विमुद्रीकरण : निर्णय एक आयाम अनेक

सचमुच अतुलनीय हैं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी। अनपेक्षित और चौकाऊ, हर कयास से परे, हर वह साहसिक फैसला लेने को हमेशा तैयार जिससे देश का कोई भला होने वाला हो, जिससे माँ भारती का भाल ज़रा और ऊँचा उठने वाला हो। देश भर में भाजपा-जन जब राजनीति में शुचिता के प्रतीक पुरुष श्री लालकृष्ण आडवाणी का जन्मदिन मना रहे थे, उसी दिन भारत में आर्थिक स्वच्छता के एक बड़े कदम, या यूं कहें कि आज़ाद भारत में आर्थिक मामलों के  सबसे बड़े क़दमों में से एक की घोषणा हुई। प्रधानमंत्री श्री मोदी सबसे पहले राष्ट्रपति से मिले, उसके बाद तीनों सेनाध्यक्षों से और फिर खबर आयी कि रात्रि आठ बजे पीएम देश को संबोधित करने वाले हैं।

स्वाभाविक ही उन घंटों के दौरान कयासों का बाज़ार गर्म रहा। तमाम समाचार माध्यम यह अनुमान लगाने में व्यस्त हो गए थे कि दुश्मन पाकिस्तान के खिलाफ कोई बड़ा फैसला होने वाला है। शायद सीधे युद्ध की घोषणा करने वाले हैं श्री मोदी। ऐसा सोचना कोई आधारहीन था भी नहीं। कुछ हफ्ते पहले ही तो देश ने ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ का नाम सुना था, जिसमें कारगिल के बाद के सबसे बड़े लेकिन अनोखे एक अभियान में पाकिस्तान में घुस कर हमने ‘उड़ी’ के अपने शहीदों का बदला लिया था। वह अभियान अनोखा इस लिए था, क्योंकि पीएम के आदेश पर सीधे नियंत्रण रेखा पार दुश्मनों के दांत खट्टे कर आये थे देश के जाबाज़। बहरहाल।

विमुद्रीकरण के इस फैसले से पकिस्तान है और भारत के भीतर भी ऐसी मानसिकता के जो लोग हैं, वे परेशान हुए हैं। नकली नोटों पर फैले आतंक का जाल ख़त्म होना, बस्तर में नक्सल का आर्थिक कारोबार लगभग खत्म हो जाना, कश्मीर में पत्थर फिकवाने वालों की रीढ़ टूट जाना, वहां शान्ति व्यवस्था लगभग बहाल हो जाना, महीनों से बंद स्कूलों का खुलने लगना, समूचे देश में एक नए तरह का जागरण, एक अनोखा नागरिक बोध पैदा होना, घंटों कतार में खड़े रह कर अनेक परेशानियों को झेलने के बावजूद चेहरे पर मुस्कान बिखेरने वाला भारत दशकों बाद हम देख रहे हैं।

प्रतीक्षित उद्बोधन शुरू हुआ। कुछ मामले में अपेक्षा के अनुरूप भी और अनेक मामलों में अपेक्षा से कई गुणा ज्यादा, कयासों से अनेक गुणा अधिक मारक। निश्चित ही ‘हमला’ पाकिस्तान पर भी हुआ था। एशिया के भौगोलिक दुर्भाग्य पाकिस्तान पर भी और साथ ही देश के भीतर-बाहर जमा तमाम तरह के काले धन पर भी। विमुद्रीकरण की घोषणा कर प्रधानमंत्री ने एक झटके में ना-पाक मंसूबों पर एक साथ ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ कर दिया था। मिनटों में पांच सौ और हज़ार के सभी नाजायज़ (यानी नकली और उसके अलावा उक्त सभी नोट जिसे ग़लत तरीके से अर्जित किया गया था, जिस पर कर नहीं दिया गया था आदि भी। जायज़ नोट को अपने खाते में जमा करने या बदलवा लेने का विकल्प के साथ) नोट महज़ कागज़ के टुकड़े हो गए थे। देखते ही देखते देश के पंद्रह लाख करोड़ रूपये की मुद्रा का 86 प्रतिशत अमान्य कर दिया गया था। इस एकमात्र फैसले से देश भर में मौजूद नकली करेंसी का मूल्य कागज़ के टुकड़ों जितना भी नहीं रह गया था। काला धन रखने वाले धन्नाओं की तिजोरी झटके में ‘शुद्ध’ हो गयी थी, खाली हो गयी थी। जैसा कि शीर्षक में वर्णित है इस फैसले के इतने आयाम हैं, जिसका ठीक-ठीक अनुमान शायद यह कदम उठाने वाले मोदी जी को ही पता हो, अन्य तमाम विशेषज्ञ अभी दशकों तक शोध कर ही ‘प्रभावों’ का अध्ययन कर पायेंगे। फिर भी मोटे तौर पर इसके दर्ज़न भर साक्षात दिख रहे प्रभावों का जिक्र तो किया ही जा सकता है।

