वास्तव में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीती में ममता इस कदर डूबी हुई हैं कि उनको कुछ और नज़र ही नही आ रहा है। मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य के प्रति ऐसा लापरवाह रवैया उन्हें शोभा नहीं देता। ममता एक सशक्त नेत्री के रूप में जानी जाती थीं, मगर 2014 के बाद से ही उनके रवैये में जो बड़ा बदलाव आया है, उसने उनके सत्ता-मोह को सबके सामने लाकर रख दिया है।
बंगाल इन दिनों दो तरफा समस्याओं से घिरा हुआ है। एक तरफ गोरखा आन्दोलन में दार्जीलिंग डूबा हुआ है, तो वहीं दूसरी ओर उत्तरी परगना जिले के बादुरिया और बाशीरहाट सांप्रदायिक तनाव से जूझ रहे हैं। इन सबमें सबसे ज्यादा सवालों के घेरे में है ममता सरकार, जो इन उत्पातों को रोककर शांति कायम करने में विफल नज़र आ रही है। बंगाल में पहली बार ऐसा तनाव देखने को नही मिल रहा, बल्कि हाल के वर्षों में बंगाल में इस किस्म का सांप्रदायिक तनाव और हिंसा होना एक तरह से आम हो गया है।
बीते साल की शुरुआत में हुए मालदा से लेकर वर्ष के आखिर में हुए धूलागढ़ तक राज्य में कई दफे सांप्रदायिक उन्माद के मामले सामने आए हैं। अब ये बादुरिया का मामला हमारे सामने हैं। फिर भी सूबे की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अगर इस परिस्थिति से निपट नहीं पा रहीं, तो इसका यही सीधा मतलब निकलता है कि या तो ये हालात उनके लिए कोई मायने नही रखते या फिर वे जानबूझकर समस्या को बनाए रखना चाहती हैं। कारण जो भी हो, मगर ममता की अनदेखी के फलस्वरूप देश की प्राचीन सभ्यता, संस्कृति और सौन्दर्य से परिपूर्ण राज्य बंगाल दंगों का प्रदेश बनने की ओर बढ़ता जा रहा है।
पहले तो ममता ने राज्यपाल पर अपनी बौखलाहट निकाली, फिर केंद्र द्वारा भेजी गयी फ़ोर्स की सहायता लेने से इनकार कर दिया। सवाल उठता है कि उन्होंने सहायता लेने से इनकार क्यों किया? न्यायिक जांच के आदेश उसी वक़्त क्यों नही दिए गये? वे काफी समय तक मौन क्यों धारण किए रहीं? मगर ममता बनर्जी इन सवालों के जवाब कहाँ तक देतीं, वे तो उलटे केंद्र पर ही आरोप लगाने लगी हैं। उनका कहना है कि बॉर्डर अचानक खोल दिए गये और सम्बंधित घटनाएं सीमा पार से आयोजित हुई हैं जो कि केंद्र के हाथ में है। हालांकि केन्द्रीय गृहमंत्रालय ने ममता की इन दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया है।
इस पूरे मामले पर गौर करें तो उत्तरी परगना २४ के बशीरहाट के बादुरिया में एक युवक द्वारा मुस्लिम समुदाय के उपासना प्रतीक को लेकर की गयी एक आपत्तिजनक फेसबुक पोस्ट मात्र से हिंसा भड़क गयी। इस स्थिति से आसानी से निपटा जा सकता था, मगर इसे अनदेखा किया गया। मुस्लिम समुदाय के दो हजार लोग संगठित होकर सड़क पर उतर गए और उत्पात फैलाने लगे, जबकि ममता सरकार के पुलिस-प्रशासन को इसकी कोई खबर नहीं लगी।
हैरानी की बात ये भी है कि अपनी वोट बैंक की राजनीती चमकाने के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जो अपने राज्य को संवेदनशील बताती हैं, ने कोई कड़े कदम नही उठाये। उलटे राज्यपाल के चिंता जताने पर उन्होंने इसका तमाशा बना दिया और विक्टिम कार्ड खेलते हुए छिछले स्तर की राजनीती करने लगीं।
इससे पहले मालदा, पूर्णिया, खड़गपुर में भी इस तरह की घटनाएं हो चुकी है। बंगाल को लेकर मीडिया और अन्य राजनैतिक दलों में भी चुप्पी पसरी हुई है। यह भी सोचने वाली बात है कि जो लोग गौ-रक्षा का मुद्दा बनाकर नॉट इन माय नेम जैसे आन्दोलन दिल्ली में खड़े करते है, वे बंगाल के इस प्रकरण पर चुप्पी क्यों साधे हैं? समझा जा सकता है कि विपक्षी दलों समेत ये तमाम लोग अपनी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष छवि को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से इस मामले के समुदाय विशेष के दोषियों को लेकर सन्नाटा मारे हुए हैं। लेकिन, इनका ये रुख इनकी फर्जी धर्मनिरपेक्षता की कलई भी खोल रहा है।
गौर इस बात पर भी किया जाना चाहिए कि भाजपा के तीन सांसदों को घटनास्थल पर जाने से भी अकारण ही रोका गया, जबकि कल जंतर-मंतर पर हुए भाजपा के कार्यकर्ताओं के धरने के बाद ही ममता ने इस मामले में न्यायिक जांच के आदेश दिए। यानी भाजपा ही इस हिंसा को लेकर आवाज उठा रही, बाकी दल इसपर खामोश हैं।
यहाँ सवाल उठता है कि बंगाल में अगर महज एक फेसबुक पोस्ट से इतनी हिंसा फ़ैल सकती है और ममता सरकार उसके आगे बेबस हो जाती है, तो वो अन्य जटिल समस्याओं से कैसे जूझेगी? अक्सर केंद्र के मंत्रियों आदि का इस्तीफा मांगते रहने वाली ममता बनर्जी क्या इस स्थिति का नैतिक दायित्व लेते हुए अपने इस्तीफे की बात भी कर सकती हैं?
वास्तव में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीती में ममता इस कदर डूबी हुई हैं कि उनको कुछ और नज़र ही नही आ रहा है। मुख्यमंत्री के तौर पर यह व्यवहार उन्हें शोभा नही देता। ममता एक सशक्त नेत्री के रूप में जानी जाती थीं, मगर 2014 के बाद से ही उनके रवैये में जो बड़ा बदलाव आया है, उसने उनके सत्ता-मोह को सबके सामने लाकर रख दिया है।
बहरहाल इन सब के दरम्यान सबसे ज्यादा पिस रही है बंगाल की जनता, उनमें भी ज्यादातर हिन्दू जिनकी दुकाने जलाई जा रही हैं और उनपर जान का खतरा बना हुआ है। ममता बनर्जी को जल्द से जल्द स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए प्रयास करने चाहिए और कड़े कदम उठाने चाहिए। अपने संकीर्ण राजनीतिक हितों की बजाय राज्य की क़ानून व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए।
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)