली हैं। शायद समय आ गया है कि उन्हें अपने पूरे कच्चे-चिट्ठे का हिसाब देना होगा।
गत दिनों सीबीआई ने लालू यादव के कई ठिकानों पर छापेमारी की। आरोप है कि रेलमंत्री रहते हुए उन्होंने पटना के चाणक्य होटल के मालिकों के साथ मिलीभगत कर उन्हें रांची और पुरी स्थित रेलवे के दो होटल बिना किसी टेंडर के बेहद सस्ते में लीज पर दे दिए। इस सौगात के बदले लालू यादव को पटना में तीन एकड़ ज़मीन प्राप्त हुई। यह ज़मीन पहले लालू के सहयोगी प्रेमचंद गुप्ता की कंपनी को दी गयी, जो कंपनी बाद में लालू और उनके परिवार की हो गयी। ये वही ज़मीन है, जिसपर तेजस्वी यादव बड़ा शॉपिंग मॉल बनाने वाले थे। लेकिन, अब इस मामले के सामने आ जाने के बाद प्रवर्तन निदेशालय लालू पर मनी लोंड्रिंग का मुकदमा दर्ज करने जा रहा, जिसके बाद इन अवैध संपत्तियों (होटल और ज़मीन) को जब्त किया जा सकेगा।
बहरहाल, इतना तो साफ़ है कि लालू यादव ने रेल मंत्री रहते हुए किस हद तक अपने पद का दुरूपयोग किया है। ये तो सिर्फ एक मामला है, जो प्रकाश में आ गया, इसे देखते हुए इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि ऐसे और भी गोरखधंधे लालू ने अपने रेलमंत्रित्व काल में अंजाम दिए होंगे।
ये तो सिर्फ लालू और उनके बेटों की बात हुई, उनकी बेटियाँ भी घोटालों की इस नदी में हाथ धोने में पीछे नहीं रही हैं। लालू के ठिकानों पर सीबीआई के छापों के कुछ देर बाद ही उनकी बेटी मीसा भारती के कई ठिकानों पर प्रवर्तन निदेशालय द्वारा छापेमारी की गयी। मामला मनी लांड्रिंग का था। बेनामी संपत्ति के मामले में भी मीसा और उनके पति शैलेश कुमार आरोपित हैं। स्पष्ट है कि लालू के परिवार में लालू की कृपा से जिसे, जहां और जब अवसर मिला, उसने हाथ साफ़ करने में देर नहीं लगाई। आज उन गोरखधंधों की पोलपट्टी खुलकर सामने आ रही है, तो इनसे कोई जवाब देते नहीं बन रहा।
लालू के बेटे तेजस्वी यादव से जब पत्रकारों ने आरोपों पर उनका पक्ष जानने की कोशिश की तो उनके समर्थकों और सुरक्षाकर्मियों द्वारा पत्रकारों से बदसलूकी की गयी, ऐसी भी तस्वीरें सोशल मीडिया में तैर रही है। हालांकि तेजस्वी ने इन आरोपों को भ्रामक बताया है, मगर साथ ही यह भी कह गए कि मीडिया में भाजपा के गुंडे आ गए हैं। ये भाषा उन्होंने किस आधार पर बोली है, उन्हें बताना चाहिए। साथ ही, जो आरोप उनपर लगे हैं, उनका भी तथ्यात्मक जवाब देना चाहिए; बजाय कि ‘…तब मेरी मूछें भी नहीं थीं’ जैसी बचकाना दलील देने के।
बहरहाल, सीबीआई और ईडी की कार्रवाइयों पर लालू यादव का एकमात्र यही बयान होता है कि ये सब भाजपा नीत केंद्र सरकार द्वारा उन्हें चुप कराने की साज़िश है। मगर, ये बात कुछ हज़म नहीं होती। गौर करें तो इस वक़्त भाजपा अपने सर्वोत्कृष्ट राजनीतिक दौर में है, जबकि लालू यादव की वर्तमान राजनीतिक दशा ‘संतोषजनक’ से अधिक कुछ नहीं कही जा सकती। सिवाय बिहार की गठबंधन सरकार के लालू का कोई ठोस राजनीतिक वजूद फिलहाल नज़र नहीं आता। ये गठबंधन भी हर समय किन्तु-परन्तु के भंवर में ही गोते लगाते रहता है।
इसके अलावा लालू के पास न तो लोकसभा में कुछ है, न राज्यसभा में। अन्य किसी राज्य में भी उनका कोई वजूद नहीं है। ऐसे में, सवाल उठता है कि भाजपा जैसी ताकतवर पार्टी को लालू से क्या दिक्कत हो सकती है कि वो उन्हें चुप कराने के लिए सरकारी एजेंसियों के इस्तेमाल जैसे हथकंडे अपनाएगी ? ये एकदम निराधार बात है।
दरअसल बात यह है कि लालू के ये ज्यादातर कारनामें कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के ज़माने के हैं। कांग्रेस ने लालू के इन कारनामों को आधार बनाकर उन्हें अपने हाथों की कठपुतली बनाए रखा। तभी तो लालू कांग्रेस के साथ किसी गठबंधन में रहें या न रहें मगर उसके खिलाफ कभी भी वे अधिक तेवर नहीं दिखाते बल्कि प्रायः उसके समर्थन में ही खड़े नज़र आते रहते हैं। मगर, अब केंद्र की भाजपा सरकार के सामने जैसे-जैसे लालू के कच्चे-चिट्ठे आने लगे हैं, वो इनपर कार्रवाई करने लगी है। ऐसे में, अब उन्होंने इन सब कार्रवाइयों को भाजपा नीत केंद्र सरकार की साज़िश बताने को अपना शगल बना लिया है। मगर, अब वे चाहें जो कहते रहें, अपने काले कारनामों की कालिख से बच नहीं सकते।
कभी बिहार की राजनीति में डेढ़ दशक तक लगातार हुकूमत करने वाले लालू यादव की अगर आज ये दशा है, तो इसके लिए सामाजिक न्याय की आड़ में की गयी उनकी जातिवाद और परिवारवाद पर आधारित राजनीति तथा अपराधियों के प्रश्रय से बिहार में स्थापित किया गया जंगलराज ही जिम्मेदार है। बिहार में सामाजिक न्याय के इस कथित झंडाबरदार ने बिहार को सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक रूप से जितना नुकसान पहुँचाया है, उससे आज तक बिहार उबर नहीं सका। अब लालू को इन सबका हिसाब देने के लिए तैयार रहना चाहिए, क्योंकि केंद्र में वो कांग्रेस नहीं है, जिसकी जी-हुजूरी करके वे खुद को बचा लेंगे।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)