मोटे अनाज को बढ़ावा देने में जुटी मोदी सरकार

कांग्रेसी कार्य संस्कृति में पले-बढ़े लोग इस बात पर आश्चर्यचकित होते रहते हैं कि आखिर मोदी सरकार में योजनाएं कैसे समय से पहले पूरी हो जाती हैं। इसका कारण है कि मोदी सरकार योजनाओं को लाने से पहले पूरी तैयारी कर लेती है। उदाहरण के लिए अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष (2023) शुरू होने में भले ही कुछ माह बाकी हैं लेकिन मोदी सरकार ने इसे बढ़ावा देना शुरू कर दिया। सरकार ने सभी मंत्रालयों व विभागों की कैंटीनों में मोटे अनाज से तैयार व्यंजन शुरू करने का निर्देश दे दिया है। आंगनबाड़ी और मध्यान्ह भोजन योजना में भी मोटे अनाजों को शामिल कर लिया गया है। इतना ही नहीं खुद प्रधानमंत्री पिछले कई वर्षों से विदेशी मेहमानों के भोजन में मोटे अनाजों से बने पकवान के कुछ आइटम रखते रहे हैं।

मोटे अनाजों में मुख्य रूप से बाजरा, मक्का, ज्वार, रागी, सांवा, कोदो, कंगनी, कुटकी और जौ शामिल हैं जो हर दृष्टि से हमारी सेहत के लिए लाभदायक हैं। 1960 के दशक में हरित क्रांति के नाम पर गेहूं व धान को प्राथमिकता देने से मोटे अनाज उपेक्षित हो गए। वैज्ञानिक समुदाय ने भी इन अनाजों पर ध्यान नहीं दिया। नतीजा किसानों ने ऐसी फसलों को उगाना कम कर दिया।

नीतिगत उपेक्षा और सब्सिडी की कमी के कारण मोटे अनाज भले ही उपेक्षित हुए हों लेकिन पशुओं के भोजन तथा औद्योगिक इस्तेमाल बढ़ने के कारण इनका महत्व बना रहा। कोरोना के बाद मोटे अनाज इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में प्रसिद्ध हुए हैं। इन्हें सुपर फूड कहा जाने लगा है। सेहत को लेकर बढ़ती जागरूकता का ही नतीजा है कि जो मोटे अनाज कभी गरीबी के प्रतीक माने जाते थे वे अब अमीरों की पसंद बन गए हैं। यही कारण है कि बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल में अब मोटे अनाज से बने प्रोडक्ट बिकने लगे हैं।

मोटे अनाजों की विशेषता है कि वे कम पानी में पैदा होते हैं और खाद्य व पोषण सुरक्षा देने के साथ-साथ पशुचारा भी मुहैया कराते हैं। ये फसलें मौसमी उतार-चढ़ाव भी आसानी से झेल लेती हैं। अर्थात पानी की कमी और बढ़ते तापमान के कारण खाद्यान्‍न उत्‍पादन पर मंडराते संकट के दौर में मोटे अनाज उम्‍मीद की किरण जगाते हैं क्योंकि इनकी खेती अधिकतर वर्षाधीन इलाकों में बिना उर्वरक-कीटनाशक के होती है।

पोषक तत्वों की दृष्टि से इन्‍हें गुणों की खान कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। प्रोटीन व रेशे की भरपूर मौजूदगी के चलते मोटे अनाज डाइबिटीज, हृदय रोग, उच्‍च रक्‍त चाप का खतरा कम करते हैं। इनमें खनिज तत्‍व भी प्रचुरता से पाए जाते हैं जिससे कुपोषण की समस्या अपने आप दूर हो जाती है।

मोटे अनाजों के वितरण से न सिर्फ खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित होगी बल्कि गेहूं-चावल के पहाड़ से भी मुक्ति मिल जाएगी। इससे विविधतापूर्ण खेती को बढ़ावा मिलेगा जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ेगी और रासायनिक उर्वरकों-कीटनाशकों के इस्तेमाल में कमी आएगी।

मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा देना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि सिंचित क्षेत्र की पैदावार में बढ़ोत्तरी थम गई है। देश में उपलब्ध भूजल का 80 प्रतिशत खेती में इस्तेमाल होता है। मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा देने भारी मात्रा में पानी बचाया जा सकता है। यदि भारत को पोषक खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग से निपटना है तो वर्षाधीन इलाकों में दूसरी हरित क्रांति जरूरी है। यह तभी संभव है जब कृषि शोध और मूल्य नीति मोटे अनाजों को केंद्र में रखकर बने। मोटे अनाजों की खेती अधिकतर छोटे व सीमांत किसान करते हैं। स्पष्ट है मोटे अनाजों को बढ़ावा देने से छोटी जोतें लाभकारी बन जाएंगी।

मोदी सरकार गेहूं-धान की एक फसली खेती के कुचक्र से निकालकर विविध फसलों की खेती की ओर बढ़ावा दे रही है। इसके लिए सरकार तीन नए कृषि कानून लाई थी लेकिन विरोध के कारण दुर्भाग्यवश उन्हें वापस लेना पड़ा। इसके बावजूद सरकार मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा दे रही है।

इसके तहत 14 राज्यों में 212 जिलों में 2018-19 से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत पोषक अनाज उप मिशन के माध्यम से मोटे अनाज के उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकार के कई संस्थान मोटे अनाजों के प्रसंस्करण की ट्रेनिंग दे रहे हैं। सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत गेहूं-चावल के साथ-साथ मोटे अनाज के वितरण की योजना पर काम कर रही है। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार गेहूं-चावल के साथ एक किलो चना और एक लीटर खाद्य तेल देने की योजना शुरू कर चुकी है।

जीवन शैली में बदलाव के कारण कई तरह की बीमारियां फैल रही हैं इन बीमारियों में मोटे अनाज फायदेमंद हैं। इससे मोटे अनाज का बाजार लगातार बढ़ रहा है। दुनिया में बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें ग्लूटेन से एलर्जी होती है। मोटे अनाज ग्लूटेन फ्री होते हैं इसलिए इनके निर्यात की अच्छी संभावनाएं हैं। स्‍पष्‍ट है मोदी सरकार की मोटे अनाजों को बढ़ावा देने की नीति खेती के पूरे परिदृश्य को बदलने की क्षमता रखती है।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)