नरेंद्र मोदी लगभग बारह वर्षों तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे और पिछले लगभग आठ वर्षों से देश के प्रधानमंत्री हैं। इस तरह सत्तारूढ़ रहते हुए उन्होंने बीस वर्ष गुजार लिए हैं। लेकिन इतने लंबे समय तक सत्ता में रहते हुए भी यदि उनकी लोकप्रियता में निरंतर वृद्धि देखने को मिल रही है, तो इसके पीछे के कारणों पर विचार करना दिलचस्प हो जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय सर्वेक्षण एजेंसी मॉर्निंग कंसल्ट द्वारा जारी वैश्विक नेतृत्व से सम्बंधित रिपोर्ट में एकबार फिर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 75 प्रतिशत अनुमोदन रेटिंग के साथ विश्व का सर्वाधिक लोकप्रिय नेता माना गया है। सर्वे में, मोदी के बाद मैक्सिकन राष्ट्रपति एंड्रेस मैनुअल लोपेज ओब्रेडोर 63 प्रतिशत और इतालवी प्रधानमंत्री मारियो ड्रैगी 54 प्रतिशत रेटिंग के साथ क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर मौजूद हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को 41 प्रतिशत रेटिंग के साथ पांचवे स्थान पर रखा गया है।
इससे पूर्व जनवरी 2022 और नवंबर 2021 में भी इस एजेंसी द्वारा जारी रेटिंग में प्रधानमंत्री मोदी दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेताओं की सूची में सबसे ऊपर थे। अबकी उनकी लोकप्रियता की रेटिंग में और भी वृद्धि हुई है। यह सर्वेक्षण रेटिंग दर्शाती है कि भारत में विपक्षी दल भले ही तरह-तरह के मिथ्यारोपों के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि खराब करने का प्रयास करते हों, लेकिन उनकी लोकप्रियता पर इन चीजों का कोई असर नहीं पड़ रहा है। मोदी भारत के तो सर्वाधिक लोकप्रिय और सबसे बड़े नेता हैं ही, अब उनकी लोकप्रियता का फलक विश्व पटल पर अपना विस्तार करते हुए उन्हें एक वैश्विक नेता के रूप में स्थापित कर रहा है।
नरेंद्र मोदी बारह वर्षों तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे और पिछले लगभग आठ वर्षों से देश के प्रधानमंत्री हैं। इस तरह सत्तारूढ़ रहते हुए उन्होंने बीस वर्ष गुजार लिए हैं। लेकिन इतने लंबे समय तक सत्ता में रहते हुए भी यदि उनकी लोकप्रियता में निरंतर वृद्धि देखने को मिल रही है, तो इसके पीछे के कारणों पर विचार करना दिलचस्प हो जाता है।
नेतृत्व का गुण किसीको विरासत में नहीं मिलता, यह तो व्यक्ति द्वारा धरातल पर किए गए अथक संघर्षों और चुनौतियों से जूझने की जीवटता से निखार पाता है। नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व ऐसे ही संघर्षों की आंच में तपे लोहे से बना है। चाय बेचने से लेकर देश का प्रधानमंत्री बनने तक की उनकी यात्रा के वृत्तान्त में संघर्ष ही केंद्रीय वस्तु है।
गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद जब सत्ता उनके हाथ में थी, तब भी चुनौतियाँ और संघर्ष उनके जीवन में बने रहे। भूकंप, दंगा आदि से उन्हें गुजरात की सत्ता संभालते ही जूझना पड़ा लेकिन वे अडिग होकर डटे रहे। गुजरात दंगे को लेकर उनपर राजनीति से प्रेरित आरोप भी लगे लेकिन कानून की सभी प्रक्रियाओं का सामना कर वे बेदाग बाहर आए।
तत्कालीन संप्रग सरकार ने पूछताछ आदि के नाम पर उन्हें परेशान करने का भी प्रयास किया लेकिन वे मौन भाव से हर चीज का सामना करते रहे। आज पूछताछ के लिए बुलाए भर जाने पर वितंडा खड़ा कर देने वाले राजनेताओं को जानना चाहिए कि मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी से नौ-दस घंटे तक सीबीआई ने लगातार पूछताछ की थी, लेकिन उन्होंने इसके लिए कभी कोई शिकायत नहीं की।
