सरदार पटेल और सुभाष चंद्र बोस से पूर्व मोदी सरकार देश के पहले क़ानून मंत्री और संविधान निर्माता डॉ. आंबेडकर के सम्मान में उनके निवास को राष्ट्रीय स्मारक बनाने, भीम एप शुरू करने जैसे कई महत्वपूर्ण कार्य कर चुकी है। इन महापुरुषों की कांग्रेस द्वारा की गई अनदेखी के बाद अब भाजपा सरकार द्वारा सम्मानित किया जाना आशा जगाता है कि भविष्य में इसी प्रकार इतिहास के अन्य नायकों के योगदान को भी समुचित मान मिलेगा।
अक्टूबर का महीना देश के लिए बहुत अहम साबित होने जा रहा है। इस महीने के समापन तक देश ऐसे दो बड़े आयोजनों का साक्षी बनेगा जो अभूतपूर्व हैं। अभूतपूर्व इस अर्थ में कि उनके क्रियान्वयन की बात तो दूर, उनके बारे में पूर्ववर्ती किसी सरकार ने विचार तक नहीं किया था। ये दोनों आयोजन क्रमश: 21 अक्टूबर, रविवार और 31 अक्टूबर, बुधवार को होंगे। दोनों ही कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मौजूद रहेंगे।
21 अक्टूबर को नेताजी सुभाषचंद्र बोस द्वारा स्थापित ‘आजाद हिंद सरकार’ की 75वीं वर्षगांठ पर लाल किले पर तिरंगा फहराया जाएगा और समारोह होगा। देखा जाए तो सुभाषचंद्र बोस की जन्मजयंती पर औपचारिक जय-जयकार तो की जाती है, लेकिन इससे इतर उनके प्रति कहीं कोई सच्ची आदरांजलि नज़र नहीं आती। ऐसे में मोदी सरकार ने यह पहल की है।
अभी तक लाल किले पर केवल राष्ट्रीय पर्वों पर ही तिरंगा फहराया जाता था, लेकिन मोदी सरकार ने इस परिपाटी को बदला है और अब देश के सच्चे सपूत के सम्मान में लाल किले पर तिरंगा फहराया जाएगा। वास्तविकता तो यह है कि कांग्रेस के शासनकाल में हमेशा से अमर शहीद हाशिये पर रहे हैं। एक गांधीजी को छोड़ दें तो कांग्रेस ने आजादी के अधिकांश असल नायकों की अनदेखी ही की है। अपने स्वार्थवश गांधी को कांग्रेस ने मजबूरी में सम्मान दिया, लेकिन अन्य शहीदों या देशभक्तों के योगदान को उचित सम्मान नहीं दिया। अब उन नायकों को सम्मान देने का बीड़ा भाजपा सरकार ने उठाया है।
21 अक्टूबर को नेताजी को याद करने के बाद 31 अक्टूबर को गुजरात में विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ का अनावरण किया जाएगा। यह प्रतिमा सरदार वल्लभभाई पटेल की होगी। इसकी ऊंचाई 183 मीटर की है। इस प्रतिमा को विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा इसलिए बताया जा रहा है, क्योंकि इससे पहले सर्वाधिक ऊंची प्रतिमा के तौर पर अमेरिका की ‘स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी का नाम दर्ज है, जिसकी ऊंचाई 182 मीटर है।
बड़े पैमाने पर सरदार पटेल की इस प्रतिमा को पूरा करने में इंजीनियर और कारीगर जुटे हुए हैं। एक अनुमान के अनुसार साढ़े तीन हज़ार कर्मचारी और ढाई सौ इंजीनियर इस काम में तैनात हैं। इसके निर्माण में 2990 करोड़ रुपए की लागत आएगी। बनने के बाद यह विश्व के यादगार स्मारकों में गिनी जाएगी और दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित करेगी। इसे निहारने के लिए एक अलग से गैलरी का भी निर्माण होगा जिसमें एक ही बार में दो सौ सैलानी समा सकेंगे।
असल में यह केंद्र सरकार की विकासोन्मुखी विचार प्रक्रिया और सतत प्रगति करते रहने की नीति का ही परिणाम है कि आज भारत में इतनी बड़ी प्रतिमा का निर्माण हो रहा है। इसका प्रयोजन देश के अमर सपूत लौह पुरुष सरदार पटेल के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना तो है ही, पर्यटन और उससे मिलने वाले राजस्व की संभावनाओं को बढ़ावा देना भी है।
यही कारण है कि विशालकाय प्रतिमा को देखने के लिए पृथक से आधा किलोमीटर में फैली एक गैलेरी का निर्माण होगा। इतना ही नहीं, देश एवं विदेश से आने वाले पर्यटकों के लिए प्रतिमा के निकट ही एक तीन सितारा होटल भी प्रस्तावित है जिसमें कि 128 कमरे होंगे। इस होटल में कॉन्फ्रेंस एवं रेस्टोरेंट की भी सुविधा होगी।
हम सभी जानते हैं कि अमेरिका की स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी हो या चीन का स्प्रिंग टेंपल बुद्धा हो, ये स्मारक केवल अपने असाधारण आकार के कारण ही वर्षों से पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। इनकी अनेक तस्वीरें होने के बावजूद लोग इन्हें प्रत्यक्ष जाकर देखना चाहते हैं। ऐसे में सरदार पटेल की प्रतिमा तो इन प्रतिमाओं से भी आकार में ऊंची और बड़ी ही है। चीन के स्प्रिंग टेंपल बुद्धा से यह 100 मीटर अधिक ऊंची है। गुजरात में सरदार सरोवर बांध के निकट बन रही इस प्रतिमा के अनावरण के लिए देशवासी उत्साहित हैं।
सरदार पटेल और सुभाष चंद्र बोस से पूर्व मोदी सरकार देश के पहले क़ानून मंत्री और संविधान निर्माता डॉ. आंबेडकर के सम्मान में उनके निवास को राष्ट्रीय स्मारक बनाने, भीम एप शुरू करने जैसे कई महत्वपूर्ण कार्य कर चुकी है। इन महापुरुषों की कांग्रेस द्वारा की गई अनदेखी के बाद अब भाजपा सरकार द्वारा सम्मानित किया जाना आशा जगाता है कि भविष्य में इसी प्रकार इतिहास के अन्य नायकों के योगदान को भी समुचित मान मिलेगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)