भाजपा इस समय निर्विवाद रूप से देश की सर्वाधिक लोकप्रिय पार्टी है। इसका स्पष्ट प्रमाण लगातार चुनावों में हो रही उसकी बम्पर जीत से मिलता है। ऐसे में उसके प्रति ‘भारत छोड़ो’ जैसे अतार्किक आन्दोलन का लोगों में कोई अच्छा सन्देश नहीं जाएगा। संभव है कि नोटबंदी का अनर्गल विरोध करने के बाद विपक्षी दलों की जो फजीहत हुई थी, इस आन्दोलन का भी वैसा ही कुछ परिणाम सामने आए। सीधे शब्दों में कहें तो इस आन्दोलन के जरिये राष्ट्रीय नेता बनने की जल्दबाजी में ममता अपना नुकसान करने की ओर बढ़ रही हैं।
2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भाजपा के प्रति विरोध लगातार बढ़ता जा रहा है। विशेष रूप से गत वर्ष हुई नवम्बर में हुई नोटबंदी के बाद से तो उनका भाजपा विरोध घृणा के स्तर तक पहुँचता नज़र आ रहा है। भाजपा के प्रति वे अपने विरोध को जिस-तिस प्रकार से जाहिर करती रहती हैं। अब उन्होंने घोषणा की है कि आगामी 9 अगस्त से वे ‘बीजेपी भारत छोड़ो’ नामक आन्दोलन करने जा रही हैं। इस आंदोलन की ज़रूरत उनको इसलिए लग रही क्योंकि उनके हिसाब से फिलहाल देश में आपातकाल से भी बुरे हालात हैं।
समझा जा सकता है कि ममता बनर्जी भाजपा के प्रति अंधविरोध की मानसिकता में किस कदर डूब चुकी हैं। ये अंधविरोध की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है कि जो सरकार दुनिया की सबसे विश्वसनीय सरकार है (फ़ोर्ब्स रिपोर्ट के अनुसार), उसके शासन की तुलना ममता बनर्जी आपातकाल से कर रही हैं। संभवतः उन्हें आपातकाल का अनुभव नहीं रहा या उन्होंने उसका इतिहास ढंग से नहीं पढ़ा, वर्ना ऐसा बचकाना बयान नहीं देतीं। ममता बनर्जी ने यह भी कहा है कि अरविन्द केजरीवाल, सोनिया गांधी, लालू आदि जितने भी लोग भाजपा के खिलाफ होंगे, वे उन सबके साथ खड़ी होंगी।
‘बीजेपी भारत छोड़ो’ आन्दोलन के नामपर विपक्ष को एकत्रित करके स्वयं को विपक्षी मोर्चे की राष्ट्रीय नेता के रूप में प्रस्तुत करने की जिस मंशा के तहत ममता बनर्जी यह सब कर रही हैं, वो मंशा इस तरीके से पूरी होने की कोई संभावना नहीं है। उल्टे ममता का यह दाँव उनपर भारी ही पड़ सकता है। भाजपा इस समय निर्विवाद रूप से देश की सर्वाधिक लोकप्रिय पार्टी है। इसका स्पष्ट प्रमाण लगातार चुनावों में हो रही उसकी बम्पर जीत से मिलता है। ऐसे में उसके प्रति ‘भारत छोड़ो’ जैसे अतार्किक आन्दोलन का लोगों में कोई अच्छ सन्देश नहीं जाएगा, बल्कि इससे लोगों में विपक्षी खेमे के प्रति नकारात्मक भावना और बढ़ेगी।
संभव है कि नोटबंदी का अनर्गल विरोध करने के बाद विपक्षी दलों की जो फजीहत हुई थी, इस आन्दोलन का भी वैसा ही कुछ परिणाम सामने आए। सीधे शब्दों में कहें तो इस आन्दोलन के जरिये राष्ट्रीय नेता बनने की जल्दबाजी में ममता अपना नुकसान करने की ओर बढ़ रही हैं। ये अंधविरोध उनकी ही राजनीति को चौपट ही करेगा।
ममता बनर्जी को समझना होगा कि राष्ट्रीय नेता ऐसे अर्थहीन आंदोलनों से नहीं बना जाता, उसके लिए मिले प्राप्त अवसर के अनुसार बेहतर प्रदर्शन करके लोगों का विश्वास जीतना पड़ता है। जबकि फिलहाल स्थिति ये है कि बंगाल में ममता के शासन का स्तर बेहद ख़राब है। क़ानून-व्यवस्था जैसी कोई चीज राज्य में दूर-दूर तक नज़र नहीं आती।
अतः ममता बनर्जी को चाहिए कि वे केंद्र सरकार पर अनावश्यक दोषारोपण और भाजपा के अंधविरोध की बजाय अपने शासनाधीन बंगाल की क़ानून व्यवस्था को दुरुस्त करें। देश इस बात को अच्छी तरह से देख और समझ रहा है कि कैसे ममता बनर्जी की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति में फँसकर बंगाल सांप्रदायिक हिंसा का गढ़ बनता जा रहा है। ये स्थिति ममता बनर्जी के लिए कत्तई अच्छी नहीं है। उचित होगा कि वे इस बात को समझें और देश की राजनीति में दिमाग खपाने की बजाय बंगाल पर ध्यान दें।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)