इस खुली परिचर्चा पर दुनिया भर, विशेषकर भारतवासियों की निगाहें थीं, क्योंकि इस चर्चा के दौरान भारत को एक बड़ी उपलब्धि मिली। अब संयुक्त राष्ट्र परिषद की खुली परिचर्चा की अध्यक्षता करने वाले नरेंद्र मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री बन गए हैं।
9 अगस्त, 2021 का दिन देश के इतिहास में एक विशेष दिन के रूप में दर्ज हो गया है। यह बात प्रत्येक भारतवासी के लिए गर्व का विषय है कि संयुक्त राष्ट्र जैसी बड़ी संस्था में भारत एक अग्रणी भूमिका में सामने आया है। इस अगस्त के महीने में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद UNSC की अध्यक्षता भारत कर रहा है।
परिषद में अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, रूस और फ्रांस जैसे देश बतौर स्थायी सदस्य शामिल हैं। भारत हालांकि इसका अस्थायी सदस्य है लेकिन यह अवधि दो साल की है और इस बीच गत 1 अगस्त से भारत के पास परिषद की अध्यक्षता का महत्वपूर्ण जिम्मा है। इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बहुप्रतीक्षित संबोधन मंगलवार को हुआ।
कोरोना प्रोटोकाल के चलते यह परिचर्चा ऑनलाइन हुई। वैसे तो इसका विषय समुद्री सुरक्षा एवं इसके लिए यथासंभव वैश्विक सहयोग की दरकार को लेकर था लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में पर्यावरण एवं व्यापार जैसे बिंदुओं पर भी प्रकाश डालकर विषय का दायरा व्यापक कर दिया।
इस खुली परिचर्चा पर दुनिया भर, विशेषकर भारतवासियों की निगाहें थीं, क्योंकि इस चर्चा के दौरान भारत को एक बड़ी उपलब्धि मिली। अब संयुक्त राष्ट्र परिषद की खुली परिचर्चा की अध्यक्षता करने वाले नरेंद्र मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री बन गए हैं। यह उपलब्धि हासिल करने वाले वे पहले भारतीय राष्ट्राध्यक्ष हैं।
दुनिया भर की समुद्री विरासत से जुड़े देशों के सामने आज जो चुनौतियां हैं, उन्हें लेकर पांच मुख्य बिंदुओं में मोदी ने सारगर्भित बातें कहीं। उनका यह संबोधन दीगर अर्थों में भी अहम था क्योंकि समुद्री रास्तों के जरिये केवल परिवहन ही जरूरी नहीं है बल्कि यहां सुरक्षा भी बड़ा मुद्दा है। समुद्री मार्ग का दुरुपयोग आतंकी गतिविधियों के लिए भी होता है।
जाहिर है, भारत से बेहतर इस बात को और कौन देश जान सकता है। 26 नवंबर, 2008 को मुंबई में आतंकी हमला करने वाले दरिंदे भी समुद्री रास्ते के ज़रिये ही देश में घुसे थे। ऐसा हादसा किसी भी देश के साथ हो सकता है जो समुद्री सीमाओं को साझा करता हो। ऐसे में समुद्री रास्तों पर निगरानी बढ़ाए जाने की दरकार है और यह अंतरराष्ट्रीय सहयोग के बिना नहीं हो सकता।
प्रधानमंत्री मोदी ने जिन पांच मुख्य बिंदुओं पर प्रकाश डाला उनमें समुद्री कारोबार में आने वाली बाधाओं को दूर किए जाने, प्राकृतिक आपदाओं का सामना मिल जुलकर करने, समुद्री पर्यावरण के संरक्षण, समुद्र में अवैध गतिविधियों का मुकाबला करना और समुद्री विवादों का वैश्विक स्तर पर निराकरण किए जाने जैसे मुद्दे शामिल थे। रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमिर पुतिन ने भी संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के अंतर्गत ही विशेष प्रावधान किए जाने का आह्वान किया ताकि समुद्री अपराधों से निपटा जा सके।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इस विषय में पहले कुछ प्रस्ताव अवश्य पारित किए लेकिन यह पहला अवसर था कि इस पर एक उच्च स्तरीय खुली परिचर्चा आयोजित की गई। इसकी अध्यक्षता भारत ने की। इससे यह भी प्रमाणित होता है कि वैश्विक पटल पर भारत के अभिमत को बड़े देशों के मध्य स्वीकार्यता मिली है और प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता इसमें सोने पर सुहागा की भूमिका निभा रही है।
संयुक्त राष्ट्र में चाहे कोई भी विषय हो, भारत सदा मुखर होकर अपना मत रखता आया है। भारत की पूर्व विदेश मंत्री दिवंगत सुषमा स्वराज ने आतंकवाद के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में प्रभावी भाषण देकर पाकिस्तान को दुनिया के कठघरे में खड़ा कर दिया था।
एक अन्य अवसर पर जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस मंच पर आक्रामक एवं दुर्भावनापूर्ण भाषण देकर भारत को नीचा दिखाने की कोशिश की तो प्रधानमंत्री मोदी ने गरिमामय किंतु तथ्यात्मक भाषण देकर विश्व बिरादरी की दाद बटोरी।
कहना ना होगा कि मौजूदा केंद्र सरकार के नेतृत्व में भारत का भी कद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ा है। पूर्ववर्ती सरकारों के समय ऐसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की सक्रियता लगभग नगण्य थी और आतंकवाद से पीड़ित होने के बावजूद देश अपनी बात को वहां पुख्ता ढंग से प्रस्तुत नहीं कर पाता था।
आज परिदृश्य बदल चुका है। अब भारत की छवि एक ठोस विचारों वाले राष्ट्र की हो गई है। देश में मजबूत नेतृत्व की मौजूदगी का असर विश्व में भारत की स्थिति पर भी पड़ा है। अब विश्व बिरादरी के लिए भारत को अनदेखा करना संभव नहीं रह गया है।
निश्चित ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने यह तुलनात्मक अध्ययन किया होगा और उसके बाद यह पाया होगा कि एक सशक्त देश होने के नाते अब एक पूरी परिचर्चा की अध्यक्षता भारत को सौंपी जाए। यह वास्तव में प्रधानमंत्री मोदी का नहीं बल्कि समूचे राष्ट्र एवं समस्त राष्ट्रवासियों का सम्मान है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)