ये उस वक्त की बात है, जब गुजराल बिहार से राज्यसभा का चुनाव लड़ रहे थे । राज्यसभा चुनाव के उस दौर में लालू यादव ने इंद्र कुमार गुजराल को मिलने के लिए दिल्ली के बिहार भवन में बुलाया और बातों-बातों में ये इशारा किया कि राज्यसभा के चुनाव में पैसे खर्च कर वोट खरीदने होते हैं । झारखंड मुक्तिमोर्चा के विधायकों के हवाले से बात करते हुए लालू यादव ने गुजराल को ये संकेत दिया कि चुनाव जीतने के लिए उनको पैसों का इंतजाम करना होगा । गुजराल ने विनम्रतापूर्वक लालू के सांकेतिक प्रस्ताव को टाल दिया। किताब में वर्णित प्रसंग के मुताबिक गुलजार के इस रुख से लालू यादव काफी खफा हो गए और लगभग चिल्लाते हुए गुजराल को अपने कमरे से बाहर निकाल दिया।
लालू यादव, एक जमाने में सामाजिक न्याय के मसीहा के तौर पर उभरे और जब रथयात्रा के दौरान लालकृष्ण आडवाणी को बिहार में गिरफ्तार किया गया तो उसके बाद से धर्म निरपेक्षता के भी चैंपियन माने जाने लगे । बिहार पर परोक्ष-प्रत्यक्ष रूप से करीब एक दशक से ज्यादा वक्त तक शासन किया । सामाजिक न्याय के उस दौर में मतदाताओं ने लालू यादव को अपार राजनीतिक ताकत दे दी थी । लालू यादव कहा भी करते थे कि वो किंग मेकर हैं । नब्बे के आखिरी दशक में गठबंधन सरकारों के दौर में यह माना जाता था कि लालू का जिसको समर्थन मिल जाएगा, वो प्रधानमंत्री बन जाएगा । उस दौर मे लालू चालीसा लिखकर लोग संसद तक में पहुंच गए थे ।
हालांकि इतनी ताकत मिलने से लालू यादव दंभी भी हो गए थे । हमारे देश के प्रधानमंत्री रहे इंद्र कुमार गुजराल ने अपनी आत्मकथा ‘मैटर्स ऑफ डिस्क्रीशन, एन ऑटोबॉयोग्राफी’ में लालू से जुड़ा एक बेहद अप्रिय प्रसंग लिखा है । उस वक्त की बात है, जब गुजराल बिहार से राज्यसभा का चुनाव लड़ रहे थे । राज्यसभा चुनाव के उस दौर में लालू यादव ने इंद्र कुमार गुजराल को मिलने के लिए दिल्ली के बिहार भवन में बुलाया और बातों-बातों में ये इशारा किया कि राज्यसभा के चुनाव में पैसे खर्च कर वोट खरीदने होते हैं । झारखंड मुक्तिमोर्चा के विधायकों के हवाले से बात करते हुए लालू यादव ने गुजराल को ये संकेत दिया कि चुनाव जीतने के लिए उनको पैसों का इंतजाम करना होगा । गुजराल ने विनम्रतापूर्वक लालू के सांकेतिक प्रस्ताव को टाल दिया। किताब में वर्णित प्रसंग के मुताबिक गुलजार के इस रुख से लालू यादव काफी खफा हो गए और लगभग चिल्लाते हुए गुजराल को अपने कमरे से बाहर निकाल दिया। बाद में वी पी सिंह के आग्रह पर गुजराल ने उस बातचीत को उस वक्त सार्वजनिक नहीं किया था ।
बाद में लालू यादव पर चारा घोटाले के आरोप लगे, कई बार जेल गए और फिर सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सजा को बहाल रखा जिसके बाद से वो चुनाव लड़ने के अयोग्य है । लालू यादव ने पहले अपनी पत्नी राबड़ी देवी के माध्यम से राजनीति की और अब उनके दोनों बेटे बिहार सरकार में मंत्री हैं। तेजस्वी यादव तो उपमुख्यमंत्री हैं । हाल के दिनों मे लालू यादव के दूसरे बेटे तेज प्रताप यादव पर घोटाले के छींटे पड़े हैं । भाजपा के नेता सुशील कुमार मोदी ने आरोप लगाया कि लालू यादव के बेटे ने अपनी कंपनी के माध्यम से लाखों की मिट्टी बगैर टेंडर के पटना के चिड़ियाघर को बेच दिया । चिड़ियाघर उनके विभाग के अंतर्गत ही आता है ।
पिता चारा घोटाले में सजायाफ्ता और बेटे पर मिट्टी घोटाले का आरोप । बिहार में राजनीति गर्माई हुई है । भाजपा हमलावर है, तो लालू यादव भी पलटवार कर रहे हैं । लेकिन यह मामला उतना आसान नहीं है । लालू यादव के दोनों बेटों और राबड़ी देवी के नाम पर इस दो एक एकड़ की जमीन पर आरजेडी के ही एक विधायक पटना का सबसे बड़ा मॉल बनवा रहे हैं । माना जा रहा है कि इस पूरे प्रोजेक्ट की लागत करीब पांच सौ करोड़ है । यहां तक तो सब ठीक था, लेकिन अब सुशील मोदी ने इस जमीन के ट्रांसफर को भी लालू यादव के रेल मंत्री के कार्यकाल के दौरान एक ठेके से जोड़ दिया है । हालांकि लालू इससे इंकार कर रहे हैं । लालू ने कहा कि 2005 में उनके सहयोगी प्रेम गुप्ता की कंपनी ने ये जमीन खरीदी थी । आरोपों के मुताबिक 2008 में राबड़ी देवी ने इस कंपनी को खरीद लिया और बाद में इसको अपने दोनों बेटों को दे दिया । लालू यादव का दावा है कि ये पूरा ट्रांजेक्शन पारदर्शी और कानून के मुताबिक हुआ है ।
अब सवाल यही उठ रहा है कि बिहार सरकार इस मसले पर क्या कर रही है । मिट्टी घोटाले के आरोपों की जांच तो हो रही है, लेकिन इस जमीन के मालिकाना हक को लेकर जांच की जाएगी या लालू के इस वक्त के सहयोगी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उनके तर्कों को मान लेंगे या फिर ‘कानून अपना काम करेगा’ जैसे जुमलों की आड़ में इस मामले को जांच के हवाले कर ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा । लालू यादव से जुड़े कुछ लोगों का दावा है कि बिहार भाजपा में हाशिए पर चल रहे सुशील मोदी इन दिनों अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए लालू यादव पर उलजलूल आरोप लगा रहे हैं। लेकिन मुख्य सवाल यह है कि क्या सुशील मोदी के आरोपों की जांच नहीं होनी चाहिए ।
अंग्रेजी में एक मुहावरा प्रचलन में है जो इतिहासकार लॉर्ड एक्टन ने 1887 में प्रतिपादित किया था- पॉवर टेंड्स टू करप्ट एंड एब्सोल्यूट पॉवर करप्ट्स एब्सोल्यूटली । यह बात कही तो काफी पहले गई थी, लेकिन कई बार ये राजनीतिज्ञों पर लागू होती है । लालू यादव के केस में ही देखें तो जिस तरह से उन्होंने चारा घोटाला किया वो इस मुहावरे को सही साबित करता है । अब जब उनके दोनों बेटे एक बार फिर से सत्ता में हैं और उनके हाथ में सत्ता की ताकत है, तो क्या एक बार फिर से इतिहास खुद को दोहराने के लिए तैयार बैठा है । क्या फिर से एक बार लॉर्ड एक्टन की उक्ति सही साबित होगी ।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)