1 फरवरी 2017 को अरुण जेटली ने 2017-18 के वित्तीय वर्ष का बजट प्रस्तुत किया। यह बज़ट पिछले कई वर्षो से पेश किये जा रहे अन्य बज़टों की अपेक्षा ज्यादा चर्चित रहा, क्योंकि इस बार समय से पहले बज़ट पेश करने को लेकर विपक्ष सहित तमाम लोग यह अनुमान लगा रहे थे कि इस बजट में केंद्र की मोदी सरकार आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र लोक-लुभावने ऐलान कर सकती है। मगर, सरकार ने अपनी मंशा साफ करते हुए हर बार की तरह इस बार भी विपक्षियों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। इस बार आम बजट में न तो किसी तरह के लोक-लुभावने वादे किये गए और न ही किन्हीं नई भारी-भरकम योजनाओं का ऐलान ही हुआ। बजट में वर्तमान समय में लागू की गयी योजनाओ को और बेहतर बनाने का प्रयास नज़र आया।
डिज़िटल पेमेंट की प्रक्रिया को बढ़ावा देने से लेकर भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने तक इस बज़ट के कई पहलू हैं। देश के इतिहास मे पहली बार किसी सरकार ने रेल बजट को आम बज़ट के साथ प्रस्तुत किया है, जिससे वर्षों से चली आ रही एक औपनिवेशिक तथा अर्थहीन परंपरा का खात्मा हुआ। अब रेल बजट भी आम बज़ट का ही एक हिस्सा होगा। इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि रेलवे की आवश्यकताओं और देश के खज़ाने की हालत को देखते हुए इस क्षेत्र में संतुलित रूप से आवंटन करना वित्तमंत्री के लिए आसान होगा।
इस बज़ट का उद्देश्य चुनावी राज्यों की जनता को लुभाना नही बल्कि देश को प्रगतिशील अर्थव्यवस्थाओं की श्रेणी में एक नया मुकाम दिलाना है, जैसा कि बज़ट में प्रस्तावित प्रावधानों से स्पष्ट है। इस बज़ट में सरकार ने कृषि, शिक्षा, रोजगार, उद्योग जैसे ज़मीनी सुधारों को और गति प्रदान करने की अपनी मंशा को स्पष्ट किया है। भ्रष्टाचार पर रोकथाम एवं महिला सशक्तिकरण के पहलू को मजबूती देने के लिए भी इस बज़ट में कई प्रावधान लाये गए है। इसमें राष्ट्र के दूरगामी हितों और नागरिकों के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करने की रूपरेखा स्पष्ट रूप से दृष्टिगत होती है।
सकारात्मकता एवं वृद्धि दर को बढ़ाने के लिए बज़ट 2017-18 के लिए कुल व्यय 21.47 लाख करोड़ रुपये रखा गया है। ऐसा भी पहली बार हो रहा है कि आम बज़ट के साथ एक समेकित-आउटकम बज़ट भी पेश किया गया है, जिसमें सभी मंत्रालयों एवं विभागों को सम्मिलित किया गया है। इसी क्रम में बज़ट की कुछ मुख्य घोषणाओं व प्रावधानों पर एक दृष्टि डालना समीचीन होगा :
1. 2017-18 में राज्य एवं संघ-शासित प्रदेशों को कुल 4.11 लाख करोड़ रूपये प्रदान किये गए हैं, जो 2016-17 में 3.60 करोड़ थे।
2. किसानों के लिए 2017-18 के आम बज़ट में कृषि ऋण हेतु 10 लाख करोड़ रुपये का लक्ष्य तय किया गया है।
3. औद्योगिक मूल्यवर्धन यानी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में दिए जा रहे व्यावसायिक प्रशिक्षण की गुणवत्ता में सुधार एवं बाजार संगतता लाने ले लिए के लिए कौशल सुदृढ़ीकरण के लिए 2,200 करोड़ की राशि सुनिश्चित की गयी है, जो देश मे व्यापक रूप से फैली बेरोजगारी की समस्या को कम करने में सहायक सिद्ध हो सकता है।
4. 14 लाख आईसीडीएस आंगनवाड़ी केंद्रों में 500 करोड़ रुपये की लागत से ग्रामीण स्तर पर महिला शक्ति केंद्र की स्थापना की जायेगी, जिससे ग्रामीण समाज में महिला सशक्तिकरण एवं शिक्षा व रोज़गार को बढ़ावा मिलेगा।
5. अनुसूचित जाति कल्याण के लिए आवंटित बज़ट 52,393 करोड़ रुपये पिछले वर्ष की तुलना में 35% अधिक है। वहीं, अनुसूचित जनजाति के लिए 31,920 करोड़ रुपये व अल्पसंख्यकों के लिए 4,195 करोड़ रुपये प्रदान किये गये हैं।
6. कोई भी राजनैतिक दल २००० रूपए से अधिक का नक़दी चंदा नही ले सकता। यदि कोई दानदाता इससे अधिक चंदा देना चाहता है तो उसके लिए चेक अथवा डिज़िटल माध्यम का इस्तेमाल करना होगा। इस तरह की व्यवस्था की घोषणा भी बज़ट में की गयो है। बैंक के द्वारा चुनावी बांड्स जारी किये जायेंगे जिनका इस्तेमाल चंदा देने के लिए किया जा सकता है।
7. अरुण जेटली ने 2017-18 के आम बजट में आयकर दाताओ को सौगात के रूप मे छूट प्रदान की है। 50 करोड़ रुपये तक का वार्षिक कारोबार करने वाली छोटी कम्पनियों के लिए आयकर घटा कर 25% किया गया, जो लघु उद्योगों को देश मे प्रोत्साहित करने में मदद करेगा।
