किसान सम्मान निधि नाम की यह योजना किसानों के बीच पीएम किसान योजना के नाम से लोकप्रिय है। इस योजना में लाभार्थी किसान को 2 हजार रुपए प्रति किश्त प्रदान किए जाते हैं और साल भर में तीन किश्तों में कुल 6 हजार रुपए प्रति किसान के खाते में जमा कराए जाते हैं। यह योजना भी केंद्रीय कर्मचारियों के महंगाई भत्ते, वेतन या बोनस की तरह ही डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर सिस्टम से संचालित की जाती है। कोरोना संकट के दौरान लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान जब इस योजना का पैसा किसानों के खातों में आना शुरू हुआ तो यह विषम हालातों में बहुत बड़ी राहत साबित हुआ।
पिछले सप्ताह सरकार ने देश के करोड़ों किसानों को बड़ी सौगात दी। जिस पीएम किसान योजना की सातवीं किश्त का इंतजार था, उसे बड़े आयोजन के साथ पूरा कर लिया गया। देश के 9 करोड़ से अधिक किसानों के बैंक खातों में करीब 18 हजार करोड़ रुपए सीधे जमा किए गए। यह काम हर बार की तरह, इस बार भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया।
किसान सम्मान निधि नाम की यह योजना किसानों के बीच पीएम किसान योजना के नाम से लोकप्रिय है। इस योजना में लाभार्थी किसान को 2 हजार रुपए प्रति किश्त प्रदान किए जाते हैं और साल भर में तीन किश्तों में कुल 6 हजार रुपए प्रति किसान के खाते में जमा कराए जाते हैं। यह योजना भी केंद्रीय कर्मचारियों के महंगाई भत्ते, वेतन या बोनस की तरह ही डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर सिस्टम से संचालित की जाती है।
कोरोना संकट के दौरान लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान जब इस योजना का पैसा किसानों के खातों में आना शुरू हुआ तो यह विषम हालातों में बहुत बड़ी राहत साबित हुआ। इतना ही नहीं, इसी अवधि में जन धन योजना के तहत भी महिलाओं के खातों में 500 रुपए प्रति माह जमा किए गए।
इन सब संदर्भों का तात्पर्य यह है कि मौजूदा सरकार सदा से किसानों एवं समाज के गरीब तबके की हितैषी रही है और हर विपरीत परिस्थति में शासकीय जनकल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से यथासंभव सहायता की है।
25 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री ने करोड़ों किसानों को सम्मान निधि की राशि पहुंचाई। यह आयोजन ऐसे समय में किया गया है जब दिल्ली में महीने भर से किसान आंदोलन के नाम पर कुछ लोग कृषि कानूनों का बेजा विरोध करते हुए अराजकता मचाए हुए हैं।
जो वास्तविक किसान हैं, उन्हें यह स्पष्ट पता है कि कृषि कानूनों से उन्हें क्या दूरगामी लाभ होने वाला है। उन्हें यह भी अनुमान है कि सामान्य खेती करते हुए भी अब वे किस प्रकार से उत्तरोत्तर लाभ अर्जित कर सकेंगे।
यह भी क्या अजीब विडंबना है कि सच्चे किसानों के पास कभी समय नहीं रहता, इसलिए वे कभी भी महीने भर का शिविर लगाकर विरोध आदि की राजनीति का हिस्सा नहीं बन सकते लेकिन उनकी इस विवशता का फायदा असामाजिक तत्वों ने उठाया है और वे किसानों के लबादे में जा पहुंचे हैं।
उनके खेमे से कृषि कानून का “क” भी सुनने को नहीं मिलता, जबकि वे इसी की दुहाई देकर यहां अवैध रूप से जमे हुए हैं। समाचार माध्यमों में आपने देखा होगा कि अलग-अलग मीडिया समूहों के संवाददता जब इन प्रदर्शनकारियों से यह पूछने गए कि कृषि कानून क्या हैं और इनसे ऐसा क्या नुकसान हो जाएगा जो आप विरोध कर रहे हैं, तो प्रदर्शनकारी बगलें झांकते पाए गए। उनके इस अड्डे पर खाने-पीने की विविध वस्तुओं के साथ आधुनिक जीवन शैली के आरामदायक तमाम संसाधन पाए गए जो शहरी नागरिकों के पास भी नहीं होते।
इन अराजक तत्वों को यह भी नहीं पता है कि कृषि कानून एक है या एक से अधिक, जिसके विरोध का झंडा उठाकर वे यहां चले आए हैं। कहा जाना चाहिये कि लाए गए हैं। इन लोगों के मुंह पर करारा तमाचा मारते हुए वास्तविक किसानों ने जब सरकार का समर्थन किया तो इनके मुंह सिल गए।
सरकार की बातचीत की कोशिशों से इतराते ये हंगामेबाज अब सरकार से निर्णायक वार्ता का दम तो भर रहे हैं लेकिन इनके पास बहस का कोई आधार नहीं है। ये केवल अपनी हठधर्मिता लेकर बैठे हैं और हठ के बूते पर कभी कोई वार्ता नहीं हो सकती।
पीएम किसान योजना के तहत राशि जारी करते समय प्रधानमंत्री ने किसानों से संवाद भी किया। इस आयोजन के बाद देश के किसानों के मन में सरकार के प्रति विश्वास और बढ़ा है। उन्हें यह विश्वास है कि यह जनहितैषी सरकार है और चंद गलत लोग अपने स्वार्थ के चलते इस सरकार को मलिन करने का कुत्सित कार्य कर रहे हैं। वस्तुतः देश का किसान आज भी सरकार के साथ है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)