जलवायु परिवर्तन, वैश्विक तापवृद्धि, गहराता जल संकट, कुदरती आपदाओं में इजाफा, गलत कृषि नीतियों आदि के चलते देश की उपजाऊ मिट्टी बंजर में तब्दील होती जा रही। इसके बावजूद सरकारों ने इस गंभीर समस्या की ओर देखा ही नहीं। लेकिन मोदी सरकार ने टिकाऊ कृषि विकास नीतियों के साथ-साथ अगले दस साल में 50 लाख हेक्टेयर बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है। इससे न सिर्फ खेती-किसानी की बदहाली दूर होगी बल्कि 75 लाख नई नौकरियां भी सृजित होंगी। सबसे बड़ी बात यह है कि ये नौकरियां ग्रामीण क्षेत्रों में सृजित होंगी।
भारतीय खेती की बदहाली की सबसे बड़ी वजह यह है कि कृषि के दूरगामी और सर्वांगीण विकास के उपाय कभी किए ही नहीं गए। कांग्रेसी सरकारों ने उत्पादन बढ़ोत्तरी पर ही फोकस किया जिसका नतीजा यह निकला कि भंडारण-विपणन नेटवर्क का विस्तार नहीं हो पाया।
इसी तरह मिट्टी, बीज, सिंचाई, ग्रामीण सड़कों, बिजली आपूर्ति, शीत भंडारण जैसे बुनियादी ढांचे के विकास पर कामचलाऊ रवैया अपनाया गया। उदारीकरण के दौर में तो सरकारों ने कृषि विकास से मुंह ही मोड़ लिया। यह मान लिया गया कि देश में जिस उपज की कमी होगी उसे आयात कर लेंगे। इसी आत्मघाती सोच ने सरकारी संरक्षण में पलने वाले दलालों (मध्यस्थों) की एक फौज खड़ी कर दी।
हरित क्रांति के दौर में रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध इस्तेमाल, फसल चक्र की उपेक्षा, जल संरक्षण पर ध्यान न दिए जाने से देश में मरुस्थलीकरण का दायरा बढ़ने लगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान तक सिमटे थार मरुस्थल ने अब हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश को अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया है।
थार के विस्तार का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1996 तक 1.96 लाख वर्ग किमी में फैले रेगिस्तान का विस्तार अब 2.10 लाख वर्ग किमी तक हो गया है। इसी तरह देश के सभी हिस्सों में मिट्टी की उर्वरता में तेजी से कमी आ रही। दुर्भाग्यवश भ्रष्टाचार और वोट बैंक की राजनीति करने वाली कांग्रेसी सरकारों ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि उपजाऊ मिट्टी बंजर में तब्दील होती गई।
प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही नरेंद्र मोदी ने टिकाऊ कृषि विकास की ओर ध्यान दिया। 2015 में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना शुरू की गई। इसमें समग्र दृष्टिकोण अपनाते हुए सिंचाई और जल संरक्षण को समन्वित किया गया। इसका उद्देश प्रति बूंद अधिक उत्पादन है। इसके साथ ही वर्षों से लंबित पड़ी सिंचाई परियोजनाओं को पूरा किया गया। जल संचयन और प्रबंधन के साथ-साथ बाटरशेड डेवलपमेंट पर भी ध्यान दिया गया।
मरुस्थलीकरण का एक बड़ा कारण रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध उपयोग होना है। इसे रोकने के लिए प्रधानमंत्री ने देश भर में मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाने का अभियान शुरू किया। इसके पीछे उद्देश्य है कि मिट्टी की नब्ज पहचान कर उर्वरकों का इस्तेमाल किया जाए। अब तक देश भर में 17 करोड़ से अधिक मृदा स्वास्थ्य कार्ड बांटे जा चके हैं और किसान मिट्टी की जरूरत के अनुसार रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस साल 15 अगस्त को राष्ट्र को नाम संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रासायनिक उर्वरकों को धरती को बंजर करने का प्रमुख कारण मानते हुए इनके इस्तेमाल में कमी करने का आह्वान किया।
प्रधानमंत्री एक ओर टिकाऊ कृषि विकास की नीतियों को लागू कर रहे हैं तो दूसरी ओर बंजर जमीन को फिर से उपजाऊ बनाने का लक्ष्य रखा है। इसके तहत अगले दस वर्षों में पचास लाख हेक्टेयर बंजर पड़ी भूमि को उपजाऊ बनाया जाएगा। साथ ही मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए वन अनुसंधान संस्थान देहरादून में एक उत्कृष्ट केंद्र भी स्थापित किया गया है। यह केंद्र मरुस्थलीकरण को रोकने से जुड़े सभी उपायों को समन्वित करेगा और साथ ही विशेषज्ञ और तकनीकी मदद भी देगा।
विशेषज्ञों के अनुसार एक हेक्टेयर बंजर जमीन के उपजाऊ बनाने से डेढ़ नई नौकरियां पैदा होती हैं। इस प्रकार 50 लाख हेक्टेयर बंजर भूमि को उपजाऊ बनने से देश में 75 लाख नई नौकरियां सृजित होंगी। सबसे बड़ी बात यह है कि ये नौकरियां ग्रामीण क्षेत्रों में सृजित होंगी। देश में पहली बार मोदी सरकार ने धरती के मरुस्थलीकरण को रोकने और मिट्टी की उपरी परत के संरक्षण का बीड़ा उठाया है। इससे न केवल खेती-किसानी की बदहाली दूर होगी बल्कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से भी खेती बची रहेगी।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)