हरेक फैसले का अपना सांकेतिक महत्व होता है। हरेक संकेत के अपने राजनीतिक निहितार्थ। हरेक राजनीतिक निहितार्थ में भविष्य की तैयारी छुपी होती है। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य की कमान योगी आदित्यनाथ के हाथ में देकर भाजपा नेतृत्व और प्रधानमंत्री नरेंद्रभाई दामोदरदास मोदी ने संकेत दे दिए हैं कि भाजपा जड़ों से कभी हटी ही नहीं थी। भाजपा ‘सबका साथ, सबका विकास’ करेगी, लेकिन किसी भी वर्ग या संप्रदाय के तुष्टीकरण से कन्नी काटेगी, योगी के चुनाव ने यह दीवार पर लिखी इबारत की तरह साफ कर दिया है। दूसरा संकेत भाजपा ने यह दे दिया है कि वह आत्मविश्वास से भरी हुई पार्टी है, जिसे अपने किसी फैसले को लेकर कोई हिचक नहीं है। यह एक संप्रभु, आत्मविश्वस्त और जोखिम उठानेवाली पार्टी का आगाज़ है।
जो लोग कट्टरता के नाम पर विकास की बलि चढ़ाने की बात कर रहे हैं, उन्हें एक बार गोरखपुर जाकर योगी आदित्यनाथ के क्षेत्र में विकास और काम देखना चाहिए। साफ-सफाई से लेकर स्वास्थ्य और सड़कें तक देखी जा सकती हैं। योगी सुबह 3 बजे उठते हैं और रात के 11 बजे सोते हैं। वह एक कठोर प्रशासक हैं, इसका अनुभव आपको गोरखपुर में जाने पर चहुंओर दिख सकता है। वह पांच बार लगातार सांसद रहे हैं। पहली बार सांसद बने तो 26 वर्ष मात्र के थे। जनता के प्रचंड समर्थन के बिना तो इतनी बार कोई भी नहीं जीत सकता है न! उनके ऊपर भ्रष्टाचार का कोई मामला नहीं है, न ही उनकी आलोचनाओं में आधार है।
अब हमारे प्रधानमंत्री चूंकि भगवद्गीता का खुद भी प्रचार करते हैं, तो उन्होंने युद्ध की नीति तो जरूर ही पढ़ी होगी। ऐसे में, जब आप सोच रहे होते हैं कि मोदीजी अपना लक्ष्य भूल रहे हैं, तभी आता है एक मास्टरस्ट्रोक। योगी का सीएम बनना भी एक एक मास्टर स्ट्रोक ही है। इस एक स्ट्रोक से कट्टर समर्थक जो तीव्र हिंदुत्व की राजनीति चाहते थे, को तो खुश किया ही गया है। मौर्य और शर्मा के बहाने जातीय संतुलन को भी साध लिया गया है। केंद्र में मोदी और प्रदेश में योगी? राष्ट्रवादियों के लिए इससे अच्छे दिन भी आ सकते थे क्या?
