प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई मौकों पर खादी फॉर नेशन, खादी फॉर फैशन का आह्वान करते रहते हैं। उनके मुताबिक यदि लोग अपने बजट का 5 फीसदी खादी पर खर्च करें तो हैंडलूम सेक्टर की बेरोजगारी दूर हो जाएगी। गौरतलब है कि 1920 के दशक में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने गरीबी मिटाने और स्वावलंबन के लिए जिस चरखा-खादी की शुरूआत किया था वह जल्दी ही स्वाधीनता आंदोलन का सशक्त हथियार बन गया। इतना ही नहीं आगे चलकर आजादी और खादी एक दूसरे के पर्याय बन गए। दुर्भाग्यवश आजादी के बाद खादी को वह अहमियत नहीं मिली जिसकी वह हकदार थी। आधुनिकता और औद्योगीकरण की होड़ में खादी पिछड़ती गई। इसका नतीजा यह हुआ कि आजादी के बाद खादी धीरे-धीरे सत्ता की पोशाक बनकर आम जनजीवन से दूर हो गई। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खादी को पुराना गौरव दिलाने की मुहिम में जुटे हैं। प्रधानमंत्री बनने के बाद अक्टूबर 2014 में अपने पहले मन की बात कार्यक्रम से लेकर तकरीबन हर बड़े मौके पर नरेंद्र मोदी लोगों से खादी अपनाने का आग्रह करते रहते हैं। इसके नतीजे भी आने लगे हैं। पहली बार खादी के कपड़ों की बिक्री में 29 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। 2015-16 में खादी वस्त्रों की बिक्री का आंकड़ा 1500 करोड़ रूपये को पार कर गया। खादी से बने रेडीमेड कपड़ों की बिक्री में तो 45 फीसदी तक का इजाफा हुआ है। इतना ही नहीं जिस तरह पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नाम पर “जवाहर जैकेट” प्रसिद्ध हुई थी उसी तरह वर्तमान प्रधानमंत्री के नाम से “मोदी जैकेट” और “मोदी कुर्ता” तेजी से लोकप्रिय हो रहा है।
जैसे-जैसे खादी की ब्रांडिंग की जा रही है वैसे-वैसे इसका दायरा भी बढ़ता जा रहा है। इसी का नतीजा है कि महात्मा गांधी ने जिस खादी की स्वदेशी वस्त्र के रूप में शुरूआत की थी वह अब ग्लोबल ब्रांड का रूप ले चुकी है। कुछ साल पहले लगे रहो मुन्नाभाई फिल्म ने दुनिया भर में गांधीगिरी को नए सिरे से प्रस्तुत किया। अब वही काम खादी करने जा रही है। खादी को अंतरराष्ट्रीय दर्जा दिलाने के लिए मोदी सरकार खादी को हरित वस्त्र का तमगा दिया है। खादी ब्रांड के उत्पादन व बिक्री हेतु सरकार निजी कपड़ा मिलों से समझौते कर रही है। अरविंद मिल व लेवीस खादी से जींस बना रही हैं। खादी को ग्लोबल ब्रांड बनाने के पहले चरण में मोदी सरकार दुनिया भर में बसे 2.5 करोड़ अप्रवासियों तक खादी को पहुंचाने का लक्ष्य रखा है।
तकनीक भले ही कितनी तरक्की कर ले लेकिन हाथ से बनी चीजों का महत्व कभी कम नहीं हो सकता। खादी इस कसौटी पर पूरी तरह खरी उतरती है। खादी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह गर्मी में ठंडक व सर्दी में गर्मी का एहसास देती है। यही कारण है कि इसे स्वास्थ्य के लिहाज से अच्छा माना जाता है। खादी के लिए कच्चा माल अलग-अलग राज्यों से आता है। रेशम पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, पूर्वी उत्तर प्रदेश से तो कपास आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश से आती है। पॉली खादी को गुजरात-राजस्थान में काता जाता