सरकार के प्रयासों का ही परिणाम है कि आज पद्म सम्मान, सही अर्थों में अपने लिए सुपात्र नागरिकों तक पहुँच रहे हैं। यह भी कहना अनुचित नहीं होगा कि भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में पद्म सम्मान भले साढ़े छः दशकों से प्रदान किए जा रहे हों, लेकिन वास्तविक अर्थों में इनका लोकतांत्रिकरण अब जाकर हुआ है, जिसके लिए वर्तमान सरकार निश्चित ही सराहना की पात्र है।
वर्ष 2014 के बाद से बीते चार-पांच वर्षों में पद्म सम्मानों के क्षेत्र में एक अभूतपूर्व और सकारात्मक परिवर्तन नजर आया है। इस दौरान ऐसे नामों की घोषणा देखने को मिली है, जो बिना किसी संपत्ति या सम्मान की लालसा के लम्बे समय से अपने-अपने क्षेत्र में उत्तम कार्य कर रहे।
बीते 9 नवम्बर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा जब राष्ट्रपति भवन में आयोजित कार्यक्रम में इस वर्ष के पद्म सम्मान प्रदान किए गए तो सम्मान लेने वालों में अनेक ऐसे चेहरे थे, जिनके नाम और काम से देश की बड़ी आबादी पहली बार परिचित हुई। अबकी 7 लोगों को पद्म विभूषण, 10 लोगों को पद्म भूषण और 102 लोगों को पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
आज जब चिकित्सा एक विशुद्ध व्यावसायिक कर्म बन गया है और सरकार को पहल करके मुफ्त चिकित्सा का प्रबंध करना पड़ रहा है, ऐसे वक़्त में उत्तराखंड के डॉ. योगी एरन किसी अजूबे की तरह ही हैं, जो अबतक जले-कटे हजारों मरीजों की निशुल्क प्लास्टिक सर्जरी करके उन्हें एक नया रूप दे चुके हैं।
हालांकि अबसे पूर्व डॉ. योगी के विषय में शायद ही उनके निकटस्थ लोगों के सिवा किसीको कुछ पता रहा हो, लेकिन पद्म श्री मिलने के बाद उनके इस सेवा-कार्य को व्यापक पहचान मिलने की उम्मीद है। इसी तरह पंजाब के जगदीश लाल आहूजा सैकड़ों गरीबों को हर दिन मुफ्त भोजन मुहैया करवाते हैं। बीते 15 सालों से यह उनका नित्य नियम बना हुआ है और इस कारण स्थानीय स्तर पर उनकी पहचान लंगर बाबा के रूप में स्थापित हो गयी है।
ऐसे ही चाचा शरीफ के नाम से मशहूर मोहम्मद शरीफ 25 सालों से फैजाबाद और उसके निकट के क्षेत्रों में हजारों लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं। उनके इस कार्य में न तो उनका मज़हब कभी आड़े आया और न ही इस सेवा-कार्य के लिए कोई पहचान न मिलने का विचार ही उन्हें रोक पाया। निष्काम भाव से अपने कर्म में लगे मोहम्मद शरीफ को पद्म श्री मिलना सुखद है।
तुलसी गावड़ा ने औपचारिक शिक्षा कुछ भी नहीं ली है, लेकिन पेड़-पौधों के विषय में उनकी जानकारी ऐसी है कि उन्हें ‘जंगल का इनसाइक्लोपीडिया’ कहा जाता है। आज जब प्रकृति को बचाने की चुनौती से मानवता दो-चार हो रही है, ऐसे वक़्त में प्रकृति संरक्षण के प्रति उनका समर्पण प्रेरणादायक है। बताते हैं कि वे अभी तक लाखों पौधों को पेड़ बना चुकी हैं, जिस कारण कर्णाटक सरकार ने उन्हें वन विभाग में नौकरी भी दी है। इस वर्ष उन्हें पद्म श्री मिलना निःसंदेह पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्यरत अनेक गुमनाम नायकों को और बेहतर करने की ऊर्जा और प्रेरणा प्रदान करेगा।
इसके अलावा संतरे बेचकर गरीब बच्चों के लिए स्कूल चलाने वाले हरेकला हजब्बा हों, पश्चिम बंगाल के सुन्दरवन में दो दशक से अधिक समय से सप्ताह में दो दिन गरीबों का मुफ्त इलाज करने वाले डॉ. अरुणोदय मंडल हों, खुद लकवाग्रस्त होते हुए भी दिव्यांग बच्चों के लिए कार्यरत एस रामकृष्णन हों या देश भर में घूमकर किसानों को आर्गेनिक खेती के गुर सिखाने वाले ओडिशा के राधामोहन और साबरमती हों अथवा अच्छी सरकारी नौकरी को ठुकराकर कम पानी में खेती की विधि पर काम करते हुए किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बने सुंडाराम वर्मा हों, ऐसे तमाम लोगों के नामों से इसबार के पद्म श्री सम्मानों की सूची भरी पड़ी है। यह कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इस सूची में देखते ही पहचान में आने वाले नाम गिनती के हैं, अधिकांश नामों का परिचय पाने के लिए खोजबीन करनी पड़ती है।
पद्म सम्मान तो बीते साढ़े छः दशकों से दिए जा रहे हैं, लेकिन जनसामान्य के बीच से अचर्चित नायक-नायिकाओं को इस तरह सम्मानित करने का काम इतने व्यापक रूप से पहले नहीं हुआ। दरअसल राजधानी में बैठी लॉबी के इशारों पर सम्मानों के वितरण का खेल देश में लम्बे समय तक चला है, जिसके लिए सम्मान की प्रमुख कसौटी सत्ता की जी-हुजूरी रही है। लेकिन 2014 के बाद मोदी सरकार ने इन सम्मानों की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए नामांकन प्रक्रिया को ऑनलाइन कर दिया।
जनवरी 2018 में पद्म सम्मानों की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कहा था, ‘नामांकन प्रक्रिया में बदलाव का परिणाम है कि सामान्य लोगों ने सम्मान की श्रेणियों में जगह बनाई है। ऑनलाइन नामांकन इसमें पारदर्शिता लाया है… अब व्यक्ति की पहचान नहीं, उसका कार्य सम्मान के लिए महत्व रखता है।’
सरकार के इन प्रयासों का ही परिणाम है कि आज पद्म सम्मान, सही अर्थों में अपने लिए सुपात्र नागरिकों तक पहुँच रहे हैं। यह भी कहना अनुचित नहीं होगा कि भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में पद्म सम्मान भले साढ़े छः दशकों से प्रदान किए जा रहे हों, लेकिन वास्तविक अर्थों में इनका लोकतांत्रिकरण अब जाकर हुआ है, जिसके लिए वर्तमान सरकार निश्चित ही सराहना की पात्र है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)