उत्तर प्रदेश में विशाल बहुमत के साथ भाजपा सरकार आकार ले चुकी है। गोरखपुर के केंद्र से पूर्वांचल में अपनी एक अलग राजनीतिक पहचान करने वाले योगी आदित्यनाथ यूपी के मुख्यमंत्री के रूप में अपने 46 मंत्रियों के साथ शपथ ले चुके हैं। इस मजबूत सत्ता पक्ष के समक्ष राज्य में विपक्ष बस कहने भर के लिए रह गया है। सपा-कांग्रेस गठबंधन से लेकर बसपा तक सबको मिलाकर भी महज़ अठहत्तर सीटें ही विपक्षी खेमे में दिखाई देती हैं। राज्य के मतदाताओं द्वारा ऐसी राजनीतिक स्थिति के लिए दिए गए जनादेश के कई गहरे मतलब और सन्देश हैं, जिन्हें विपक्ष में मौजूद सियासतदानों को समझने की ज़रूरत है।
यूपी के पूरे चुनाव में सपा-कांग्रेस और बसपा तीनों दलों द्वारा जाति व मज़हब विशेष के मतदाताओं को भाजपा का निर्मूल भय दिखाकर ध्रुवीकरण करने का प्रयत्न किया जाता रहा। मायावती तो अपनी रैलियों में खुलेआम इस तरह का भय दिखाते हुए मुस्लिम मतदाताओं से बसपा को वोट करने की अपील करती रहीं। इन सबसे इतर भाजपा का पूरा ध्यान मुद्दों और विकास पर रहा। वो बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि लोगों की बुनियादी ज़रूरतों समेत सूबे में बढ़ते अपराध, भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण की राजनीति जैसे मुद्दों को उठाती रही। इस पूरी स्थिति ने मतदाताओं के मन से संशय के सभी बादल छांटते हुए उनके चयन का मार्ग प्रशस्त कर दिया। परिणामतः भाजपा को विशाल बहुमत के साथ प्रदेश में शासन का अवसर प्राप्त हुआ है।
सबसे पहली चीज कि इसबार प्रदेश के चुनाव में जातिगत समीकरणों को मतदाताओं ने पूरी तरह से धता बता दिया, जिससे ऐसे समीकरणों पर आधारित वोट बैंक की राजनीति करने वाले दलों और नेताओं का सूपड़ा साफ़ हो गया। फिर चाहें वो यादव-मुस्लिम समीकरण का खेल खेलने वाली सपा हो या दलितों को राजनीतिक औजार बनाकर रख देने वाली बसपा हो, इन सबकी राजनीतिक दुर्गति का यही सबब है कि जनता जाति-मज़हब की राजनीति को और अधिक बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है। मतदाताओं ने स्पष्ट सन्देश दिया है कि अब जाति-मज़हब नहीं, विकास और जनता से जुड़े मुद्दों की राजनीति ही स्वीकार होगी। इसीलिए मतदाताओं द्वारा भाजपा की विकासवादी और मुद्दा आधारित राजनीति को पसंद करते हुए भाजपा को ३२५ सीटों का विशाल बहुमत प्रदान किया गया।
गौर करें तो यूपी के पूरे चुनाव में सपा-कांग्रेस और बसपा तीनों दलों द्वारा जाति व मज़हब विशेष के मतदाताओं को भाजपा का निर्मूल भय दिखाकर ध्रुवीकरण करने का प्रयत्न किया जाता रहा। मायावती तो अपनी रैलियों में खुलेआम इस तरह का भय दिखाते हुए मुस्लिम मतदाताओं से बसपा को वोट करने की अपील करती रहीं। इन सबसे इतर भाजपा का पूरा ध्यान मुद्दों और विकास पर रहा। वो बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि लोगों की बुनियादी ज़रूरतों समेत सूबे में बढ़ते अपराध, भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण की राजनीति जैसे मुद्दों को उठाती रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र की भाजपा सरकार के विकास कार्यों और लोक कल्याणकारी नीतियों पर भी यूपी की जनता की निगाह रही। जनता ने देखा कि एक तरफ यूपी पर लम्बे समय तक शासन करने वाले कांग्रेस, सपा और बसपा जैसे राजनीतिक दल जाति-मज़हब की संकीर्ण राजनीति में उलझे हैं, वहीँ भाजपा न केवल विकास की बात कर रही है बल्कि उसकी केंद्र व अन्य राज्यों में मौजूद सरकारों द्वारा विकास को जन-जन तक पहुंचाने के लिए सार्थक प्रयास भी किए जा रहे हैं।
इससे पहले लोगों ने यह भी देखा था कि केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी जैसे दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देने वाले उचित निर्णय लिए गए, तो इनके विरोध में सपा, बसपा, कांग्रेस आदि खड़े नज़र आए। इस पूरी स्थिति ने मतदाताओं के मन से संशय के सभी बादल छांटते हुए उनके चयन का मार्ग प्रशस्त कर दिया। परिणामतः भाजपा को विशाल बहुमत के साथ प्रदेश में शासन का अवसर प्राप्त हुआ है। ऐसे में, इस महाविजय का निष्कर्ष या सन्देश जो कहिये वो यही है कि अब जनता जाग रही है, उसे जाति-मज़हब की फ़िज़ूल बाते नहीं, विकास चाहिए। जनता अब सिर्फ उसे ही चुनेगी जो काम करेगा न कि फिजूल की राजनीति। इसलिए मतदाताओं ने मतदान का ढंग बदल डाला है, उचित होगा कि नेता भी अपनी राजनीति का ढंग बदल लें।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)