एक तरफ तो ममता बनर्जी लोकतंत्र की दुहाई देते हुए अभिव्यक्ति की आज़ादी को परम मूल्य बताते नहीं थकतीं, दूसरी ओर वे स्वयं अमित शाह की रैली से इतनी असुरक्षित महसूस करने लगती हैं कि उनके हेलिकोप्टर को उतरने की इजाजत देने में दिक्कत करने लगती हैं। असल में, सच तो यह है कि देश का चेहरा बनने का सपना देख रहीं ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल में भाजपा के बढ़ते प्रभाव से अपनी ज़मीन खिसकती हुई महसूस हो रही है।
बीते सप्ताह देश की राजनीति में कुछ विचित्र प्रकार की घटनाएं सामने आईं। बीते रविवार पश्चिम बंगाल में समूचा विपक्ष एकजुट हुआ और ममता बनर्जी की अगुवाई में जी भरकर सत्ता पक्ष के प्रति विष वमन किया गया। यहां ममता बनर्जी सहित सभी विपक्षियों ने जी भरकर लोकतांत्रिक मूल्यों की दुहाई दी लेकिन आश्चर्य की बात है कि इन्हें स्वयं ही लोकतंत्र का वास्तविक अर्थ व परिभाषा ज्ञात नहीं है। जिन ममता बनर्जी ने मंच से लोकतंत्र को बचाए रखने का हवाला दिया, उन्हीं ने पश्चिम बंगाल में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रैली को लेकर अड़चनें पैदा कीं।
किसी भी दल के नेता को इस देश में कहीं भी सभा करने की स्वतंत्रता है, बावजूद क्या कारण था कि भाजपा अध्यक्ष की झाड़ग्राम में होने वाली रैली के लिए हेलीकॉप्टर उतारने की अनुमति को लेकर फिजूल में मुद्दा बनाया गया। यह सब उस दौरान हुआ जब शाह स्वयं स्वाइन फ्लू से जूझ रहे थे और लगातार रैलियों के बीच वे तीन दिन एम्स में भर्ती भी हुए थे। अपनी अस्वस्थता को दरकिनार करते हुए जब शाह झाड़ग्राम में गणतंत्र बचाओ विषय पर रैली करना चाहते थे तो पश्चिम बंगाल की सरकार ने उनके हेलीकॉप्टर को उतारने की अनुमति देना मुनासिब नहीं समझा।
एक तरफ तो ममता बनर्जी लोकतंत्र की दुहाई देते हुए अभिव्यक्ति की आज़ादी को परम मूल्य बताते नहीं थकतीं, दूसरी ओर वे स्वयं अमित शाह की रैली से इतनी असुरक्षित महसूस करने लगती हैं कि उनके हेलिकोप्टर को उतरने की इजाजत देने में दिक्कत करने लगती हैं। लोकतंत्र का वास्तविक अर्थ मालदा के एक होटल ने अपने हैलीपेड का प्रयोग करने की अनुमति देते हुए बताया। होटल के एमडी दिलीप अग्रवाल ने स्वयं इसकी पुष्टि की थी और हैलीपेड की मरम्मत का काम भी शुरू करवा दिया था।
मालदा में शाह के साथ यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के भी आने का कार्यक्रम था। मालदा में हेलीकॉप्टर की लैंडिंग की अनुमति को लेकर भाजपा नेताओं ने बकायदा स्थानीय प्रशासन से पत्र-व्यवहार भी किया लेकिन प्रशासन ने गोलमोल जवाब देते हुए अनुमति देने में असमर्थता प्रकट की। निश्चित ही यह किसी दल के अध्यक्ष के लिए मान-हनन की स्थिति है। जब इस बात का विरोध बढ़ा तो ममता बनर्जी ने अपना बचाव करते देख पूरे मामले को सुरक्षा और मरम्मत संबंधी मसलों से जोड़कर अपना पल्ला झाड़ लिया लेकिन क्या यह तर्क पर्याप्त और विश्वसनीय है?
जब कलकत्ता में विपक्ष के सारे नेता जमा हुए थे तब उनके लिए परिवहन इतना सहज, सुगम कैसे हो गया? क्या उस समय सुरक्षा या मरम्मत के कारण उपस्थित नहीं हुए? अमित शाह की मौजूदगी से भला ऐसा भी क्या भय और ऐसी भी क्या असुरक्षा व्याप्त हो गई कि उनके हेलीकॉप्टर को लैंड करने की अनुमति देने में परेशानी खड़ी की जाने लगी। असल में, सच तो यह है कि देश का चेहरा बनने का सपना देख रहीं ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल में भाजपा के बढ़ते प्रभाव से अपनी ज़मीन खिसकती हुई महसूस हो रही है।
इस बात को ऐसे भी कहा जा सकता है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा का वर्चस्व, वोट प्रतिशत पहले से बढ़ा है और इसी के चलते ममता को अब अपनी विदाई का भय सता रहा है। 2014 लोकसभा चुनाव के आंकड़ों को देखें तो भाजपा को 17.02 फीसदी वोट मिले थे और 2 सीटें भी मिली थीं।
बीजेपी वोट प्रतिशत के मामले में तीसरे नंबर की पार्टी बनी थी, इसके बाद विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी के वोट प्रतिशत में काफी बढ़ोतरी हुई थी। ममता का भाजपा के प्रति रवैया जगजाहिर रहा है, जिसे वे समय-समय पर अपने वक्तव्यों और कृत्यों से प्रकट करती रही हैं । ये समस्या किसी विपक्षी दल की तरह स्वस्थ राजनीति के तहत नहीं, बल्कि किसी निजी वैर और विद्वेष की भांति सामने आती रही है।
पश्चिम बंगाल में ममता ने दुर्गा पूजा, दशहरा आदि पर्वों के आयोजन में भी बीते समय में बाधाएं खड़ी कीं। वहां वे अपना हिंदू विरोधी एजेंडा चला रही हैं और इसके चलते देश को, प्रांत को बांटने की, नफरत की राजनीति कर रही हैं। गत 23 जनवरी को नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 122वीं जन्मतिथि पर नई दिल्ली में लाल किले में हुए आयोजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरी आस्था के साथ मौजूद थे, लेकिन ममता नदारद थीं। इतना ही नहीं, उन्होंने बंगाल में बैठकर ही इस अहम दिन पर भी विष वमन किया।
उचित तो उनका स्वयं दिल्ली आकर कार्यक्रम में शामिल होना था, लेकिन वे इस दिन पर अवकाश घोषित किए जाने की अप्रासंगिक मांग का राग अलापती रहीं। बहरहाल, तमाम अवरोधों के बीच अमित शाह आखिर पश्चिम बंगाल की सभा में बोले और जमकर गरजे। उनकी सभा में उमड़ी बेतहाशा भीड़ से आभास भी हो गया है कि अब बंगाल का वोटर किस ओर रूख करने जा रहा है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)