सबसे ज्यादा आहत इस फैसले से पकिस्तान है और भारत के भीतर भी ऐसी मानसिकता के जो लोग हैं, वे परेशान हुए हैं। नकली नोटों पर फैले आतंक का जाल ख़त्म होना, बस्तर में नक्सल का आर्थिक कारोबार लगभग खत्म हो जाना, कश्मीर में पत्थर फिकवाने वालों की रीढ़ टूट जाना, वहां शान्ति व्यवस्था लगभग बहाल हो जाना, महीनों से बंद स्कूलों का खुलने लगना, समूचे देश में एक नए तरह का जागरण, एक अनोखा नागरिक बोध पैदा होना, घंटों कतार में खड़े रह कर अनेक परेशानियों को झेलने के बावजूद चेहरे पर मुस्कान बिखेरने वाला भारत दशकों बाद हमने देखा था। हर सरोकारी नागरिक का एक सैनिक की भूमिका में आ जाने का बोध मानो चार चांद लगा रहे थे इस फैसले में। यहां तक कि एक ऐसा बड़ा वर्ग जिसका हित भी ज़रा प्रभावित हुआ हो, लेकिन जो देशभक्त हैं, वे भी सरकार के इस फैसले से आनंदित उत्साहित नज़र आ रहे हैं।

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उदारीकरण के दुष्प्रभावों के कारण शाहखर्च हो गया वर्ग भी मितव्ययिता के साथ जीने के उत्सव में कुछ समय के लिए शामिल हो गया। देश-दुनिया की आवश्यक बुराई ‘मुद्रा’ के बिना भी कुछ समय गुजार लेने, पड़ोस वाले चाचा जी के यहां से निःसंकोच मदद मांग लेने का जो सहकार विकसित हुआ, गांव-गांव में दशकों पहले खत्म हो गए बार्टर प्रणाली को भी नयी पीढ़ी ने देखा-भाला और महसूसा; बनारस में एक गिरोह ने अपहरण किये गए बच्चों को इस लिए सकुशल छोड़ दिया क्योंकि उसे पता था कि किसी भी तरह से उसे अब फिरौती मिलना संभव नहीं है। कहीं लुटेरों ने किसी को उसका पर्स इसलिए वापस कर दिया, क्यूंकि उसमें सारे पांच सौ वाले नोट ही थे, तो कहीं घर में घुस कर भी सारी नकदी छोड़ कर भी चोरों का निकल जाना, अवैध नोटों का गंगा में बहाया जाना, लोगों में हास्यबोध का संचार होना, एक से एक कविता-कहानियां गढ़ा जाना जैसी दिलचस्प चीज़ें होती रही। संयुक्त परिवार का महत्त्व बढ़ना, मां-पिता के खाते में अरसे बाद लाखों की रकम जमा होना, महिलाओं के दशकों से संचित असली धन का भी बड़ी संख्या में बाहर आना, यानी परिवार निर्माण में काम आने वाली पुण्य रकम का भी राष्ट्र निर्माण में लगने के लिए आने जैसे अनेकानेक आयाम हैं इस फैसले के। कुछ हफ्ते के लिए पूंजी के अभाव में भी जीने की आदत डालकर मुस्काते रहने के स्वभाव को पीढ़ियों बाद वापस पाने को क्या आप कमतर आंकना चाहेंगे?

