प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए मेक इन इंडिया अभियान का असर दिखना शुरू हो गया है। चीनी उत्पादों के बाजार के समक्ष अक्सर बौने साबित होने वाले भारतीय उत्पादों का लोहा अब दुनिया भी मानने लगी है। हाल ही में यूरोपीय संघ समेत दुनिया के 49 देशों के उत्पादों की गुणवत्ता को लेकर किए गए एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट में भारत को 36 अंक दिए गए है, जबकि पड़ोसी मुल्क चीन को 28 अंको के साथ भारत से सात पायदान नीचे रहकर ही संतोष करना पड़ा है।
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा आरम्भ मेक इन इंडिया अभियान के तहत दुनिया के कई देशों से भारत में विनिर्माण के लिए अनुबंध किए गए हैं। इनमें कुछ देशों ने तो काम भी शुरू कर दिया है। इसके अतिरिक्त कौशल विकास के कार्यक्रमों के जरिये युवा आबादी को कौशलयुक्त बनाने के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं। इन सब कदमों का सम्मिलित प्रभाव ही है कि अब धीरे-धीरे विश्व पटल पर भारतीय उत्पादों का डंका बजने लगा है। उत्पादों की गुणवत्ता सम्बन्धी वैश्विक रिपोर्ट इसी का एक प्रमाण है, जिसमें मेक इन इंडिया के आगे मेड इन चाइना धराशायी होता नज़र आ रहा है।
ये आंकड़े अपने आप में भारतीय उत्पादों की गुणवत्ता जाहिर करने के लिए काफी हैं। वहीं चीनी सामानों की गुणवत्ता के विषय में जो यह आम मान्यता है कि वे बेहद खराब गुणवत्ता के होते हैं, अब इस रिपोर्ट के बाद इस मान्यता को आधिकारिक प्रमाण मिल चुका है। दरअसल चीन सीमित संसाधनों और सीमित उपलब्धता के कारण विनिर्माण में घटिया सामान का इस्तेमाल करता है। मज़दूरी कम होने के कारण उसके उत्पादों की लागत और भी कम हो जाती है। इस तरह वो अपने ख़राब गुणवत्ता के उत्पादों को बेहद सस्ते दामों में अतंर्राष्ट्रीय बाजारों में उतार देता। अब उत्पाद सस्ते तो होते हैं, मगर उनकी गुणवत्ता उस सस्तेपन से भी अधिक कम होती है। लेकिन धीरे-धीरे उपभोक्ता यह समझने लगे हैं कि आखिरकार उनके लिए सही क्या है। तभी तो उक्त रिपोर्ट में दुनिया भर के उपभोक्ताओं द्वारा दिए गए रिव्यू के बाद चीन की पोल दुनिया के सामने खुल चुकी है। इस रिपोर्ट में 43 हजार से ज्यादा उपभोक्ताओं ने हिस्सा लिया ये संख्या काफी है, इस बात को बताने के लिए कि आखिरकार कौन से देश का प्रोडक्ट कितना सही है। इस रिपोर्ट के आने के बाद अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में चीन की साख को धक्का लगा है, जबकि भारत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अपनी छवि को मजबूत करने में कामयाब होता दिख रहा है। दरअसल दुनिया भर के उपभोक्ता इस बात को समझ रहे हैं कि सामान थोड़ा महंगा भले हो, लेकिन टिकाऊ होना चाहिए। इस मामले में भारत के उत्पाद कसौटी पर एकदम खरे उतरते हैं।
भारत को इस मुकाम तक लाने के लिए केंद्र की सत्ता पर लगभग 3 साल पहले कायम हुई मोदी सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा आरम्भ मेक इन इंडिया अभियान के तहत भारत में निवेश और व्यापर की सुगमता को बढ़ाने के लिए कदम उठाए गए हैं, जिसके फलस्वरूप दुनिया के देशों ने भारत में विनिर्माण हेतु प्लांट लगाने में रूचि दिखाई है। दुनिया के कई देशों से भारत में विनिर्माण के लिए अनुबंध किए गए हैं। कई स्तरों पर तो काम भी शुरू कर दिया गया है। रक्षा क्षेत्र के अनेक उपकरणों का निर्माण अब देश में ही किया जाने लगा है। इसके अतिरिक्त कौशल विकास के कार्यक्रमों के जरिये युवा आबादी को कौशलयुक्त बनाने के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं। इन सब कदमों का सम्मिलित प्रभाव ही है कि अब धीरे-धीरे विश्व पटल पर भारतीय उत्पादों का डंका बजने लगा है। उपर्युक्त रिपोर्ट इसी का एक प्रमाण है, जिसमें मेक इन इंडिया के आगे मेड इन चाइना धराशायी होता नज़र आ रहा है।
(लेखिका पेशे से पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)