राजनीति में उनका आचरण ही उनके आदर्शों को अभिव्यक्त करने वाला था। अरविंद केजरीवाल की तरह सादगी का वादा नहीं किया। यह नहीं कहा कि वह छोटे वाहन से चलेंगे, यह नहीं कहा कि वह मुख्यमंत्री बनने के बाद सरकारी आवास में नहीं रहेंगे। जब मुख्यमंत्री बने तो बिना ढिंढोरा पीटे यह सहज रूप में कर दिखाया। यह इसलिए संभव हुआ कि उनकी मूल प्रवृत्ति में सादगी और ईमानदारी थी। वह बड़ी सहजता से इस पर अमल करते थे।
मनोहर पर्रिकर ने ज्यों की त्यों धर दीन्ही चदरिया को चरितार्थ किया। सत्ता को काजल की कोठरी कहा जाता है। लेकिन वह आजीवन बेदाग रहे और इसी रूप में वह सदैव देश की स्मृतियों में रहेंगे। उनका जीवन प्रेरणादायक था। जनसेवा के नाम पर परिवारवाद, भ्रष्टाचार,जातिवाद में जकड़े नेताओं को साफ़-सुथरी राजनीति के लिए खासतौर पर उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।
उनका जीवन खुली किताब जैसा रहा। इसमें उनकी ईमानदारी, सादगी, मेहनत, इच्छाशक्ति, कर्तव्यनिष्ठा के अध्याय शामिल हैं। राजनीति उन्हें विरासत में नहीं मिली थी। वह होनहार विद्यार्थी थे। आईआईटी के डिग्री धारक थे। लेकिन उन्होंने समाजसेवा को महत्व दिया। अरविंद केजरीवाल की तरह कभी यह नहीं कहा कि उन्होंने बड़ा त्याग किया है। सत्ता के लिए अपने को इस रूप में महान साबित करने का प्रयास नहीं किया। यह भी नहीं कहा कि वह नई राजनीति शुरू करने के लिए आये हैं।
राजनीति में उनका आचरण ही उनके आदर्शों को अभिव्यक्त करने वाला था। अरविंद केजरीवाल की तरह सादगी का वादा नहीं किया। यह नहीं कहा कि वह छोटे वाहन से चलेंगे, यह नहीं कहा कि वह मुख्यमंत्री बनने के बाद सरकारी आवास में नहीं रहेंगे। जब मुख्यमंत्री बने तो बिना ढिंढोरा पीटे यह सहज रूप में कर दिखाया। यह इसलिए संभव हुआ कि उनकी मूल प्रवृत्ति में सादगी और ईमानदारी थी। वह बड़ी सहजता से इस पर अमल करते थे।
मुख्यमंत्री आवास की जगह वह अपने छोटे से घर में रहते थे। कार की जगह स्कूटर पर चलना उन्हें पसंद था। अक्सर वह गोवा में चाय की दुकान पर लोगों से बात करते हुए चाय पीते थे। साधारण दर्जे में हवाई यात्रा करते थे, जिसके बारे में कांग्रेस के नेता शशि थरूर ने ‘कैटल क्लास’ कहा था।
वह नरेंद्र मोदी की तरह दिन-रात मेहनत करने वाले व्यक्ति थे। अपने बेटे के विवाह में देर रात तक व्यस्त रहने के बाद वह समय से मुख्यमंत्री कार्यालय पहुंच गए थे। जबकि कार्यालय के अधिकारी व कर्मचारी यह मान कर बैठे थे कि मुख्यमंत्री आज अवकाश पर रहेंगे।
एक अन्य किस्सा भी चर्चित है। वह देर रात तक अधिकारियों के साथ सरकारी कार्य करते रहे। दो बज गए। फिर उन्होंने बैठक खत्म की। अधिकारियों को राहत देते हुए कहा कि बहुत देर हो गई। कल आराम से आइयेगा। अधिकारी खुश हुए। एक अधिकारी ने पूछ ही लिया, सर कितने बजे तक आ जाएं। मनोहर जी बोले अभी जाइये आराम करिए, सुबह सात बजे तक आ जाइयेगा। यह उनके कार्य करने का तरीका था।
कैंसर से पीड़ित और कमजोर हो जाने के बाद भी वह अपने दायित्वों का निर्वाह करते रहे। नाक में नली लगी थी, चलने में कठिनाई थी, फिर भी कार्यालय और विधानसभा सत्र में जाते रहे। इतना ही नहीं बीमारी की इस स्थिति में उन्होंने विधानसभा में बजट प्रस्तुत किया था। इसी शारीरिक स्थिति में वह अनेक निर्माण कार्यो का निरीक्षण करने जाते थे।
रक्षामंत्री के रूप में भी उनका कार्यकाल शानदार रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके साथ मिलकर संकल्प लिया था कि भारत को हथियारों का निर्यातक बनाया जाएगा। मनोहर जी ने इस दिशा में कारगर कदम उठाए। अमेरिका सहित अनेक देशों की उनकी यात्रा भी बहुत उपयोगी साबित हुई थी।
नरेंद्र मोदी ने अपने सन्देश में ठीक कहा कि मनोहर पर्रिकर अद्वितीय नेता थे। रक्षामंत्री के रूप में उनकी सेवाओं को पीढ़ियाँ याद करेंगी। राजनीति में उन्होंने कभी परिवारवाद को तरजीह नहीं दी। परिवार के लिए अवैध सम्पत्ति का जखीरा तैयार नहीं किया। बड़ी सुरक्षा का तामझाम भी उन्हें पसंद नहीं था।
आजादी के बाद महात्मा गांधी के नाम पर खूब राजनीति हुई। लेकिन उनके विचारों पर अमल दुर्लभ था। महात्मा गांधी ने समाज व आर्थिक जीवन में ट्रस्ट का सिद्धांत दिया था। मनोहर पर्रिकर ने इस पर अमल करके दिखा दिया। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपने को गोवा का ट्रस्टी बताया था। मतलब वह अपने को मालिक नहीं सच्चे अर्थों में सेवक और चौकीदार समझते थे। यही कारण था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन पर बहुत विश्वास करते थे।
उन्होंने राजनीति में चाल, चरित्र, शुचिता को महत्व दिया। अपने जीवन में इन आदर्शों पर अमल करके दिखा दिया। यह साबित किया कि इच्छाशक्ति के बल पर इस कठिन मार्ग पर प्रसन्नता पूर्वक चला जा सकता है। मनोहर जी कर्मयोगी और महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर अमल करने वाले थे। उनके यही सब गुण प्रेरणा देते रहेंगे।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)