दरअसल सबका साथ, सबका विकास तो ठीक है, लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार की 120 सीटों में से अधिकांश निकालने के लिए तो मोदी को कहीं न कहीं अपने कोर वोटर को साधना ही होगा, जो राम मंदिर के नाम पर वोट देता है, अनुच्छेद 370 पर कार्रवाई चाहता है, यूनिफॉर्म सिविल कोड चाहता है और साथ में रोजगार, उद्योग और सुविधा भी चाहता है।
जहां तक सेकुलरों के खोखले प्रलाप का सवाल है, तो वे शायद इसी के लिए बने ही हैं। अब, मनोरंजन चैनल वाले चाहें तो भी, मोदी-योगी की जोड़ी तो अपने हिस्से का एयर-स्पेस लेकर ही रहेगी। यूपी में लोकतंत्र की हत्या हुई की दुहाई देनेवाले ज़रा सा बता दें कि विधायक दल की बैठक में जब योगी को नेता चुना गया, तो इसमें लोकतंत्र की किधर से हत्या हो गयी। यूपी में फासीवाद आ गया या दलितों और मुस्लिमों की दुश्मन सरकार आ गयी है, का शोर मचानेवाले वही लोग हैं, जो 16 मई 2014 से अब तक सन्निपात ग्रस्त हैं, जबकि देश अपने रास्ते पर पूरी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है।
जो लोग कट्टरता के नाम पर विकास की बलि चढ़ाने की बात कर रहे हैं, उन्हें एक बार गोरखपुर जाकर योगी आदित्यनाथ के क्षेत्र में विकास और काम देखना चाहिए। साफ-सफाई से लेकर स्वास्थ्य और सड़कें तक देखी जा सकती हैं। योगी सुबह 3 बजे उठते हैं और रात के 11 बजे सोते हैं। उनसे आप यह उम्मीद न करें कि सत्ता पाकर वह आलसी हो जाएंगे, या उनका रुझान केवल धार्मिक कर्मकांडों की ओर है। वह एक कठोर प्रशासक हैं, इसका अनुभव आपको गोरखपुर में जाने पर चहुंओर दिख सकता है। वह पांच बार लगातार सांसद रहे हैं। पहली बार सांसद बने तो 26 वर्ष मात्र के थे। जनता के प्रचंड समर्थन के बिना तो इतनी बार कोई भी नहीं जीत सकता है न! उनके ऊपर भ्रष्टाचार का कोई मामला नहीं है, न ही उनकी आलोचनाओं में आधार है। जो लोग उन्हें मुसलमानों का विरोधी कहते हैं, उनको पता ही नहीं है कि गोरखनाथ पीठ में दर्जनों मुसलमान शांति से अपनी दुकान चलाते हैं, यही नहीं आदित्यनाथ का सबसे निकट सहयोगी भी एक मुसलमान ही है। जहां तक भड़काऊ बयान और हिंसा को उकसाने वाली बातों का सवाल है, तो योगी के हरेक इंटरव्यू को ध्यान से देखना चाहिए। वह ‘परावर्तन’ की बात करते हैं, धर्म-परिवर्तन की नहीं। हां, उनकी अगर ग़लती मानी जाए, तो केवल यह है कि वह सेकुलरिज्म की बीमार व्याख्या के बदले राष्ट्रवाद की ‘सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया।’ वह 100 मुसलमानों या ईसाइयों को अपने साथ लाने की बात करते हैं, उन्हें हटाने की नहीं (जिन्हें भी इसमें संदेह हो, वे रजत शर्मा के साथ वाला उनका इंटरव्यू फिर से देखें)। वह तो हरेक दिशा से अच्छे विचारों के समन्वय के पक्षधर हैं- ‘आ नो भद्राः, क्रतवो यन्तु विश्वतः’।
आलोचकों के साथ समस्या यह है कि वे समझ ही नहीं पा रहे हैं कि इस मास्टरस्ट्रोक का किया क्या जाए? इसलिए, वे कभी योगी की जाति ढूंढ ला रहे हैं, तो कभी फतवा दे रहे हैं कि वोट तो सारी पिछड़ी जातियों ने दिया, पर अंततः गद्दी एक सवर्ण को मिली। वे बड़ी आसानी से यह भी भुला दे रहे हैं कि केशव प्रसाद मौर्य को भी उप-मुख्यमंत्री बनाया गया है। पूरे पूर्वांचल में योगी की हनक और धमक है। अगर भाजपा नेतृत्व की आंखें 2019 पर टंगी हैं, तो योगी की ताजपोशी बिल्कुल ही एक सही कदम है।
हां, यह तो तय है कि योगी आदित्यनाथ सफेद को सफेद और काले को काला कहते हैं। वह किसी भी संप्रदाय का तुष्टीकरण तो नहीं ही करेंगे। हमारी समस्या है कि हम बद्ध धारणाओं के प्रति खुद ही निर्णय ले लेते हैं, जबकि सच्चाई शायद हमारी सोच के परे भी हो सकती है। योगी को काम करने का कुछ समय मिलना ही चाहिए, परखने के लिए थोड़ा वक्त तो देना ही चाहिए।
(लेखक पेशे से पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)