केजरीवाल और उनकी साथी ममता बनर्जी सिर्फ दो ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जो विगत दिनों देश के विकास की कार्ययोजना को लेकर हुई नीति आयोग की सञ्चालन परिषद् की बैठक में उपस्थित नही हुए। कहना न होगा कि किसी भी तरह का कुछ रचनात्मक कार्य हो, उसमें केजरीवाल की मौजूदगी नहीं हो सकती; जबकि नकारात्मक राजनीति का एक अवसर भी इनके हाथ से बचकर नहीं जाता।
आम आदमी पार्टी के बड़े नेता मनीष सिसोदिया जो दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री भी हैं, ने हाल ही में एक ऐसे ट्वीट जिसमे अन्ना हजारे को साफ़ तौर पर धोखेबाज कहा गया था, को रिट्वीट कर उसके प्रति अपना समर्थन व्यक्त कर दिया। जब इस ट्वीट के समर्थन को लेकर उनकी निंदा होने लगी तो अपने बचाव में उन्होंने वही तरीका अपनाया जिसका पाठ केजरीवाल ने अपनी पूरी कैबिनेट को बहुत अच्छे ढंग से पढाया है। उन्होंने कहा कि उनका अकाउंट हैक हो गया था। लेकिन, उनके इस दावे पर कई सवाल उठते हैं।
अब सवाल है कि अगर अकाउंट हैक हुआ था, तो उसकी भनक लगते ही उन्होंने इसकी सूचना सार्वजनिक क्यों नहीं कर दी ? और हैक करने वाले ने उनके अकाउंट से सिर्फ एक ट्विट को रिट्वीट करके क्यों छोड़ दिया ? अगर हैकर की मंशा सिसोदिया के द्वारा अन्ना के प्रति आपत्तिजनक बयान दिलवाने की ही थी, तो वो उनके अकाउंट से इस तरह के ट्विट भी कर सकता था, मगर उसने सिर्फ एक रीट्विट करके ही रहने दिया। ये किस तरह का हैकर और हैकिंग है ? स्पष्ट है कि अकाउंट हैकिंग की मनीष सिसोदिया की दलील बेहद कमजोर और फजीहत से बचने की नाकाम कवायद भर लगती है।
दरअसल एमसीडी में आप की हार के बाद अन्ना हजारे ने कहा था कि उन्हें अरविंद केजरीवाल से बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन वो उन पर खरे नहीं उतरे। इस बयान के बाद ही सिसोदिया के इस अन्ना विरोधी रिट्वीट का बवाल भी आया। बहरहाल, अब इस मामले की सच्चाई जो भी हो, मगर इस बात में कोई संदेह नहीं है कि अन्ना हजारे के आन्दोलन की उपज आम आदमी पार्टी ने उस आन्दोलन के सिद्धांतों को पूरी तरह से भुला दिया है।
अन्ना हजारे खुद को गांधी का अनुयायी बताते हैं। गौर करें तो जहाँ महात्मा गाँधी के पुण्य से कांग्रेस ने छः दशक से ऊपर तक देश में शासन किया, वही अन्ना के आन्दोलन के बलबूते केजरीवाल की आम आदमी पार्टी आज सत्ता में है। अगर आम आदमी पार्टी आज देश की एक ऐसी पार्टी है, जिसे बनने के तुरंत बाद ही जनता ने स्वीकृति दी और सत्ता तक पहुँचा दिया, तो यह अन्ना के आन्दोलन का ही प्रभाव था। मगर देखते ही देखते, जिन आदर्शों और मूल्यों की बात करते हुए इस पार्टी की स्थापना हुई थी, सत्ता में आते ही उन मूल्यों को इसने तिलांजलि दे डाली।
पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में नैतिकता की जितनी कमी है, उतनी ही कार्यकर्ताओं में। इन परिस्थितियों में नगर निगम चुनाव के परिणाम आश्चर्यजनक नही थे। केजरीवाल ने बिना सोचे-समझे इल्जाम ईवीएम की गड़बड़ी पर मढ़ दिया। परिणाम घोषित होने से पूर्व एक अखबार को दिए गये साक्षात्कार में उन्होंने स्पष्ट रूप से यह कहा कि 2015 के बाद ईवीएम में छेड़छाड़ की गयी थी। लेकिन, उनसे जब पूछा गया कि क्या उनके पास इसके कोई पुख्ता सुबूत हैं, तो उन्होंने बात बदल दी। पंजाब और गोवा की हार को तो उन्होंने स्पष्ट रूप से ईवीएम की गड़बड़ी का जामा पहना दिया। हालांकि अब जब उन्हें लगा कि ईवीएम पर गड़बड़ी का आरोप लगाने वाला दाँव विफल हो रहा है, तो उन्होंने झट से पलटी मारते हुए यह बयान दे दिया है कि उनसे गलती हो गयी थी, जिसे वे सुधारेंगे और अब वे सबके साथ मिलकर काम करेंगे।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय होगा कि जो केजरीवाल अपनी हर नाकामयाबी का दोष केंद्र पर लगा देते हैं, वो और उनकी साथी ममता बनर्जी सिर्फ दो ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जो विगत दिनों देश के विकास की कार्ययोजना को लेकर हुई नीति आयोग की सञ्चालन परिषद् की बैठक में उपस्थित नही हुए। कहना न होगा कि किसी भी तरह का कुछ रचनात्मक कार्य हो, उसमें केजरीवाल की मौजूदगी नहीं हो सकती; जबकि नकारात्मक राजनीति का एक अवसर भी इनके हाथ से बचकर नहीं जाता।
दरअसल केजरीवाल ने दूसरों पर आरोप लगाकर जनता को बरगलाने का खूब प्रयास किया है। लेकिन, आखिर झूठ भी एक हद तक ही बोला जा सकता है। जनता ये अच्छे से जानती है कि ‘आप’ के नेताओ की जमात में यह आदत शुमार है कि वे बेबुनियादी बातों को तूल देते फिरते हैं। ईवीएम में गड़बड़ी के आरोप से लेकर केंद्र सरकार के काम न करने देने तक के तमाम आरोपों में जनता ने केजरीवाल का निराधार आरोप लगाने का ही रुख देखा है। ऐसे में अगर आज देश के राजनीतिक परिदृश्य को देखें तो कांग्रेस अपनी ज़मीन लगातार खोती जा रही है और आम आदमी पार्टी का हश्र भी सबके सामने है।
हालांकि भाजपा आज एक ऐसी पार्टी के रूप में दिखाई देती है जो लगातार सकारात्मक राजनीति की ओर अग्रसर है। केंद्र में प्रधानमंत्री मोदी समेत राज्यों में भी भाजपा के सभी मुख्यमंत्री कर्मठता, नैतिकता और ईमानदारी से लोककल्याण के लिए कार्य कर रहे हैं, जिससे जनता में भाजपा के प्रति लगातार विश्वास बढ़ रहा है।
राजनीति में परफॉरमेंस का बहुत महत्व होता है। प्रोपोगेंडा की राजनीति के दम पर आप कुछ समय के लिए चर्चित हो सकते हैं, मगर लोकप्रिय नहीं हो सकते। लोकप्रियता के लिए परफॉरमेंस ही करना पड़ता है। भाजपा के सभी नेता अपने-अपने पदों पर ईमानदारी से परफॉरमेंस दे रहे हैं, इसके फलस्वरूप जनता उन्हें लगातार चुन रही। जबकि केजरीवाल की प्रोपोगेंडा की राजनीति की असलियत अब लोगों के सामने खुल चुकी है और इसीलिए मतदाताओं द्वारा उन्हें खारिज किया जा रहा है। इस बात को जितनी जल्दी हो सके केजरीवाल समझ लें, वर्ना उनकी पार्टी का पतन की ओर बढ़ता जाना निश्चित है।
(लेखिका पत्रकारिता की छात्रा हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)