जो कांग्रेस पार्टी एमएसपी में बढ़ोत्तरी को किसानों के साथ धोखा बता रही है, वह इस सवाल का जवाब क्यों नहीं दे रही है कि यूपीए शासन काल के 10 वर्षों में स्वामिनाथन आयोग की रिपोर्ट ठंडे बस्ते में क्यों पड़ी रही ? फिर आजादी के सत्तर साल बाद भी सरकारी खरीद नेटवर्क पर दलालों का कब्जा क्यों बना रहा ?
अपने चुनावी वादे को पूरा करते हुए मोदी सरकार ने 14 खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में 180 रूपये से लेकर 1827 रूपये तक की भारी-भरकम बढ़ोत्तरी की है। राम तिल (नाइजर सीड) पर सबसे ज्यादा 1827 रूपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की गई है जबकि मूंग के एमएसपी में 1400 रूपये का इजाफा किया गया है।
इस प्रकार सरकार ने उत्पादन लागत का डेढ़ गुना एमएसपी निर्धारित करने की प्रतिबद्धता को पूरा कर दिया। एमएसपी की गणना ए-2 (बीज, खाद आदि का खर्च) और एफएल (परिवार के सदस्यों का मेहनताना) के आधार पर की गई है। सरकार के इस फैसले से खरीफ फसलों की खेती करने वाले नौ करोड़ किसान लाभान्वित होंगे और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बूम मिलेगा।
खेती के संबंध में मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों की तरह इसकी योजनाएं फाइलों तक नहीं सिमटी हैं बल्कि जमीन पर पहुंच रही हैं। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है दालों के उत्पादन में भारी बढ़ोत्तरी। मोदी सरकार द्वारा दालों के उत्पादन को प्रोत्साहन देने के महज दो वर्षों के भीतर देश दालों के मामले में आत्मनिर्भर हो गया और देश में दालों का 20 लाख टन का बफर स्टॉक तैयार है। इससे जमाखोरों की कारगुजारियों पर अंकुश लग गया है। दालों की सफलता को सरकार खाद्य तेलों के मामले में दुहराना चाहती है। इसीलिए वह तिलहनी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने की रणनीति पर काम कर रही है।
कृषि उपजों की सरकारी खरीद, परिवहन और भंडारण का ढांचा 1960 व 70 के दशक वाला है। सरकार सबसे पहले खरीद केंद्रों पर व्यापक बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रही है। जिन राज्यों में सरकारी खरीद का नेटवर्क नहीं है, वहां नेटवर्क बनाना एक बड़ी चुनौती है क्योंकि बिचौलियों की मजबूत लॉबी को कई भ्रष्ट राजनेताओं का संरक्षण हासिल है। इसी तरह बढ़ी हुई सरकारी खरीद के लिए परिवहन और भंडारण क्षमता विकसित करने का काम रातोंरात नहीं किया जा सकता। इसीलिए मोदी सरकार धीरे-धीरे कदम बढ़ा रही है।
कांग्रेस पार्टी क्या इस सवाल का जवाब देगी कि आज जिस देश में हर गली-कूचे में मोबाईल व बाइक शोरूम खुले हैं, उसी देश में औसतन 435 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में एक मंडी क्यों है ? इन मंडियों का नियमन भी कायदे से नहीं होता। हर मंडी के लिए अलग-अलग लाइसेंस की जरूरत होती है और उनकी फीस भी अलग-अलग होती है। यहां उत्पादों को बाजार के लिहाज से और बेहतर बनाने संबंधी सुविधाओं की कमी है। उत्पादों की मौजूदा कीमतों को दर्शाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक बोर्ड भी नहीं है। तकनीक के कम इस्तेमाल के चलते कारोबार में पारदर्शिता नहीं होती जिसका फायदा बिचौलिए उठाते हैं।
जो कांग्रेस पार्टी एमएसपी में बढ़ोत्तरी को किसानों के साथ धोखा बता रही है, वह इस सवाल का जवाब क्यों नहीं दे रही है कि यूपीए शासन काल के 10 वर्षों में स्वामिनाथन आयोग की रिपोर्ट ठंडे बस्ते में क्यों पड़ी रही ? फिर दशकों तक सरकारी खरीद का नेटवर्क गेहूं, धान, कपास, गन्ना जैसी चुनिंदा फसलों तक क्यों सिमटा रहा ? आखिर कृषि बाजार का विकास करने से कांग्रेस को किसने रोका था ?