बहरहाल, इन तमाम कठिनाइयों के रूप में अपने फौलादी व्यक्तित्व, नेतृत्व-कौशल और निर्णय क्षमता की अनेक परीक्षाओं से गुजरते हुए ही मोदी ने गुजरात में विकास का एक ऐसा मॉडल तैयार किया जो पूरे देश के लिए मिसाल बन गया। मोदी स्वयं भले बिना कुछ कहे चुपचाप अपना काम करने में जुटे थे, लेकिन जनता सब देख रही थी और धीरे-धीरे उनके प्रति एक राष्ट्रव्यापी जनसमर्थन तैयार हो रहा था, जिसकी परिणति 2014 में प्रचंड बहुमत के साथ उनके प्रधानमंत्री बनने के रूप में हुई।
प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने गरीब कल्याण की योजनाओं, स्वच्छता का संकल्प, सांस्कृतिक विरासतों के पुनरुद्धार जैसे लोकप्रिय कार्यों के साथ-साथ नोटबंदी-जीएसटी जैसे अलोकप्रिय आर्थिक सुधारों को भी लागू करने का काम किया है। नोटबंदी को लेकर विपक्ष एवं बुद्धिजीवी मोदी पर सवाल उठाते रहे, लेकिन मोदी अपने निर्णय से विचलित नहीं हुए। जीएसटी पर भी कमोबेश यही हाल रहा। लेकिन दिलचस्प यह है कि अलोकप्रिय माने जाने वाले इन दोनों ही निर्णयों पर जनता ने मोदी का साथ देने में कोई गुरेज नहीं किया और न ही इनसे मोदी की लोकप्रियता में ही कोई कमी आई।
स्पष्ट है कि यदि नेतृत्वकर्ता सही नीयत से कोई निर्णय लेता है, तो उसपर विश्वास करने वाली जनता उसे अपना निर्णय मानकर आगे बढ़ाती है। यह जनविश्वास, जनभावनाओं का सम्मान करके ही हासिल होता है। पाकपरस्त आतंकियों द्वारा उड़ी और पुलवामा में हमला होने पर केवल निंदा करने के बजाए जब जनभावनाओं को समझते हुए सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के जरिये प्रतिशोध लिया जाता है, तब जनता का विश्वास प्राप्त होता है। मोदी ने अपने नेतृत्व-कौशल से यह जनविश्वास अर्जित किया है।
राष्ट्रीय स्तर पर तो मोदी द्वारा किए जा रहे कार्यों को तो दुनिया देख-परख रही ही है, साथ ही बीते आठ सालों में विश्व पटल पर भी मोदी का नेतृत्व-कौशल उभरकर सामने आया है। प्रधानमंत्री बनने के बाद विदेश जाने पर वहाँ मौजूद भारतवंशी लोगों से भव्य जनसभा के अंदाज में संवाद का आयोजन करके मोदी ने विश्व को भारत की शक्ति का एहसास दिलाने का काम किया है। विदेशी जमीन पर जब देश का प्रधानमंत्री अनगिनत भारतवंशियों के साथ ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाए तो इससे देश का सीना तो चौड़ा होता ही है, विश्व पटल पर भारत की धाक भी बढ़ती है।
वैश्विक मंचों पर भी मोदी भारत की भावनाओं को स्वर देते रहे हैं। भारतीय योग का संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से ‘योग दिवस’ के रूप में अंतर्राष्ट्रीयकरण करवाकर मोदी ने भारतीय ज्ञान परंपरा के संदेश को विश्वव्यापी बनाने का काम किया। जलवायु परिवर्तन के संकट पर मंथन करते विश्व को इससे निपटने के लिए पंचामृत के रूप में मार्ग दिखाने का कार्य मोदी ने किया है।
अपनी विशाल जनसंख्या और अपेक्षाकृत कम संसाधनों के बावजूद कोविड महामारी के विरुद्ध कम नुकसान के साथ लड़ने का उदाहरण नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने प्रस्तुत किया है। स्वदेशी वैक्सीन का निर्माण करने और फिर दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान का सफलतापूर्वक सञ्चालन करने वाले भारतीय मॉडल ने भी विश्व का ध्यान खींचा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि यह सब चीजें संभव होने के पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीति, नीयत और नेतृत्व का ही सर्वाधिक योगदान है। निश्चित रूप से यही वो कारण हैं, जिससे उनकी लोकप्रियता भारत के साथ-साथ विश्व पटल पर भी नए कीर्तिमान बना रही है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)