लेकिन, निस्संदेह ये तमाम छोटी-छोटी सी लेकिन बड़ी ख़बरें तो इस कदम के उप-उत्पाद हैं। ऐसे अनेक प्रभाव सामने आते भी रहेंगे जिनका अध्ययन दशकों तक होता रहेगा, लेकिन इस कदम का सबसे बड़ा हासिल तो देश में एक नए अर्थयुग का उद्भव होना ही है। देश दो हफ्ते में ही यह समझने के लिए तैयार हो गया है कि इमानदारी हमारी संस्कृति तो रही ही है, लेकिन इसे सबसे अच्छी नीति भी हमें बना लेना होगा। धीरे-धीरे देश का कैशलेस इकोनोमी की तरफ बढ़ना भी एक सुन्दर संकेत है, ज़ाहिर है नगदी में जितना कम विनिमय होगा, भ्रष्टाचार और कालाधन उतना कम होते जाएगा।

तीस दिसंबर को जब ऐसे नोटों का बैंक में जमा हो सकने की मियाद खत्म होगी तब असली आंकड़े आयेंगे, लेकिन नक़ली नोटों के आतंक से देश फिलहाल लगभग पूरी तरह मुक्त हो गया है, यह तय है। इसके अलावा असली नोटों में अपना कालाधन छिपा कर रखने वाले लोग लगभग चार से पांच लाख करोड़ की राशि जमा करने की हिम्मत नहीं कर पायेंगे, ऐसा अनुमान है। यानी इतने का सीधा लाभ देश के खजाने को होगा। सरल शब्दों में कहें तो दस वर्ष में कांग्रेसनीत सरकार के घोटालों से जितना निकसान हुआ था, एकमात्र इसी कदम से उसकी भरपाई कर ली जायेगी, ऐसा अर्थशास्त्रियों का अनुमान है

ज़ाहिर है, अपनी इस ‘गाढ़ी कमाई’ को लुटते देख कर विपक्षियों का बौखलाना भी स्वाभाविक ही है। वे इसे विफल करने के तमाम हथकंडे अपनाएंगे ही, लेकिन चूंकि जनता जी-जान से अपने नेतृत्व के साथ है, तो ज़ाहिर है विरोधियों का कोई भी षड्यंत्र अबकी बार सफल नहीं होना है।

देखा जाय तो अच्छा ही हुआ जो विपक्ष ने अपनी मंशा जनता के सामने स्पष्ट कर दी, वे अपने असली रूप में आ गए जैसे बाढ़ आ जाने पर सारे परस्पर विरोधी जंतु भी एक ही कश्ती पर सवार हो जाते हैं बिना दूसरे जंतु को नुकसान पहुचाये। अब चूंकि,  विपक्ष के सामने अस्तित्व का संकट है तो ज़ाहिर है वे तमाम तरह के शिगूफे छेड़ते रहेंगे, हथकंडे अपनाते रहेंगे, लेकिन उनके ये सब प्रयास विफल होने ही हैं। एक शायर के शब्दों में कहें तो देश बस प्रतिपक्ष से यही कह रहा है कि – तुमने दिल की बात कह दी आज ये अच्छा हुआ, हम तुम्हें अपना समझते थे बड़ा धोखा हुआ भीतर बाहर के तमाम तत्वों का बेनकाब हो जाना भी इस महा-अभियान की ही एक और सफलता समझिये। अस्तु।

एक संभावनाशील प्रदेश के रूप में छत्तीसगढ़ की स्थापना के 16 वर्ष पूरे होने पर स्वयं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का छग आना भी प्रदेश को दुगने उत्साह से सराबोर कर गया। स्थापना दिवस के समापन समारोह में गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह जी की उपस्थिति भी गरिमा बढ़ाने वाला रहा। श्री नरेंद्र मोदी और डॉ. रमन सिंह जी के देश-प्रदेश में कुशल नेतृत्व पाकर छत्तीसगढ़ लगातार उपलब्धियों का कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। सोलह वर्ष का यह बांका जवान उत्साह से लबरेज़ होकर वह पाने की कोशिश में सतत जुटा है, जैसा होना उसने तय किया है, जैसा होने का स्वप्न इसकी आंखों में कभी रोपा था धान के बिरबे की तरह राज्य निर्माता अटल जी ने। आज वह बिरबा लहलहा कर बाली हो गया है।

(यह लेख छत्तीसगढ़ भाजपा के मुखपत्र ‘दीपकमल’ में प्रकाशित है।)