रिजर्व बैंक कई बार कह चुका है कि कृषि बाजार की प्रभावी उपस्थिति ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन का सशक्त हथियार है। इसके बावजूद सरकारें गरीबी उन्मूलन के लिए कृषि क्षेत्र की अनूठी क्षमता का दोहन नहीं कर पाईं। सरकारें दावा करती रहीं कि किसानों को उपज की लाभकारी कीमत दिलाने के लिए फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) निर्धारित किया जाता है, लेकिन समर्थन मूल्य की व्यवस्था में जो खामियां थीं, उन्हें दूर क्यों नहीं किया।
आखिर आजादी के सत्तर साल बाद भी देश के मात्र 6 फीसदी किसान समर्थन मूल्य का लाभ पाते हैं और 94 फीसदी किसान अपनी उपज की बिक्री हेतु स्थानीय साहूकारों पर निर्भर रहते हैं। यही कारण है कि चुनिंदा फसलों को छोड़कर अधिकतर फसलों के लिए उपभोक्ता द्वारा चुकाई गई कीमत का 10 से 30 फीसदी ही किसानों तक पहुंचता है। खेती के घाटे का सौदा बनने की असली वजह यही है।
भले ही कांग्रेस पार्टी मोदी सरकार को पूंजीपतियों का रहनुमा घोषित करती हो लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि लंबे अरसे बाद देश में ऐसी सरकार आई है जो खेती–किसानी संबंधी बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रही है। मोदी सरकार जहां सिंचाई सुविधा बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री सिंचाई योजना शुरू की है, वहीं कृषि उपजों के बेहतर दाम दिलाने हेतु देश भर की मंडियों को राष्ट्रीय कृषि बाजार (नाम) से जोड़ा जा रहा है।
किसानों को संकट में सहारा देने हेतु प्रधानमंत्री फसल बीमा की शुरूआत की गई है। नीम कोटेड यूरिया से जहां उर्वरकों की कालाबाजारी दूर हुई, वहीं सरकार मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी कर रही है ताकि किसान जरूरत के मुताबिक ही उर्वरकों का इस्तेमाल करें। 2018 तक देश के सभी गांवों तक बिजली पहुंचाने के लक्ष्य के साथ–साथ किसानों को सिंचाई के उन्नत साधनों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है ताकि हर बूंद से अधिक उत्पादन हासिल किया जा सके। सरकार ग्रामीण सड़कों के निर्माण को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही है।
समग्रत: किसानों की समस्याओं का समाधान तब होगा जब उन्हें मुफ्त बिजली-पानी, कर्जमाफी, सस्ता कर्ज, जैसे वोट बटोरू कांग्रेसी जाल से निकालकर आत्मनिर्भर बनाया जाए। किसानों को सब्सिडी नहीं बल्कि उन्नत प्रौद्योगिकी, बीज, आधुनिक भंडारण, प्रसंस्करण और विपणन वाली नीतियों की जरूरत है ताकि उनकी उपज दुनिया भर के बाजारों में अपनी पैठ बना सके।
इससे न केवल खेती-किसानी की बल्कि गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, असमानता, गांवों से पलायन जैसी कई समस्याओं का अपने आप समाधान हो जाएगा। मोदी सरकार खेती-किसानी की भलाई के लिए इन्हीं दूरगामी उपायों को लागू कर रही है। विरोधियों की समस्या यही है कि एक बार किसान सशक्त बन गए तो उनकी वोट बैंक की राजनीति का सूर्यास्त हो जाएगा।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)