ममता बनर्जी को देखना चाहिये कि किस तरह योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश को संभालने में प्रशासनिक कुशलता दिखाई। परिश्रम की पराकाष्ठा की और खुद को झोंक दिया। परिणामतः आज यूपी के हालात अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर हैं और यहां रिकवरी रेट भी सुधरा है। यदि ममता को भाजपा सरकार से दुर्भावना ही रखनी है, तो इसके लिए बहुत वक्त पड़ा है, लेकिन फिलहाल आपदा की स्थिति है, सो उन्हें अपनी घृणा की राजनीति छोड़कर जनहित की ओर ध्यान देना चाहिये।
कोरोना संकट के इस दौर में ममता बनर्जी की सरकार वाले पश्चिम बंगाल में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। केंद्र सरकार से ममता के राजनीतिक मतभेद हो सकते हैं, लेकिन इसका यह अर्थ कतई नहीं हो जाता कि उन मतभेदों का खामियाजा निरीह जनता को भुगतना पड़े। मगर ममता के राज में यही होता आ रहा है।
मोदी के अंधविरोध के कारण वे लगातार केंद्र की योजनाओं व नीतियों को राज्य में लागू होने से रोकती रही हैं जिसका नुकसान राज्य की जनता को होता है। कोरोना काल में भी ममता का रुख कमोबेश ऐसा ही बना हुआ है।
यह तथ्य उल्लेख करने योग्य है कि कोरोना के मसले पर ममता का रुख शुरू से उदासीन रहा है। सवाल है कि ममता बनर्जी को यह बात समझने में क्या अड़चन रही होगी कि कोरोना वायरस एक संक्रामक रोग है जो सभी के लिए समान रूप से खतरनाक है।
आज बंगाल में जो दृश्य देखने को मिल रहे हैं, वे एकदम से नहीं बन गए। वे एक लंबी लापरवाही, उदासीनता, अगंभीरता और अड़ियलपन के चलते उपजे हैं। कोलकाता से हाल ही में दिल दहला देने वाले वीडियो एवं फोटो सामने आए। इसमें देखा गया कि कुछ शवों को एक वाहन में डाला जा रहा था।
इस दौरान एक शख्स इन शवों को किसी हुक से घसीटता हुआ दिखाई दे रहा था। इसी सप्ताह जब यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया तो लोगों का आक्रोश भड़क उठा। बताया गया कि कोलकाता नगर निगम के कर्मचारी कोरोना मृतकों के शवों को अमानवीय ढंग से घसीट रहे थे।
यह घटना संज्ञान में आने के बाद बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने गहरा दुख प्रकट किया और इसे मानवता के लिए एक दर्दनाक एवं क्षुब्ध कर देने वाली घटना बताया। कोलकाता पुलिस ने बताया कि ये शव कोरोना मरीजों के नहीं थे, लेकिन यदि ऐसा है तब तो यह स्थिति और भी गंभीर व अमानवीय हो जाती है।
क्या उन्हें या देश के किसी भी अन्य विपक्षी दल को यह साफ नज़र नहीं आता कि लाशों को हुक से घसीटने के कई अर्थ हो सकते हैं। या तो लाशों की संख्या बहुत ज्यादा है, या संक्रमण का स्तर अत्यधिक बढ़ चुका है या फिर प्रशासन एवं सरकारी मशीनरी में संवेदना का स्तर पूरी तरह से खत्म हो चुका है जो शवों के साथ ऐसा दुर्व्यवहार किया जा रहा है।
मीडिया में यह सवाल व संदेह कई बार उठाया जा चुका है कि ममता सरकार केंद्र से बंगाल में कोरोना संक्रमण एवं मृत्यु दर के आंकड़े छुपा रही है। मीडिया का यह संदेह सच भी हो सकता है। ममता का रवैया आरंभ से ही असहयोगी रहा है।
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से मीटिंग कर रहे थे तब ममता अपने मोबाइल में व्यस्त थीं। वे पहले कह चुकी हैं कि वे नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री नहीं मानतीं। लेकिन जब बंगाल में चक्रवाती तूफान अम्फान का खतरा मंडराया तो स्वयं पीएम मोदी ने आगे रहकर बड़प्पन दिखाते हुए ममता सरकार की मदद की। तब ममता बनर्जी ने केंद्र के सहयोगी रवैये पर तो चुप्पी साधी ही, बाद में बंगाल की बदहाली को संभालने की दिशा में स्वयं कोई पहल नहीं की।
ममता बनर्जी की इसी उदासीनता एवं लापरवाही के चलते पिछले दिनों कोलकाता हाई कोर्ट ने कोरोना मृतकों के अंतिम संस्कार को लेकर बंगाल सरकार से रिपोर्ट तलब की। कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद बंगाल सरकार की नींद खुली और सरकार ने अधिसूचना जारी करके मृतकों के परिजनों को शवों के अंतिम दर्शन की मंजूरी दी।
कोर्ट के आदेश से पहले राज्य में मृतक के रिश्तेदारों को उसके अंतिम दर्शन करने की अनुमति नहीं थी। यह मामला भी कोर्ट तक इसलिए गया था क्योंकि प्रदेश में कोरोना मृतकों का अंतिम संस्कार सम्मान से नहीं हो रहा था। कोर्ट द्वारा रिपोर्ट तलब किए जाने के बाद बंगाल सरकार ने न्यायालय में रिपोर्ट दाखिल की थी।
इसके बाद कोर्ट ने नई व्यवस्था बनाए जाने को कहा। सवाल यह उठता है कि ये हालात बंगाल में ही क्यों बन रहे हैं। क्या ममता बनर्जी अन्य राज्यों से प्रेरणा लेकर बंगाल को संभालेंगी या प्रदेश की लाखों जनता को उसके हाल पर छोड़ देंगी। यदि उन्हें वास्तव में कोरोना से लड़ना है तो उन्हें उत्तर प्रदेश मॉडल का अध्ययन करना चाहिये, सीखना चाहिये और अमल करना चाहिये।
उन्हें यह देखना चाहिये कि किस तरह योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश को संभालने में प्रशासनिक कुशलता दिखाई। परिश्रम की पराकाष्ठा की और खुद को झोंक दिया। आज यूपी के हालात अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर हैं और यहां रिकवरी रेट भी सुधरा है। यदि ममता को भाजपा सरकार से दुर्भावना ही रखनी है तो इसके लिए बहुत वक्त पड़ा है, लेकिन फिलहाल आपदा की स्थिति है, सो उन्हें अपनी घृणा की राजनीति छोड़कर जनहित की ओर ध्यान देना चाहिये। लेकिन वे इस मोर्चे पर बुरी तरफ विफल साबित हुईं हैं।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)