बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने अपने दिल्ली संगठन में एक बड़ा बदलाव करते हुए भोजपुरी फिल्मों के अभिनेता, मशहूर गायक और उत्तरी दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी को पार्टी का प्रदेशाध्यक्ष नियुक्त कर दिया है। मनोज को मौजूदा पार्टी अध्यक्ष सतीश उपाध्याय की जगह यह जिम्मेदारी सौंपी गई है। मनोज तिवारी सिर्फ पूर्वांचल के लोगों में ही लोकप्रिय नहीं हैं, चूंकि वे फिल्मी दुनिया से जुड़े हुए हैं, इसीलिए हर क्षेत्र के युवा वर्ग में कमोबेश उनकी लोकप्रियता है। यह तो हम जानते ही हैं कि अब भी हमारी युवा पीढ़ी पर जिन लोगों का जादू काफी ज्यादा चलता है, वह या तो फिल्मी दुनिया के होते हैं या क्रिकेट जगत के। युवा इन्हीं लोगों में अपने आदर्श की खोज करते हैं। यदि उनके पहनावे व हेयर स्टाइल की नकल होती है तो इसका कारण यही है कि वे युवाओं को लुभाते हैं।
दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने में अभी काफी समय है। इस तरह मनोज तिवारी के पास पर्याप्त मौका है, पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए। अगर वे पूर्वांचल के मतदाताओं को ही भाजपा के पाले में खड़ा करने में कामयाब हो गए तो लग रहा है कि अगले विधानसभा चुनाव के बाद दिल्ली में इसी पार्टी की सत्ता होगी। राज्य में उसका आधार तो है ही। कारण यही है कि नगर निगमों पर भाजपा का ही कब्जा है। मनोज तिवारी में इस आधार को और मजबूत करने की क्षमता है।
मनोज सभी दिल्लीवासियों को लुभा पाते हैं या नहीं, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन पूर्वांचल के मतदाता उनके प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद भाजपा की तरफ आकर्षित होंगे, इसमें कोई संदेह नहीं। इन मतदाताओं की तादाद भी कम नहीं है। दिल्ली में इनकी संख्या 40 फीसदी के आसपास है। जाहिर है, इसी समीकरण को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने मनोज तिवारी को प्रदेशाध्यक्ष का दायित्व दिया है। उनमें तो युवाओं को लुभाने वाले दोनों गुण भी हैं।
गौरतलब है कि 45 वर्षीय मनोज तिवारी बिहार के कैमूर जिले के रहने वाले हैं एवं काशी हिंदू विश्वविद्यालय से उन्होंने उच्च शिक्षा ग्रहण की है। वे इस विश्वविद्यालय की क्रिकेट टीम के कप्तान भी रह चुके हैं। यानी, छोटे से ही सही, वे एक पूर्व क्रिकेटर भी हैं और फिल्मी दुनिया से जुड़े हुए भी। पिछले साल दिल्ली एवं बिहार को छोड़कर सभी राज्यों के अध्यक्ष बदल दिए गए थे। दिल्ली में एक ऐसे चेहरे की जरूरत थी, जो भाजपा के विचारों को जन-जन तक पहुंचा सके। इसमें कोई संदेह नहीं है कि मनोज तिवारी यह काम बाखूबी कर सकते हैं।
उनमें कुछ खासियतें और हैं, जो उनके पक्ष में जाती हैं। एक तो यही कि उनमें अपनी बात रखने की जबर्दस्त क्षमता है। जब वे बोलते हैं, तो उनकी बात सभी सुनते हैं। मनोज की एक और खासियत यह है कि वे दिखावा करने में भरोसा नहीं करते। अत: भाजपा के छोटे से छोटे कार्यकर्ता ही नहीं, बल्कि आम जनता के लिए भी वे हमेशा सुलभ रहते हैं, उसकी समस्याओं को सुनते हैं और अपनी ओर से निराकरण के भी प्रयास करते हैं।
धार्मिक एवं अन्य तरह के समारोहों में अगर उन्हें कोई बुलाए तो वे एक आम नागरिक की तरह जा पहुंचते हैं, न कोई तामझाम, न ही दिखावा। चूंकि, मनोज तिवारी में अहंकार भी नहीं है। अत: दिल्ली भाजपा के नेताओं के बीच अहंकारों का टकराव होने की भी कोई गुंजाइश नहीं दिखती। मतलब, उनमें यह क्षमता है कि वे सभी को साथ लेकर चल सकते हैं, उनके कारण दिल्ली भाजपा के किसी भी नेता के सम्मान को ठेस नहीं पहुंचेगी। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने उनकी इन खूबियों को देखकर उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी है।
बताते चलें कि दिल्ली की राजनीति में पहले पंजाबी समुदाय का वर्चस्व माना जाता था, बाद में उसकी जगह वैश्य समुदाय ने ले ली। मगर अब स्थिति बदल चुकी है। दिल्ली की राजनीति में इस समय पूर्वांचल के लोगों का बोलबाला ज्यादा है, इसलिए बीजेपी मनोज तिवारी को आगे ले आई है। वैसे भी, लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के उपरांत मनोज भाजपा की दिल्ली की राजनीति का एक महत्वपूर्ण चेहरा बन गए थे। इसीलिए कयास लगाए जा रहे हैं कि उनके नाम पर सहमति तो बहुत पहले बन गई थी, मगर बीच में दिल्ली के तीनों नगर निगमों के 13 वार्डों के उपचुनाव आ गए थे। अत: प्रदेश भाजपा अध्यक्ष को बदलने का फैसला कुछ समय के लिए टाल दिया गया था।
दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने में अभी काफी समय है। इस तरह मनोज तिवारी के पास पर्याप्त मौका है, पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए। अगर वे पूर्वांचल के मतदाताओं को ही भाजपा के पाले में खड़ा करने में कामयाब हो गए तो लग रहा है कि अगले विधानसभा चुनाव के बाद दिल्ली में इसी पार्टी की सत्ता होगी। राज्य में उसका आधार तो है ही। कारण यही है कि नगर निगमों पर भाजपा का ही कब्जा है। मनोज तिवारी में इस आधार को और मजबूत करने की क्षमता है।
(लेखिका पेशे से पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)