8. 3 लाख से तक की रक़म को आयकर से मुक्त कर दिया गया है, जो कि पहले ढाई लाख था। 3-5 लाख की वार्षिक आय पर आयकर 10% से घटकर अब 5% कर दिया गया है जो छोटे करदाताओं के लिए एक सौगात है।
9. इस बज़ट में रक्षा क्षेत्र के लिए 274114 करोड़ रूपये का आवंटन किया गया है, यह रक़म गत वर्ष की तुलना में दस प्रतिशत अधिक है।
स्पष्ट है कि वित्त वर्ष 2017-18 के इस बज़ट में हर वर्ग के विकास के लिए अनेक अवसर तथा और भी बहुत कुछ ख़ास है। इसमें आयकर दाता को जहाँ राहत मिली है, वहीं राजनैतिक दलों के अनैतिक तरीको से अर्जित चुनावी फण्ड पर भी नक़ेल कसने की व्यवस्था भी की गयी है। बतौर राजनीतिक दल यह भाजपा सरकार का एक बेहद साहसी क़दम कहा जाएगा।
देश के अन्नदाता किसान की तरफ इस बज़ट में काफी ध्यान दिया गया है। ‘प्रति बूंद अधिक फसल’ के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु शुरुआती तौर पर 5000 करोड़ रूपये की संचित निधि से सूक्ष्म सिंचाई की स्थापना का ऐलान किया गया है, जिसका सीधा फायदा किसानो को मिलेगा। साथ ही किसानो के लिये कुल 40,000 करोड़ रुपये की संचित निधि से दीर्घावधि सिंचाई कोष की भी स्थापना की जायेगी ताकि सिचाई सम्बंधित समस्याओं का निपटारा हो सके।
इस वर्ष से आम बज़ट में ही संयुक्त हुए रेलवे के बज़ट में चार प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया है – सुरक्षा, पूंजीगत एवं विकास कार्य, स्वच्छता एवं वित्त और लेखांकन संबंधी सुधार। यात्री सुरक्षा हेतु अगले 5 वर्षों की अवधि में 1 लाख करोड़ रूपये का राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष बनाया जायेगा, जिसके पोषण हेतु सरकार से प्राप्त मूल पूँजी (सीड कैपिटल), रेलवे के अपने संसाधन व अन्य स्रोतों से किया जायेगा। रेलवे स्टेशनों का पुनर्विकास, प्रत्येक कोच मे जैव शौचालय, क्लीन माई कोच एप, प्रतिस्पर्धा टिकट बुकिंग सुविधा आदि बुनियादी चीज़ों पर काम करने का फैसला इस बज़ट में लिया गया है।
साथ ही निम्न वर्ग की सहूलियत के लिए इस बार बज़ट में मनरेगा योजना के तहत लक्षित पांच लाख तालाबों के विपरीत मार्च 2017 तक 10 लाख तालाबों का निर्माण पूरा करने की उम्मीद जताई गयी है, जिससे सूखा प्रभावित क्षेत्रो को राहत मिलेगीं और छोटे किसानो को आमदनी का एक जरिया बना रहेगा। 2016-17 के आम बज़ट मे मनरेगा हेतु आवंटित राशि 38,500 करोड़ को इस वर्ष बढ़ा कर 48,000 करोड़ कर दिया गया है। वित्त मंत्री ने इस बज़ट में 1,8,233 करोड़ रुपये ग्रामीण, कृषि एवं संबंधित क्षेत्रों को प्रस्तावित किये जो पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 24 फीसदी ज्यादा है।
राजनीतिक दलों के चंदे में शुचिता और पारदर्शिता की बात लम्बे समय से उठ रही थी। इस दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण प्रावधान इस बज़ट में किया गया है। इस प्रावधान के अनुसार राजनैतिक दल एक व्यक्ति से 2000 रुपये से अधिक नक़द चंदा नही ले सकते। राजनैतिक दल दानदाताओं से चैक या अन्य डिज़िटल माध्यम से चंदा प्राप्त कर सकेंगे जिसका निर्धारित समय-सीमा के भीतर आयकर रिटर्न भरना आवश्यक होगा। राजनैतिक दलों द्वारा चंदा लेने में सुविधा के लिए बैंक चुनावी बॉन्ड जारी करेंगे जिसके लिए भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम में संशोधन करने का प्रस्ताव रखा गया है।
कुल मिलाकर इस बज़ट का उद्देश्य चुनावी राज्यों की जनता को लुभाना नही बल्कि देश को प्रगतिशील अर्थव्यवस्थाओं की श्रेणी में एक नया मुकाम दिलाना है, जैसा कि बज़ट में प्रस्तावित प्रावधानों से स्पष्ट है। इस बज़ट में सरकार ने कृषि, शिक्षा, रोजगार, उद्योग जैसे ज़मीनी सुधारों को और गति प्रदान करने की अपनी मंशा को स्पष्ट किया है। भ्रष्टाचार पर रोकथाम एवं महिला सशक्तिकरण के पहलू को मजबूती देने के लिए भी इस बज़ट में कई प्रावधान लाये गए है। इस प्रकार स्पष्ट है कि यह आम बज़ट किसी चुनावी एजेंडे को नहीं, बल्कि ‘सबका साथ सबका विकास’ के मोदी सरकार के एजेंडे को प्रतिबिंबित करने वाला है। इसमें राष्ट्र के दूरगामी हितों और नागरिकों के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करने की रूपरेखा स्पष्ट रूप से दृष्टिगत होती है।
(लेखिका पत्रकारिता की छात्रा हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)