जिस तृणमूल सरकार ने कोरोनाकाल में डॉक्टरों को रेनकोट पहन कर इलाज करने पर मजबूर किया हो, एक भ्रष्ट अधिकारी के लिए धरना दिया हो, जय श्रीराम बोलने पर लोगों को जेल में डाल देने जैसा काम किया हो, सरस्वती पूजा पर रोक लगाई हो, उससे सर्वधर्म समभाव की दृष्टि के साथ जनता के कल्याण के लिए काम करने की उम्मीद करना बेमानी ही है। जनता यह सब देख रही है और चुनाव में इसका हिसाब जरूर करेगी।
ममता बनर्जी सरकार के राज में पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा आम होती जा रही है। आए दिन भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमले हो रहे हैं। ऐसा लगता है कि ममता बनर्जी ने हिंसा को ही अपनी राजनीति का मुख्य उपकरण बना लिया है।
बीते 7 सितंबर को ही पश्चिम बंगाल के कालना में भाजपा कार्यकर्ता रॉबिन पॉल को टीएमसी के गुंडों ने हमला कर मार डाला। ये हिंसा की राजनीति का चरम है। इससे पहले स्वतंत्रता दिवस पर हुगली जिले के खानकुल इलाके में झंडा फहराने के दौरान भारतीय जनता पार्टी के सुदर्शन प्रमाणिक को बुरी तरह पीटा गया, जिससे बाद उसकी मौत हो गई थी।
ये महज कुछ केस भर हैं। आए दिन भाजपा कार्यकर्ताओं की नृशंस रूप से हत्या कर उनके शवों को पेड़ों पर लटका दिया जाता है और कागज के टुकड़े पर लिखा मिलता है ‘‘भाजपा के लिए काम करने पर यही हश्र होता है।’’ हाल ही में भाजपा के विधायक देबेंद्र नाथ राय भी संदिग्ध हालत में मृत मिले थे, जिसे तृणमूल कांग्रेस ने राजनीति से प्रेरित बता दिया था।
अब प्रश्न ये है कि आए दिन भाजपा शासित प्रदेशों को तथाकथित निष्पक्ष मीडिया द्वारा ‘जंगलराज’ की संज्ञा दे दी जाती है, लेकिन बंगाल पर उन्हें एक खबर तक चलाने में तकलीफ होती है क्योंकि उनके ‘सेकुलरिज्म’ की परिभाषा में ये फिट नहीं बैठता है। बंगाल से जुड़े मामलों पर कभी संयुक्त राष्ट्र को टैग करके ट्वीट नहीं किए जाते!
आज टीएमसी ने पश्चिम बंगाल को विपक्षी पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं की हत्या के मैदान में बदल दिया है। रोज दिन के उजाले में वहां लोकतंत्र नष्ट किया जा रहा है। नेताजी के सोनार बांग्ला के सपने को अलोकतांत्रिक ममता बनर्जी नष्ट करने पर तुली हुई हैं।
मुस्लिम तुष्टिकरण में भी ममता बनर्जी सबसे अव्वल हैं। चाहे मदरसों के बजट में निरंतर बढ़ोतरी करना हो या बांग्लादेश से घुसपैठ को शह देना हो, इनमें ममता एकदम आगे हैं। ये वही ममता बनर्जी हैं जो घुसपैठियों का मामला उठाते हुए वामपंथी सरकारों का विरोध करती थीं। लेकिन अब यही उनका वोटबैंक बन गया है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिम बंगाल में अवैध रूप से रहने वाले बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या एक करोड़ से अधिक हो चुकी है। अवैध घुसपैठ ने राज्य की जनसंख्या का समीकरण बदल दिया है। बांग्लादेश के रास्ते पहले इन्हें पश्चिम बंगाल में प्रवेश दिलाया जाता है, फिर उनका राशन कार्ड, आधार कार्ड, वोटर कार्ड बनवा दिया जाता है।
अमेरिकी पत्रकार जेनेट लेवी ने अपने लेख ‘‘The Muslim Takeover of West Bengal’’ में आशंका व्यक्त की है कि यदि यही स्थिति रही तो पश्चिम बंगाल जल्द ही एक इस्लामिक राज्य बन जाएगा। उन्होंने तथ्यों के साथ दावा किया है कि स्वतंत्रता के समय पूर्वी बंगाल में हिंदुओं की आबादी 30 प्रतिशत थी, लेकिन अब यह घटकर महज 8 प्रतिशत रह गई है, जबकि पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की आबादी में 27 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हो चुकी है। इतना ही नहीं, कई जिलों में तो यह आबादी 63 प्रतिशत तक हो चुकी है।
उन्होंने दावा किया है कि ममता सरकार ने सऊदी अरब से फंड पाने वाले 10 हजार से अधिक मदरसों को मान्यता देकर वहां की डिग्री को सरकारी नौकरी के काबिल बना दिया है। पूरे बंगाल में मुस्लिम मेडिकल, टेक्निकल और नर्सिंग स्कूल खोले जा रहे हैं। इसके अलावा कई ऐसे अस्पताल बनाए जा रहे हैं, जिनमें सिर्फ मुसलमानों का इलाज होगा।
मुसलमान नौजवानों को मुफ्त साइकिल से लेकर लैपटॉप तक बांटने की स्कीमें चल रही हैं, साथ ही इस बात का पूरा ख्याल भी रखा जाता है कि लैपटॉप केवल मुस्लिम लड़कों को ही मिले, लड़कियों को नहीं।
ऐसी भी सूचनाएं आती रही हैं कि पश्चिम बंगाल के मालदा, मुर्शिदाबाद और उत्तरी दिनाजपुर जिलों में मुसलमान हिंदुओं की दुकानों से सामान तक नहीं खरीदते, उन्हें बायकाट किया जाता है। यही वजह है कि वहां से बड़ी संख्या में हिंदुओं का पलायन होना शुरू हो चुका है।
ममता बनर्जी की ये तुष्टिकरण की राजनीति नयी नहीं है। तुष्टिकरण के लिए तो वो आतंकवाद समर्थक को संसद में तक भेज चुकी हैं। जून 2014 में ममता बनर्जी ने अहमद हसन इमरान नाम के एक कुख्यात जिहादी को अपनी पार्टी के टिकट पर राज्यसभा सांसद बनाकर भेजा था। हसन इमरान प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिमी का सह-संस्थापक रहा है।
बहरहाल, ये ममता बनर्जी के राज में वर्तमान में चलने वाला बंगाल है, जहां का यही सेकुलरिज्म है और इसपर कोई बुद्धिजीवी और मीडिया का धड़ा चू तक नहीं करता। क्योंकि इनके लिए सेकुलरिज्म सिर्फ भाजपा शासित राज्यों में खतरे में होता है। जबकि ये सर्वविदित है कि अनेक भाजपा शासित राज्य विकास के कार्यों में बंगाल से कहीं बेहतर हैं।
बहरहाल, जिस तृणमूल सरकार ने कोरोनाकाल में डॉक्टरों को रेनकोट पहन कर इलाज करने पर मजबूर किया हो, एक भ्रष्ट अधिकारी के लिए धरना दिया हो, जय श्रीराम बोलने पर लोगों को जेल में डाल देने जैसा काम किया हो, सरस्वती पूजा पर रोक लगाई हो, उससे सर्वधर्म समभाव की दृष्टि के साथ जनता के कल्याण के लिए काम करने की उम्मीद करना बेमानी ही है। जनता यह सब देख रही है और चुनाव में इसका हिसाब जरूर करेगी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)