है जबकि हरियाणा, हिमाचल जम्मू-कश्मीर उन की खादी के लिए प्रसिद्ध हैं। श्रम गहन गतिविधि होने के चलते खादी में 1.4 करोड़ कुशल-अकुशल श्रमिकों को रोजगार मिला है। महिला सशक्तीकरण की दृष्टि से देखें तो खादी पहले नंबर पर आएगी क्योंकि इसमें 82 फीसदी कामगार महिलाएं हैं। खादी ग्रामोद्योग आयोग हर साल 10 करोड़ मीटर खादी वस्त्र का उत्पादन करता है। इसके साथ सात लाख से अधिक बुनकर पंजीकृत हैं। देश में खादी के सात हजार से ज्यादा बिक्री केंद्र हैं। इसके बावजूद खादी की दुकानें प्रचलित बाजारों में नजर नहीं आती हैं। स्पष्ट है बिक्री नेटवर्क में सुधार हो तो खादी की बिक्री में तेजी से इजाफा होगा।
खादी का महत्व इस बात से जाहिर होता है कि राष्ट्रीय झंडा हाथ से कते और हाथ से बुने कपड़े का ही होना चाहिए। इसी प्रकार गांधी टोपी और जवाहर जैकेट का अर्थ ही खादी कपड़े का बना होना है। लेकिन बाजार अर्थव्यवस्था में खादी के इन अर्थों का कोई महत्व नहीं है। इसलिए खादी को बाजार अर्थव्यवस्था में टिके रहना है तो उसे एक ब्रांड के रूप में स्थापित करना होगा। आज की तारीख में ब्रांड बिकता है। तभी तो समाजसेवी से लेकर राजनेता तक अपनी-अपनी ब्रांडिंग कर रहे हैं। इसलिए खादी को वक्त के साथ कदमताल करना है तो उसकी ब्रांडिंग करनी पड़ेगी। ऊंची धोती और मोटी चादर वाले गांधी की खादी की बाजार अर्थव्यवस्था में जगह नहीं है। जब खादी ब्रांड के रूप में स्थापित हो जाएगी तब लोग उसे सरलता से अपनाएंगे। इससे न सिर्फ खादी का महत्व बढ़ेगा बल्कि उससे जुड़े करोड़ों बुनकरों के जीवन स्तर में भी सुधार आएगा। खादी को बढ़ावा देने के लिए सरकार कई स्तरों पर प्रयास कर रही है। अब राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के आधिकारिक विमान एयर इंडिया वन के चालक दल के सदस्य खादी वस्त्र पहनेंगे। गुजरात विश्वविद्यालय व आइआइटी मुंबई ने अपने-अपने दीक्षांत समारोह में खादी पहनने की शुरूआत की है। सरकार इस प्रयास में जुटी है कि स्कूल यूनिफार्म, सैनिकों, अद्धसैनिक बलों, पुलिस, होमगार्ड, सिक्यूरिटी गार्ड और सरकारी कर्मचारियों का विशाल वर्ग खादी को अपनाए। यदि ऐसा होता है तो खादी की बिक्री में तेजी से इजाफा होगा।
जैसे-जैसे खादी की ब्रांडिंग की जा रही है वैसे-वैसे इसका दायरा भी बढ़ता जा रहा है। इसी का नतीजा है कि महात्मा गांधी ने जिस खादी की स्वदेशी वस्त्र के रूप में शुरूआत की थी वह अब ग्लोबल ब्रांड का रूप ले चुकी है। कुछ साल पहले लगे रहो मुन्नाभाई फिल्म ने दुनिया भर में गांधीगिरी को नए सिरे से प्रस्तुत किया। अब वही काम खादी करने जा रही है। खादी को अंतरराष्ट्रीय दर्जा दिलाने के लिए मोदी सरकार खादी को हरित वस्त्र का तमगा दिया है। खादी ब्रांड के उत्पादन व बिक्री हेतु सरकार निजी कपड़ा मिलों से समझौते कर रही है। अरविंद मिल व लेवीस खादी से जींस बना रही हैं। खादी को ग्लोबल ब्रांड बनाने के पहले चरण में मोदी सरकार दुनिया भर में बसे 2.5 करोड़ अप्रवासियों तक खादी को पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। इसके बाद इसे दुनिया भर के बाजारों में पहुंचाया जाएगा।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)