यह भारतीय राजनीति का गिरता स्तर ही है कि गाली के प्रतिकार में गाली दी जा रही है। दरअसल, पिछले सप्ताह भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह ने बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती पर अभद्र टिप्पणी की थी। इस टिप्पणी ने सूबे की सियासत में भूचाल ला दिया। जाहिर है कि दयाशंकर सिंह ने मायावती के लिए बेहद आपत्तिजनक शब्द का इस्तेमाल किया था जो किसी भी महिला के लिए अपमानजनक था। हालांकि जब दयाशंकर सिंह को अपनी गलती का एहसास हुआ, तो उन्होंने बिना देर किये अपने बयान पर दुःख जाहिर करते हुए माफी मांग ली। गौरतलब है कि दयाशंकर सिंह के बयान की चहुँओर निंदा हुई। जैसे ही ये मामला बीजेपी आलाकमान के पास पहुंचा पार्टी ने त्वरित कार्यवाही करते हुए दयाशंकर सिंह को पार्टी से निष्कासित कर दिया तथा खुद बीजेपी ने भी इस बयान की निंदा की। लेकिन बसपा के बड़े नेताओं के पार्टी छोड़ने के बाद सियासत के भवंर में बसपा की डूबती नैया को दयाशंकर की गाली से संजीवन मिली जिसे भुनाने के लिए बसपा ने तनिक भी देर नहीं लगाई इस बयान के प्रतिकार में बसपा के कार्यकर्ता अगले दिन लखनऊ में विरोध प्रदर्शन किये किंतु बसपा के इस प्रदर्शन में जो नारे लग रहे थे उसमें मर्यादाओं को तार–तार किया जा रहा था, दयाशंकर सिंह के परिवार की महिलाओं, बेटियों को पेश करने की मांग हो रही थी बात यहीं समाप्त नहीं होती बसपा की एक महिला नेता ने तो दयाशंकर सिंह के जबान लाने पर ईनाम की घोषणा कर दी वहीँ एक दुसरे नेता ने उन्हें नाजायज औलाद ही बता दिया। इस तरह गाली के बदले गाली की राजनीति में बीजेपी ने नैतिकता दिखाते हुए अपने नेता पर कार्यवाही की लेकिन मायावती उस प्रदर्शन में लगे अभद्र नारों पर मायावती ने खुद को देवी बताते हुए कहा कि मेरे अपमान से मेरे समर्थक गुस्से में हैं तब सवाल यह उठता है कि गुस्से में आने के बाद मायावती के समर्थक सभी मर्यादाओं को ताक पर रख देंगे ? बहरहाल, इस प्रदर्शन के जरिये बसपा राजनीतिक लाभ उठाते के फ़िराक में थी लेकिन बसपा नेताओं के बड़बोलेपन के कारण ही बसपा का यह दाव उल्टा पड़ गया। दयाशंकर की बेटी व पत्नी स्वाति ने बसपा की इस रणनीति पर पूरी तरह से पानी फेर दिया है। राजनीति की कसौटी अगर बसपा के प्रदर्शन और इस प्रकरण में स्वाति सिंह को जोड़ कर देखें तो जो बसपा दयाशंकर सिंह के बयान आने के बाद से फ्रंटफुट पर नजर आ रही थी अब वो बैकफुट पर खड़ी दिख रही है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि राजनीति का यह खेल सभी मर्यादाओं को तार–तार कर रहा भाषा अमर्यादित होती जा रही है, हर मसले पर मानवीयता का चश्मा हटा राजनीति के चश्में से देखा जा रहा हैं सही मायने में यह गाली–गलौज का मसला उस वक्त ही समाप्त हो जाना चाहिए था जब दयाशंकर सिंह ने माफ़ी मांगी और मामला कानून के हाथो चला गया किंतु बसपा ने दयाशंकर के बयान को ढाल बनाकर राजनीति करने का प्रयास किया फ़िलहाल में बसपा नेताओं ने गाली के बदले गाली देकर खुद को कटघरे में खड़ा कर लिया है।
बसपा के उग्र प्रदर्शन में लग रहे नारों के बाद दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह ने मोर्चा सँभालते हुए बसपा नेताओं पर उनकी बेटी पर मानसिक रूप से परेशान करने का आरोप लगाया और कहा कि बसपा कार्यकर्ता लगातार उनके परिवार के खिलाफ अश्लील भाषा का इस्तेमाल कर रहें हैं जिससे उनकी 12 साल की बेटी काफी डरी हुई हैं। इन सब से आहत होकर स्वाति सिंह ने मायावती समेत बसपा के अन्य बड़े नेताओं के खिलाफ केस दर्ज कराया है। गौरतलब है कि मायावती भी महिला हैं और दयाशंकर की बेटी व पत्नी भी महिला हैं। नारी सम्मान की दृष्टि से दोनों ही सम्मान की हकदार हैं। अगर मायावती को दी गई गाली से मायावती को दुःख पहुँचता हैं और खुद को अपमानित महसूस करती हैं तथा गाली देने वाले पर कड़ी कार्यवाही की मांग करती हैं तो फिर मायावती, स्वाति व उनकी बेटी को गाली देने वाले बसपा नेताओं पर कार्यवाही क्यों नहीं कर रही ?वक्त का तकाजा यही कहता है कि मायावती बीजेपी से प्रेरणा लेते हुए अपने उन सभी नेताओं को बर्खास्त करे जो निर्लज्जता के साथ सड़को पर स्वाति और उनकी बेटी को गाली दे रहे थे। खैर, जैसे ही स्वाति सिंह मीडिया के सामने अपनी बात को रखा अगले दिन बीजेपी भी सड़क पर ‘बेटी के सम्मान ने भाजपा मैदान में’ के नारों से साथ उतर गई और बसपा के खिलाफ प्रदेशव्यापी प्रदर्शन किया।
दरअसल यह गाली प्रकरण उत्तर प्रदेश की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाला हैं बसपा आने वाले विधानसभा चुनाव में हर जगह इसे दलित व महिलाओं के सम्मान से जोड़ कर बीजेपी पर निशाना साधने से नहीं चुकेगी। बहरहाल, इस तरह के बयान को किसी भी सुरत में स्वीकार नही किया जा सकता। ऐसे बयानों पर कड़ी निंदा होनी करनी चाहिए बीजेपी ने दयाशंकर सिंह को पार्टी व पद से बर्खास्त कर अच्छी मिशाल पेश की है, सभी दलों के नेताओं को ऐसे अमर्यादित भाषा से परहेज करना चाहिए। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अभी वक्त हैं लेकिन आगे की सियासत किनती गर्माहट वाली होगी इसका अंदाज़ा इस प्रकरण से लगाया जा सकता है। अभी चुनाव की घोषणा भी नहीं हुई राजनीतिक दल अपनी बिसात बिछाने में लगे हैं। किंतु यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि राजनीति यह खेल सभी मर्यादाओं को तार–तार कर रहा भाषा अमर्यादित होती जा रही है, हर मसले पर मानवीयता का चश्मा हटा राजनीति के चश्में से देखा जा रहा हैं सही मायने में यह गाली–गलौज का मसला उस वक्त ही समाप्त हो जाना चाहिए था जब दयाशंकर सिंह ने माफ़ी मांगी और मामला कानून के हाथो चला गया किंतु बसपा ने दयाशंकर के बयान को ढाल बनाकर राजनीति करने का प्रयास किया फ़िलहाल में बसपा नेताओं ने गाली के बदले गाली देकर खुद को कटघरे में खड़ा कर लिया है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)