भले ही कांग्रेसी सरकारें धर्मनिरपेक्षता का नारा लगाती रही हों लेकिन धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देकर मुस्लिम तुष्टीकरण करने में वे कभी पीछे नहीं हटीं। इसका ज्वलंत उदाहरण है हलाल प्रमाणपत्र जिसके जरिए देश से होने वाले हजारों करोड़ रूपये के मांस निर्यात पर मुसलमानों का एकाधिकार स्थापित करा दिया गया।
धर्मनिरपेक्षता के नाम पर बहुसंख्यकों के हितों की बलि चढ़ाकर मुस्लिम तुष्टीकरण का भारत जैसा उदाहरण पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिलेगा। इसे तीन तलाक से लेकर हलाला तक सैकड़ों उदाहरणों से समझा जा सकता है। व्यक्तिगत मामलों के अलावा कई ऐसे उदाहरण हैं जहां कारोबारी गतिविधियों में देश की पिछली कांग्रेसी सरकारों द्वारा मुसलमानों को विशेषाधिकार दिए गए। हलाल प्रमाण पत्र इसी प्रकार का कुत्सित कदम था जिसे अब मोदी सरकार ने खत्म कर दिया है।
कोई भी मांसाहार तब हलाल होता है जब वह कुछ शर्तों पर खरा उतरता है जैसे काटते समय पशु का मुंह मक्का की तरफ होना चाहिए। पशु काटते समय जो कलमा पढ़ा जाता है वह एक नमाजी मुसलमान ही पढ़ेगा। जो छुरी चलाएगा वह भी नमाजी मुसलमान होगा। स्पष्ट है हलाल मांस कारोबार में गैर मुसलमानों के लिए कोई जगह नहीं है।
हलाल मांस का निर्यात केवल इस्लामी देशों में किया जाता है। लेकिन कांग्रेसी सरकारों ने साजिशन सभी देशों को होने वाले मांस निर्यात के लिए हलाल प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य कर दिया। इसे आंकड़ों के माध्यम से समझा जा सकता है।
वर्ष 2019-20 में भारत से 23,000 करोड़ रूपये का लाल मांस निर्यात किया गया। इसमें सबसे ज्यादा निर्यात वियतनाम को किया गया। इसके अलावा मांस का निर्यात हांगकांग, मिस्र, सउदी अरब, म्यामां, संयुक्त अरब अमीरात को किया गया। वियतनाम और हांगकांग को किया जाने वाला मांस निर्यात का अधिकांश हिस्सा चीन में जाता है।
स्पष्ट है, गैर-इस्लामी देशों को निर्यात किए जाने वाले मांस का हलाल होना जरूरी नहीं था लेकिन अब तक इन देशों को भी हलाल मांस निर्यात किया जाता था। इससे गैर-मुस्लिम कारोबारी इस भारी-भरकम निर्यात कारोबार से अपने आप बाहर हो जाते थे।
मोदी सरकार ने एक देश एक नियम की अवधारणा के तहत हलाल प्रमाणपत्र की जरूरत को समाप्त कर दिया है। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अधीन आने वाले कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने लाल मांस से संबंधित अपनी नियमावली से उन पंक्तियों को हटा दिया है जिसमें कहा गया था कि – इस्लामिक शरीयत के सिद्धांतों के अनुसार मान्यता प्राप्त और पंजीकृत इस्लामी निकाय की निगरानी में जानवरों को ‘हलाल’ प्रणाली से मारा जाता है।
नियमावली में अब यह कहा गया है कि मांस को जहां निर्यात किया जाना है उन देशों की जरूरतों के हिसाब से जानवरों को मारा गया है। स्पष्ट है, अब सभी वर्गों के मांस कारोबारी निर्यातक के रूप में पंजीकरण करा सकेंगे।
हलाल प्रमाणपत्र इसलिए भी खत्म करना जरूरी हो गया था क्योंकि तुष्टीकरण के झंडारबरदारों ने साजिशन हलाल प्रमाण पत्र का दायरा बढ़ाते हुए भुजिया, सीमेंट, कास्मेटिक व अन्य खाद्य पदार्थों को भी हलाल के रूप में प्रमाणित करने का फैशन बना दिया। स्पष्ट है यदि मोदी सरकार यह कदम न उठाती तो हलाल प्रमाण पत्र की आड़ में अर्थव्यवस्था के बहुत बड़े हिस्से से गैर-मुस्लिम कारोबारी व मजदूर बाहर हो जाते।
समग्रत: तुष्टीकरण की नीतियों के चलते कांग्रेसी सरकारों ने हलाल को एक भोजन पद्धति से आगे बढ़ाकर एक समानांतर अर्थव्यवस्था में तब्दील कर दिया था। मोदी सरकार द्वारा नियमावली में बदलाव से यह भेदभावकारी नीति सदा के लिए खत्म हो गई है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)