ममता बनर्जी ने जिस हिंसा की राजनीति से बंगाल का अपना किला बनाया था, अब उसमें लोकतंत्र की सेंधमारी हो गई है। वह किला अब दरक रहा है और इससे ममता का गुस्सा दिनोदिन भड़कने लगा है। असल में, लोकसभा चुनाव से पहले ही ममता को आभास हो गया था कि अब यहां की जनता बदलाव चाहती है, इसलिए उन्होंने अपनी मनमानी और गुंडागर्दी भरी राजनीति में इजाफा कर दिया। ममता को लग रहा था कि वह हिंसा के दम पर अपना वर्चस्व कायम रख सकेंगी, लेकिन जब चुनाव के नतीजे सामने आए तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई।
इन दिनों पश्चिम बंगाल देश की राजनीति में सुर्खियों का केंद्र बना हुआ है। इसके मूल में हैं यहां की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और लोकसभा में जमीन खिसकने के बाद बढ़ चुकी उनकी बौखलाहट। उन्होंने जिस नफरत और हिंसा की राजनीति से बंगाल का अपना किला बनाया था, अब उसमें लोकतंत्र की सेंधमारी हो गई है। वह किला अब दरक रहा है और इससे ममता का गुस्सा दिनोदिन भड़कने लगा है। असल में, लोकसभा चुनाव से पहले ही ममता को आभास हो गया था कि अब यहां की जनता बदलाव चाहती है, इसलिए उन्होंने अपनी मनमानी और गुंडागर्दी भरी राजनीति में इजाफा कर दिया।
अमित शाह, योगी आदित्यनाथ जैसे भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के बंगाल में रैली करने पर ममता को इतनी तकलीफ होने लगी कि उनके हेलीकॉप्टर तक नहीं उतरने दिए, ना सभाओं की अनुमति दी। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान तो ममता की बौखलाहट चरम पर पहुंच गई और अमित शाह के रोड शो पर टीएमसी के गुंडों ने पथराव ही कर दिया।
यह सब हरकतें करके ममता को लग रहा था कि वह हिंसा के दम पर अपना वर्चस्व कायम रख सकेंगी, लेकिन जब चुनाव के नतीजे सामने आए तो ममता के पैरों तले जमीन खिसक गई। उन्हें साफ दिखाई पड़ गया कि अब बंगाल में भाजपा की घुसपैठ तगड़ी हो चुकी है। शर्मिंदगी से बचने के लिए ममता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ-ग्रहण कार्यक्रम में शामिल होने की हामी भरी लेकिन अगले ही दिन फिर यू-टर्न ले लिया और जाने से इंकार कर दिया।
पश्चिम बंगाल में तृणमूल सरकार को लगातार झटके लग रहे हैं। लोकसभा में बड़ी जीत के बाद अब निकाय स्तर पर भाजपा ने कुछ ऐसा कर दिखाया है जो वहां पहले आज तक कभी नहीं हुआ था। बंगाल की भाटपाड़ा नगर पालिका पर भाजपा काबिज हो गई है। यह भाजपा के कब्जे वाली बंगाल में पहली नगर पालिका है।
यहां पिछले सप्ताह अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। बोर्ड में 34 पार्षद हैं, जिनमें से 26 ने भाजपा को समर्थन दे दिया। सौरभ सिंह को कमान मिली और वे पालिका के नए अध्यक्ष निर्वाचित हुए। भाजपा की सफलता ही कारण है कि हाल के दिनों में तमाम टीएमसी नेता भाजपा में शामिल हुए हैं।
बंगाल में भाजपा की इस सफलता का बहुत हद तक श्रेय वहाँ के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय और मुकुल रॉय को जाता है क्योंकि वे तमाम विषम हालातों में वहां डटे रहे और पार्टी का जनाधार मजबूत करने के प्रयासों में जुटे रहे। कहा जा सकता है कि टीएमसी का अभेद किला भेदने में बीजेपी बहुत हद तक कामयाब हो गई है।
यह जरूरी भी है क्योंकि किसी भी पार्टी की ताकत उसके कार्यकर्ता होते हैं। बीजेपी में भी अराजक तत्व हो सकते हैं लेकिन सड़कों पर उतरकर उपद्रव मचाने का कुसंस्कार भाजपा कभी कार्यकर्ताओं को नहीं देती। ममता ने इस उपद्रव मचाने को शायद मूल्य समझ लिया था, इसलिए कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी को शह देती रहीं और भूल गईं कि जनता के दिल में जगह बनाने के लिए जनता को संरक्षण देना अहम होता है, ना कि सड़क पर उत्पात मचाकर जनजीवन प्रभावित करना।
परिणाम के पहले ममता की जो अनर्गल हरकतें शुरू हुई थीं, वो परिणाम के बाद भी जारी हैं। जय श्रीराम जैसे संबोधन को जबर्दस्ती सांप्रदायिक रंग देने पर तुली ममता का यह दांव भी उल्टा पड़ गया जब जयश्री राम के नारों भरा पोस्टकार्ड अभियान छेड़ा गया। असल में, ममता बहुत बड़े भ्रम में जी रही हैं और इस भ्रम को सच मानकर वह सब पर इसे थोपने का निरर्थक प्रयास कर रही हैं।
ममता को लगता है कि जयश्री राम के नारों पर प्रतिबंध लगा देने से भाजपा के बढ़ते जनाधार पर रोक लग जाएगी। यह उनकी भूल है, क्योंकि जय श्रीराम ना तो राजनीतिक शब्द है ना ही सांप्रदायिक, यह तो इस देश की जड़ों से निकला उद्घोष है जिससे व्यक्ति-व्यक्ति का जुड़ाव है और जिसमें भारतीयता का भाव है।
ममता ने बंगाल में दुर्गा पूजा, दशहरा पर्व के समारोह आदि के लिए बाधाएं खड़ी करती रही हैं और अब सुनने में आ रहा है कि बंगाल में भाजपा के विजय जुलूस पर भी रोक लगा दी गई है। खीझ में ममता जितनी दबाव की राजनीति करेंगी, उतना ही वहां विपरीत प्रभाव सामने आएगा।
दरअसल टीएमसी अब एक डूबता जहाज है, जिसकी सवारी करना खतरे से खाली नहीं रह गया है। जिन कार्यकर्ताओं, नेताओं ने इस खतरे को भांप लिया है, वे दल बदल रहे हैं और दल बदलकर भी सीधे बीजेपी में ही जा रहे हैं, क्योंकि उन्हें पता चल गया है कि बीजेपी ही एकमात्र दल है जो सभी को साथ लेकर चल सकता है। ममता बनर्जी की आदतों, हरकतों, बयानों और आचरण में यदि अभी भी बदलाव नहीं आता है तो इसका पतन सुनिश्चित है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)