भारतीय राजनीति में नरेंद्र मोदी ने जितना राजनीतिक विरोध झेला है उतना शायद ही किसी राजनेता ने झेला हो। सबसे बड़ी विडंबना यह रही कि गुजरात के मुख्यमंत्री और भारत के प्रधानमंत्री के रूप में देश हित में लिए गए उनके निर्णयों को राजनीतिक विरोध से गुजरना पड़ा। प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद से ही पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय विरादरी में अलग-थलग करने की जिस सुनियोजित योजना पर नरेंद्र मोदी ने काम किया उसे भी विरोधियों ने राजनीतिक विरोध का हथियार बना लिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्राओं पर उंगली उठाने वाले, उन्हें अनिवासी प्रधानमंत्री की उपाधि देने वाले नेता-बुद्धिजीवी-मीडिया की तिकड़ी उस समय खामोश हो गई जब संयुक्त राष्ट्र ने आतंक का पर्याय बने मौलाना मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कर दिया। इसे भारत की कूटनीतिक मोर्चेबंदी ही कहेंगे कि हर बार मसूद अहजर को बचाने वाले चीन ने इस बार संयुक्त राष्ट्र में कोई अड़ंगा नहीं डाला।
गौरतलब है कि मसूद अजहर ही वह आतंकवादी है जिसने भारतीय संसद, मुंबई, पठानकोट और पुलवामा में आतंकी हमला कराया था। मसूद के अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित होने का मतलब है कि अब वह पाकिस्तान के अलावा दुनिया में कहीं और नहीं जा पाएगा। पूरी दुनिया में मसूद की संपत्तियां जब्त कर ली जाएंगी। वह किसी भी देश से हथियार नहीं खरीद पाएगा और सबसे बड़ी बात यह है कि अब पाकिस्तान पूरी दुनिया के सामने खुलकर मसूद अजहर का बचाव भी नहीं कर पाएगा।
देखा जाए तो प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही नरेंद्र मोदी पाकिस्तान के खिलाफ कूटनीतिक दबाव बनाने में जुट गए थे। जिन विदेश यात्राओं को लेकर नरेंद्र मोदी का मजाक उड़ाया जाता था उन्हीं विदेश यात्राओं के दौरान प्रधानमंत्री अंतरराष्ट्रीय मंचों से पाकिस्तान को अलग-थलग कर रहे थे। इसी का नतीजा रहा कि उड़ी हमले के बाद भारत की ओर से की गई सर्जिकल स्ट्राइक पर अमेरिका-चीन ही नहीं इस्लामी देश भी पाकिस्तान का साथ छोड़ दिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस कड़वी हकीकत को जान गए थे कि आतंकवाद की जड़ काटना है तो पाकिस्तान को अलग-थलग करना ही होगा। इसी दूरगामी नीति के तहत प्रधानमंत्री ने अमेरिका, सऊदी अरब और चीन जैसे पाकिस्तान के परंपरागत मित्रों को पाकिस्तान की असलियत बताया। इसका परिणाम यह हुआ कि अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली सैनिक और आर्थिक मदद पर लगाम लगा दिया।
सऊदी अरब ने तो पाकिस्तानी विरोध की अनदेखी करते हुए भारत को अपना रणनीतिक साझेदार तक बना दिया। जब इस्लामी उग्रवाद को बढ़ावा देने वाली पाकिस्तान की नीतियों से चीन भी अशांत रहने लगा तब उसने भी पाकिस्तान पर आंख मूदकर विश्वास करना बंद कर दिया। स्पष्ट है, मौलाना मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कराने में नरेंद्र मोदी कूटनीतिक घेरेबंदी की अहम भूमिका रही है।
कमजोर कूटनीतिक घेरेबंदी और मुस्लिम वोट बैंक की लालच के कारण पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारें वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान के खिलाफ कूटनीतिक घेरेबंदी से संकोच करती रही हैं लेकिन मोदी सरकार ने राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखा। संयुक्त अरब अमीरात में आयोजित इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) बैठक में विशिष्ट अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने आतंकवाद को दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया। इस सम्मेलन की सबसे खास बात यह रही कि भारत को विशिष्ट अतिथि के रूप बुलाए जाने के विरोध में इस संगठन का संस्थापक सदस्य होने के बावजूद पाकिस्तान ने इसका बहिष्कार किया। इसका नतीजा यह हुआ कि भारत इस मंच से पाकिस्तान की छवि आतंकवाद के निर्यातक के रूप में बनाने में कामयाब रहा।
अब तक देश की सरकारें चीन से भयाक्रांत होकर श्रीलंका, नेपाल, भूटान, मालदीव, बांग्लादेश और म्यांमार में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप को रोकने का कारगर प्रयास नहीं करती थीं। मोदी सरकार ने इस मामले में एकदम अलग रवैया अपनाया और इन देशों में चीनी आधिपत्य के विरोध में उठ रही आवाज का साथ देना शुरू किया। इसका परिणाम यह हुआ कि इन देशों में चीन के पक्ष और भारत के विरोध में बन रहे रूझान में कमी आई।
समग्रत: देश से ज्यादा विदेश में रहने, परिधान मंत्री, अनिवासी प्रधानमंत्री जैसी उपाधियां देने वाले मोदी विरोधी आज मोदी की कामयाब कूटनीति का लोहा मान रहे हैं लेकिन मोदी विरोध की आग में जलने वाले लोग इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नहीं देश की जीत बताने पर तुले हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी यह फख्र की बात है क्योंकि उनके लिए देश ही सब कुछ है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)